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जब न होगा दुनिया का मेला, तब कौन संभालेगा डिजिटल यादों का थैला

locationजयपुरPublished: Jun 12, 2019 02:34:23 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

अपनी निजी तस्वीरों, दस्तावेज, वीडियो, बैंक डिटेल्स और सोशल मीडिया से जुड़ी जानकारियों को ऑनलाइन सहेज कर रखना आम चलन है, लेकिन किसी व्यक्ति के मर जाने पर इन जानकारियों का क्या होता है?

कम्प्यूटर और इंटरनेट के इस युग में तकनीक हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। लोगों के लिए आभासी दुनिया में बने रहना एक आनंद की अनुभूति बन गया है। लेकिन हमारे सोशल मीडिया अकाउंट, गूगल स्टोरेज, आई क्लाउड और ऑनलाइन डिजिटल लॉकर में सुरक्षित रखे हमारी निजी जानकारियां हमेशा सुरक्षित रहेंगी? हमारे अचानक इस दुनिया से चले जाने पर क्या हमारा सोशल मीडिया अकाउंट बंद हो जाता है? सोशल नेटवर्किंग कंपनियां हमारे निजी डेटा और गुप्त जानकारियों का क्या करती हैं? कोई ऐसा उपाय है जिससे हमारी ये निजी बातें गलत हाथों में न जाएं? ऐसे ही दर्जनों सवाल लोग अक्सर तकनीकी विशेषज्ञों से पूछते हैं। वॉशिंगटन पोस्ट के तकनीकी स्तम्भकार ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब दे रहे हैं। ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब:
मरने के बाद क्या होता है आई क्लाउड का
मौत अब एक तकनीकी समस्या भी है। एपल के आई क्लाउड पर निजी तस्वीरों और अन्य डिजिटल जानकारियों को रखना आसान है। लेकिन तब क्या होता है जब उपयोगकर्ता मर जाता है? क्या इसमें रखी तमाम चीजें भी वसीयत के दायरे में आती हैं? क्लाउड के चलते भले ही घर में पुराने फोटो एल्बम, दस्तावेजों और अन्य जानकारियों से घर मुक्त हो लेकिन आपका डिजिटल जीवन परिवार के अन्य सदस्यों के लिए परेशानियां भी पैदा कर सकता है, अगर आपने पहले से ही इसकी व्यवस्था नहीं की है तो।
इसमें सबसे बड़ी समस्या है डिजिटल चीजों को लेकर अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानून और नजरिया। जहां कुछ देश ऑनलाइन खातों और संपत्ति को संबंधित व्यक्ति की कार या बचत खाते जैसी संपत्ति मानते हैं। वहीं कुछ देशों में इसे महज निजी डेटा के रूप में मान्यता प्राप्त है जिसे अन्य व्यक्ति उपयोग नहीं कर सकता। सामान्यत: टेक कंपनियां डेटा को आपकी सहमति के बिना नहीं छेड़ सकतीं। हालांकि कुछ मामलों में इनमें अपवाद भी है।
वहीं आई क्लाउड पर संग्रहीत आपका निजी डेटा आपके न होने की स्थिति में तुरंत डिलीट नहीं होता। गूगल कहता है कि अगर उपयोगकर्ता ऑनलाइन स्टोरेज या अपने क्रेडिट कार्ड के लिए भुगतान करना बंद भी कर देता है तो भी वह आपके डिजिटल अकाउंट से सामग्री नहीं हटाता। लेकिन अगर आप भुगतान नहीं करते हैं तो इस अकाउंट में फ्री स्पेस की अधिकतम सीमा से अधिक और कुछ अपलोड नहीं होगा। इसी तरह एपल यह नहीं बताता कि वह कब तक भुगतान न करने की स्थिति में आपके डेटा को संभालकर रखता है। हालांकि वह ३० दिनों के नोटिस के साथ इसे हटाने का अधिकार अपने पास सुरक्षित रखता है।
