120 दवाएं अवमानक मिली,90 केस अंडर इनवेस्टीकेशन
औषधि नियंत्रण संगठन ने वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2017 तक राजधानी जयुपर में दवा की दुकानों से दवाओं के नमूने लिए। लिए गए नमूनों में से 120 से ज्यादा दवाएं अवमानक घोषित की गई। लेकिन जब अवमानक दवाओं को बनाने वाली निर्माता कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही की बात आई तो औषधि नियंत्रक बैक फुट पर आता दिखा। औषधि नियंत्रण संगठन ने 90 मामलों में केस आगे बढे इसक लिए अभियोजन स्वीकृति ही नहीं दी गई। अगर अभियोजन स्वीकृति मिलती तो अवमानक दवाएं बनाने वाली निर्माता कंपनियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज् होती और कानूनी कार्यवाही भी होती। लेकिन ये मामले अंडर इनवेस्टीगेशन ही है।
ये कैसा अजीत तर्क
ऐसा नहीं है कि औषधि नियंत्रण संगठन ने अवमानक दवाओं को बनाने वाली निर्माता कंपनियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी। लगभग एक दर्जन मामलों में अभियोजन स्वीकृति तो दी लेकिन यह तर्क देकर न्यायालय में केस दायर नहीं किया कि निर्माता कंपनी से अवमानक दवाई के मामले में जरूरी दस्तावेज या कौन कौन जिम्मेदार इसे लेकर कोई जानकारी नहीं आई है। जबकि संगठन के अफसरों को ही तत्काल यह कार्यवाही की जानी चाहिए थी।
कहीं इतनी जल्दबाजी
राजधानी जयपुर में वर्ष 2015 में दुर्गापुरा स्थित शांतिनगर में बिना लाइसेंस के दवाईयां बनाने का मामला सामने आया। संगठन के अफसरों ने महज 25 दिन में ही निर्माता कंपनी के खिलाफ संबधित थाने में एफआईआर दर्ज करा दी और अभियोजन स्वीकृति देकर न्यायालय में केस भी दायर कर दिया। लेकिन अन्य मामलों में ऐसी तत्परता नहीं दिखाई गई।
लाइसेंस निलंबित तो कहीं परिमिशन विड्रा
संगठन के अफसरों ने अवमानक दवाओं की बिक्री करने वाले दो दर्जन से ज्यादा मेडिकल स्टोर्स के लाइसेंस निलंबित किए तो कहीं कपंनियों के प्रोडक्ट की अनुमति वापस भी ली।
औषधि नियंत्रण संगठन ने वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2017 तक राजधानी जयुपर में दवा की दुकानों से दवाओं के नमूने लिए। लिए गए नमूनों में से 120 से ज्यादा दवाएं अवमानक घोषित की गई। लेकिन जब अवमानक दवाओं को बनाने वाली निर्माता कंपनियों के खिलाफ कार्यवाही की बात आई तो औषधि नियंत्रक बैक फुट पर आता दिखा। औषधि नियंत्रण संगठन ने 90 मामलों में केस आगे बढे इसक लिए अभियोजन स्वीकृति ही नहीं दी गई। अगर अभियोजन स्वीकृति मिलती तो अवमानक दवाएं बनाने वाली निर्माता कंपनियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज् होती और कानूनी कार्यवाही भी होती। लेकिन ये मामले अंडर इनवेस्टीगेशन ही है।
ये कैसा अजीत तर्क
ऐसा नहीं है कि औषधि नियंत्रण संगठन ने अवमानक दवाओं को बनाने वाली निर्माता कंपनियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी। लगभग एक दर्जन मामलों में अभियोजन स्वीकृति तो दी लेकिन यह तर्क देकर न्यायालय में केस दायर नहीं किया कि निर्माता कंपनी से अवमानक दवाई के मामले में जरूरी दस्तावेज या कौन कौन जिम्मेदार इसे लेकर कोई जानकारी नहीं आई है। जबकि संगठन के अफसरों को ही तत्काल यह कार्यवाही की जानी चाहिए थी।
कहीं इतनी जल्दबाजी
राजधानी जयपुर में वर्ष 2015 में दुर्गापुरा स्थित शांतिनगर में बिना लाइसेंस के दवाईयां बनाने का मामला सामने आया। संगठन के अफसरों ने महज 25 दिन में ही निर्माता कंपनी के खिलाफ संबधित थाने में एफआईआर दर्ज करा दी और अभियोजन स्वीकृति देकर न्यायालय में केस भी दायर कर दिया। लेकिन अन्य मामलों में ऐसी तत्परता नहीं दिखाई गई।
लाइसेंस निलंबित तो कहीं परिमिशन विड्रा
संगठन के अफसरों ने अवमानक दवाओं की बिक्री करने वाले दो दर्जन से ज्यादा मेडिकल स्टोर्स के लाइसेंस निलंबित किए तो कहीं कपंनियों के प्रोडक्ट की अनुमति वापस भी ली।