scriptSawan 2020: नाहरसिंह बाबा के मेले पर कोरोना का ‘ग्रहण’ | Due to corona fair is not held in nahar singh temple of jaipur | Patrika News

Sawan 2020: नाहरसिंह बाबा के मेले पर कोरोना का ‘ग्रहण’

locationजयपुरPublished: Jul 20, 2020 04:16:07 pm

Submitted by:

SAVITA VYAS

श्रद्धालुओं को मंदिर में नहीं दिया गया प्रवेश दरवाजे के बाहर से ही लगाई धोक

Sawan 2020: नाहरसिंह बाबा के मेले पर कोरोना का 'ग्रहण'

Sawan 2020: नाहरसिंह बाबा के मेले पर कोरोना का ‘ग्रहण’

जयपुर। छोटी काशी में श्रावण का तीसरे सोमवार पर बड़े शिवालयों पर आज भी पुलिस का सख्त पहरा नजर आया। शहर के प्रमुख मंदिरों में शुमार ताड़केश्वर महादेव, झाड़खंड महादेव, चमत्कारेश्वर महादेव सहित अन्य प्राचीन शिवालयों में पुजारियों ने भोलेनाथ की पूजा— अर्चना की। शाम को मंदिरों में विशेष झांकी सजाई जाएगी। छोटे शिवालयों में बम—बम बोले की गूंज सुबह से सुनाई दी। भक्तों ने सामाजिक दूरी का पालन कर जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक किया।
इधर, लोक देवता नाहरसिंह बाबा के मंदिरों में बाबा का जन्मोत्सव आज हरियाली अमावस्या पर हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। आमागढ़ की पहाड़ी पर स्थित नाहरसिंह बाबा के चौबुर्जा मंदिर में मध्यरात्रि में महंत रमेश आचार्य के सान्निध्य में पंचामृताभिषेक कर सिंदूर व चांदी के वर्क से चौला चढ़ाया गया। इसके बाद इत्र अर्पित कर नूतन पोशाक धारण करवा कर मनमोहक शृंगार किया गया। इस दिन जयपुर सहित आस-पास के गांवों से बड़ी संख्या में बाबा के भक्त धोक लगाने पहुंचते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के चलते मंदिर में भक्तों को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। भक्त बाहर से ही प्रसाद अर्पण कर सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं। शाम को बाबा को खीर चूरमा का भोग लगाया जाएगा। लॉकडाउन के कारण इस बार हरियाली अमावस्या पर लगने वाला मेला भी नहीं लगा। उधर घाट की गुणी में आमागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित बाबा के मंदिर में महंत बाबूलाल सैनी के सान्निध्य में सुबह बाबा का दुग्धाभिषेक कर लहरिए की पोशाक धारण करवा कर फूलों से शृंगार किया गया। यहां भी लॉकडाउन के कारण श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। भक्तों ने दरवाजे के बाहर से ही धोक लगाई। लॉकडाउन के कारण सांगानेर व मानसरोवर से पदयात्राएं भी नहीं निकाली जा सकी। रमेश आचार्य ने बताया कि जयपुर बसावट से पहले सवाई जयसिंह के समय का मंदिर है। पहले मंदिर गिरनार की पहाड़ी पर बसा था। इसके बाद पहाड़ी का नाम आमागढ़ हो गया। हर वर्ष की तरह हरियाली अमावस्या के मौके पर मेले का नजारा इस बार नहीं दिखा। भक्तों की आवाजाही पूर्णतया निषेध रही।
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