इन समस्याओं से बचने के लिए आप अपनी डिजिटल संपत्ति या दस्तावेजों के लिए आप ई-स्टेट प्लानर और वकील से इस बारे में सलाह मशविरा कर सकते हैं। ऐसे ही कुछ टेक कंपनियां खाताधारक को ऑनलाइन संपत्तियों का वारिस चुनने का भी विकल्प देती हैं। गूगल इसे ‘निष्क्रिय खाता प्रबंधकÓ और फेसबुक ‘लीगेसी कॉन्टेक्टÓ कहता है। हालांकि एपल ऐसी कोई सुविधा नहीं देता फिर चाहे आप अपना आई-क्लाउड अकाउंट परिवार के किसी सदस्य के साथ ही क्यों न साझा करते हों। एक दूसरा तरीका यह हो सकता है कि हम अपने प्रियजनों को अपने लाूगइन और पासवर्ड से अवगत करा दें। कुछ पासवर्ड मैनेजर टूल इस सुविधा को सेवा के रूप में पेश करते हैं। साथ ही एक आपातकालीन संपर्क को भी इसमें जोड़ सकते हैं जो आपके बाद एक तय सीमा पूरी होने के बाद इस जानकारी को खोल सकता है।
फेसबुक बन गया है डिजिटल मकबरा
आज से ३० हजार साल पहले जब लिखने का अविष्कार नहीं हुआ था तब आने वाली पीढ़ी तक अपनी धरोहर पहुंचाने के लिए लोग गुफा की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों से सांकेतिक भाषा में चित्रकारी करते थे। यह उपाय इतना सफल था कि आज भी पुरातत्त्वविदों को गुफाओं से इनके निशान मिल जाते हैं। आज से ३० हजार साल बाद अगर मनुष्य विलुप्त नहीं होते हैं तो भविष्य के लिए हमारे पास अथाह जानकारियों का भंडार है। आज मनुष्य अपने जीवन के एक-एक दिन का रेकॉर्ड रख ने में सक्षम है। मकबरों, पुस्कालयों, ऐतिहासिक साहित्य और प्राचीन वेद-ग्रंथो में मनुष्य से जुड़ी तमाम महत्त्वपूर्ण बातों का संग्रह है। लेकिन इस संबंध में हमारी सबसे ज्यादा मदद फेसबुक ने की है।
बीते डेढ़ दशक में फेसबुक के उपयोगकर्ताओं ने सूचनाओं के प्रचार-प्रसार में बड़े पैमाने पर योगदान दिया है। यह किसी भी प्रकार की घटनाओं के बारे में हमारी प्रतिक्रियाओं और हमारे विकसित होने वाले रीति-रिवाजों को एक दायरे और सामयिकता के साथ दर्ज करता है। यह सुविधा पहले के इतिहासकार को प्राप्त नहीं थी। हालांकि यह समझना बहुत मुश्किल है कि यह डेटाबेस कितना विशाल होगा। इस समय 2 अरब से भी अधिक लोग फेसबुक पर सक्रिय हैं। यह मानते हुए कि इनमें से आधे से ज्यादा लोग नियमित रूप से प्लेटफॉर्म का उपयोग करना जारी रखेंगे, इनमें से अधिकांश उपयोगकर्ता फोटो, दोस्ती, उनकी पसंद-नापसंद और वर्तमान घटनाओं पर उनकी प्रतिक्रियाओं को पीछे छोड़ते हुए अपने जीवन के अधिकाशं हिस्ससे का एक तरह से डिजिटल दस्तावेजीकरण करेंगे। आज ऐसे हजारों फेसबुक अकाउंट हैं जिनके उपयोगकर्ता इस दुनिया में नहीं है लेकिन वे अपने पीछे ऐसे डिजिटल अवशेष छोड़ गए हैं जो उन्हें हमेशा प्रासांगिक बनाए रखेंगे। यह चलन आने वाले दशकों में और भी तेजी से बढ़ेगा। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि अगर कल से फेसबुक ज्वॉइन करने वाले ऐसा करना बंद कर दें तो भी साइट पर मृतक उपयोगकर्ताओं की संख्या इस सदी के अंत तक 140 करोड़ हो जाएगी। वहीं साल 2100 तक यह संख्या बढ़कर 500 करोड़ उपयोगकर्ताओं तक पहुंच सकती है।
