अपनी बीन की धुन पर सांपों को नचाते हुए यह सपेरे अब मुश्किल से ही नजर आते हैं। वजह है सांपों को पकडऩे पर लगी कानूनी रोक। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत सांपों को पकडऩा अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे में अब इन सपेरों ने दूसरी राह निकाल ली है। अब सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें सपेरे सांप पकड़ते हुए और उसका खेल दिखाते नजर आ रहे हैं लेकिन इन पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही।
कौन हैं सपेरे ?
देश के कुछ खास कबीले सैकड़ों साल तक सांप पकड़कर अपना पेट पालते रहे। इन्हीं को सपेरा भी कहा जाता है। भगवान शिव की उपासना करने वाले सपेरे अब मुश्किल में हैं। 1991 में सांपों को नचाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अब सांपों को रखना भी कानून अपराध है। वजह थी सांपों पर बढ़ते अत्याचार।
देश के कुछ खास कबीले सैकड़ों साल तक सांप पकड़कर अपना पेट पालते रहे। इन्हीं को सपेरा भी कहा जाता है। भगवान शिव की उपासना करने वाले सपेरे अब मुश्किल में हैं। 1991 में सांपों को नचाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अब सांपों को रखना भी कानून अपराध है। वजह थी सांपों पर बढ़ते अत्याचार।
सिल दिया जाता है मुंह
जानकारी के मुताबिक सपेरे सांप को पकड़ कर जिंदा सांप के मुंह को सुई धागे से सिल देते हैं। मुंह सिल जाने के बाद यह सांप पूरी तरह से असहाय हो जाता है। इसके बाद आराम से चिमटी के सहारे सांप के मुंह से उन दांतों को खोज कर जिंदा अवस्था में उखाड़ लिया जाता है। पूरी तरह असहाय करने के बाद सांप को भूखा तक रखा जाता है इससे वह सुस्त हो जाता है और खुद के लिए शिकार तक नहीं कर पाता।
जानकारी के मुताबिक सपेरे सांप को पकड़ कर जिंदा सांप के मुंह को सुई धागे से सिल देते हैं। मुंह सिल जाने के बाद यह सांप पूरी तरह से असहाय हो जाता है। इसके बाद आराम से चिमटी के सहारे सांप के मुंह से उन दांतों को खोज कर जिंदा अवस्था में उखाड़ लिया जाता है। पूरी तरह असहाय करने के बाद सांप को भूखा तक रखा जाता है इससे वह सुस्त हो जाता है और खुद के लिए शिकार तक नहीं कर पाता।
नागपंचमी पर नजर आते हैं सपेरे
सांप को पकडऩे पर रोक लगने के बाद भी नागपंचमी के अवसर पर इन्हें देखा जा सकता है। शिव मंदिरों के आसपास यह नजर आते हैं। अंधविश्वास के चलते लोग सांप का दर्शन करना चाहते हैं। नागपंचमी के बाद वन विभाग के डर से इन सांपों को फिर से जंगल में छोड़ दिया जाता है लेकिन तब तक सांप अधमरा हो चुका होता है और शिकार करने में अक्षम हो जाता है।
सांप को पकडऩे पर रोक लगने के बाद भी नागपंचमी के अवसर पर इन्हें देखा जा सकता है। शिव मंदिरों के आसपास यह नजर आते हैं। अंधविश्वास के चलते लोग सांप का दर्शन करना चाहते हैं। नागपंचमी के बाद वन विभाग के डर से इन सांपों को फिर से जंगल में छोड़ दिया जाता है लेकिन तब तक सांप अधमरा हो चुका होता है और शिकार करने में अक्षम हो जाता है।
मजबूरी करवा रही काम
वहीं इन सपेरों का कहना है कि मजबूरी के चलते वह यह काम कर रहे हैं। सरकार ने सांप पकडऩे पर तो रोक लगा दी लेकिन उनके रोजगार के लिए कोई दूसरी व्यवस्था नहीं की। सरकारी योजनाओं का लाभ तक इन्हें नहीं मिल पा रहा।
वहीं इन सपेरों का कहना है कि मजबूरी के चलते वह यह काम कर रहे हैं। सरकार ने सांप पकडऩे पर तो रोक लगा दी लेकिन उनके रोजगार के लिए कोई दूसरी व्यवस्था नहीं की। सरकारी योजनाओं का लाभ तक इन्हें नहीं मिल पा रहा।
ऐसे बच सकते हैं सांप और अन्य वन्यजीव।
: सांपों के साथ स्टंट करने व सोशल मीडिया पर डालने पर कड़ी सजा का किया जाए प्रावधान
: सांप का विष निकालना गैर जमानती अपराध माना जाए।
: सांप पाल कर रोजगार चलाने वाले इन सपेरों को राज्य सरकार किसी अन्य रोजगार या स्वरोजगार से जोड़े। जिससे उनका और उनके परिवार को जीवन यापन हो सके।
: बच्चों को स्कूल शिक्षा से जोडऩे के लिए प्रयास किए जाएं।
: नाच गाने के नाम पर, विदेशों में लेकर जाने वाली संस्थाओं और होटल माफिया का रेगुलेशन होना चाहिए, जिससे कला का पैसा लोक कलाकारों के हिस्से में जाए।
: सांपों के साथ स्टंट करने व सोशल मीडिया पर डालने पर कड़ी सजा का किया जाए प्रावधान
: सांप का विष निकालना गैर जमानती अपराध माना जाए।
: सांप पाल कर रोजगार चलाने वाले इन सपेरों को राज्य सरकार किसी अन्य रोजगार या स्वरोजगार से जोड़े। जिससे उनका और उनके परिवार को जीवन यापन हो सके।
: बच्चों को स्कूल शिक्षा से जोडऩे के लिए प्रयास किए जाएं।
: नाच गाने के नाम पर, विदेशों में लेकर जाने वाली संस्थाओं और होटल माफिया का रेगुलेशन होना चाहिए, जिससे कला का पैसा लोक कलाकारों के हिस्से में जाए।