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जयपुर वालों ये भी तो करो

locationजयपुरPublished: Sep 11, 2018 01:52:36 am

हूपर में डाल रहे हो, गीला-सूखा अलग भी तो करो

जयपुर. शहर में घर-घर कचरा संग्रहण का पहला चरण इस मायने में तो सफल रहा है कि लोग कचरा अब हूपर में डालने लगे हैं। सुबह स्वच्छता गीत सुनाई देते ही लोग कचरा पात्र लेकर घर से बाहर निकलते हैं और हूपर में कचरा डालते हैं। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण गीला और सूखा कचरा अभी अलग नहीं हो पा रहा है। जबकि घर-घर कचरा संग्रहण के साथ यह व्यवस्था भी शुरू होनी थी। अब दूसरे चरण में यह व्यवस्था भी सफलता पूर्वक लागू हो, तब शहर स्वच्छता के करीब पहुंच पाएगा।
मानसरोवर के एसएफएस में 3 माह पहले अधिकतर लोग 2 डस्टबिन का उपयोग करते थे लेकिन अब कुछ ही बचे हैं। मध्यम मार्ग के कु छ मकानों में भी लोग 2 डस्टबिन का प्रयोग करते हैं। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या अभी गिनी-चुनी ही है। ज्यादातर जगह दोनों प्रकार का कचरा एकसाथ डालने के कारण स्वच्छता की ओर बढऩे में अड़चन आ रही है।
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उपयोग के लिए बनाना होगा ठोस प्लान
शहर के उठने वाले 1800 टन में से महज 550 टन कचरे को री-साइकिल कर उपयोग किया जा रहा है। बाकी 1300 टन कचरा सेवापुरा, लांगडिय़ावास और मथुरादासपुरा में डाला जा रहा है। इस कचरे का उपयोग कैसे हो, इसका ठोस प्लान नगर निगम के पास नहीं है।
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कचरा और सफाई
– 15 माह पहले हुई थी शहर में घर-घर कचरा संग्रहण की शुरुआत
– 60 फीसदी गीला और 40 फीसदी सूखा कचरा आता है घरों से
– 1800 टन कचरा औसतन रोजाना उठता है विभिन्न वार्डों से
– 03 हजार से अधिक सफाईकर्मी रहते हैं शहर की सड़कों पर, निजी कम्पनी के भी लगभग इतने ही कर्मचारी जुटे हैं सफाई व्यवस्था में
– 5500 से अधिक सफाईकर्मी हैं कुल
– 650 हूपर काम करते हैं 91 वार्डों में
– 100 डम्पर लगे हैं कचरे को डम्पिंग जोन तक पहुंचाने के लिए
– 30 पैडल रिक्शा परकोटा की तंग गलियों के लिए
– 30 ई-रिक्शा उन स्थानों के लिए, जहां हूपर नहीं पहुंचते
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भविष्य में बिजली बनाने की योजना
मथुरादासपुरा स्थित डम्पिंग जोन पर आने वाले कचरे से भविष्य में बिजली बनना प्रस्तावित है। नगर निगम सूत्रों की मानें तो यह तभी संभव है, जब सूखा और गीला कचरा डम्पिंग जोन तक अलग-अलग पहुंचेगा। वहां रोजाना 750 टन से अधिक कचरा पहुंचता है और 700 टन कचरे से बिजली बनाना प्रस्तावित है। अभी कम्पनी को जमीन देने के लिए निगम प्रयास कर रहा है। सेवापुरा में 250 टन कचरे की खाद और लांगडिय़ावास में 300 टन कचरे से एक सीमेंट कम्पनी रोजाना ईंधन बनाने का काम कर रही है।
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सूखा-गीला कचरा यों करें अलग
– सूखा कचरा (नीले डिब्बे में) : प्लास्टिक, पॉलीथिन, रबड़, जूट, कागज, गत्ता, कांच, थर्माकोल, चमड़ा, कपड़ा आदि।
– गीला कचरा (हरे डिब्बे में) : बचा हुआ भोजन, बची हुई फल-सब्जी या छिलके, पेड़-पौधों की पत्तियां आदि।
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शहरवासियों के सहयोग से स्वच्छता रैंकिंग में हम आगे बढ़ रहे हैं। डम्पिंग जोन पर कचरे का सही उपयोग हो, इसके लिए प्रयास जारी हैं।
– अशोक लाहोटी, महापौर
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