भविष्य के इंसानों को मिलेगी मदद
आज मृत उपयोगकर्ताओं के ये फेसबकु अकाउंट शोक और यादों की एक डिजिटल कब्र बन गए हैं। लेकिन भविष्य में वे मानवता के लिए एक वरदान हो सकते हैं। इस पर संग्रहीत जानकारियां भविष्य के इतिहासकारों और सामाजिक शोधकर्ताओं के लिए अमूल्य साबित हो सकते हैं जो उन्हें आज की दुनिया की सही तस्वीर प्रस्तुत करेंगे। उदाहरण के लिए दुनिया भर में नोट्रे डेम कैथेड्रल की आगजनी पर जो प्रतिक्रिया दी, या अमरीका पर आतंकी हमला, गुजरात का भूकंप या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दोनों कार्यकाल और चुनाव के समय का माहौल, सांस्कृतिक युद्ध ऐसी घटनाएं हैं जिन पर लोगों की एकदम खरी प्रतिक्रिया डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सुरक्षित संग्रहीत मिलेगी।
आने वाली पीढिय़ों के लिए फेसबुक हमारे जीवन की छवियों को संरक्षित करेगा जो कि अस्तित्व में किसी भी वंशावली रेकॉर्ड की तुलना में अत्यधिक प्रमाणिक और ठोस है। यह हमारे वंशजों को इतिहास की पूरी समझ और विस्तारप्रदान करेगा। दरअसल आज फेसबुक हमारी डिजिटल सांस्कृति विरासत का प्रतिनिधित्त्व करता है।
ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट से पीएचडी कर रहे कार्ल ओहमन का कहना है कि इतिहास में पहली बार हमारे पास इतिहास को सही मायने में लोकतांत्रिक बनाने का मौका है। अब हमारे पास एक संग्रह है जो वैश्विक स्तर पर हम सभी को शामिल करता है। लेकिन यहां यह सवाल भी है कि मृतकों से जुड़ी जानकारी की गोपनीयता कितनी है और हम लोगों को कितनी स्वायत्तता की उम्मीद करनी चाहिए? मरने के बाद मृतक के फेसबुक खातों का प्रबंधन कैसे हो? कौन इस तरह के डेटा को क्यूरेट कर पाएगा और किस हद तक?
इसके अलावा, इस डेटा को बनाए रखने में हम फेसबुक को कैसे जवाबदेह बना सकते हैं?क्या इस बात की गारंटी है कि हमारी ‘डिजिटल विरासतÓ संरक्षित है या फिर इसे अपने ऐतिहासिक डेटा को शोध के लिए एक स्वतंत्र संगठन को सौंप दिया जाएगा। क्योंकि ट्विटर ने 2010 में अमरीकी संसद को अपना डेटा सौंपने का प्रयास किया था। ये कोई काल्पनिक प्रश्न नहीं हैं। माईस्पेस ने २०१३ में अपने उपयोगकर्ताओं की सामग्री को हटा दिया जिसमें शोकसभाओं में इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ फीचर्स भी शामिल थे ताकि साइट को आधुनिक बनाया जा सके। यदि फेसबुक इसी तरह अपनी विश्वसनीयता खो देता है तो क्या होगा? इसके लिए हमें ठोस रणनीतियां बनाने की आवश्यकता है।
यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि पहली बार मनुष्य के पास किसी भी पीढ़ी की तुलना में कहीं अधिक व्यक्तिगत डेटा है। हमें अपनी यादों को जिंदा रखने के लिए अब अपने वंशजों पर निर्भर रहने की जरुरत नहीं है। न ही हमारे सामूहिक अनुभव समय के साथ मिट जाएंगे। यह हमारे लिए इतिहास की डिजिटल दीवारों पर हमारे हाथों के निशान से कहीं अधिक पीछे छोड़ जाने का एक अभूतपूर्व अवसर है।
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