scriptपहले बारातें आ जाती थी, अब परिंदा भी पर नहीं मार सकता | Earlier processions used to come, now even Parinda cannot kill | Patrika News

पहले बारातें आ जाती थी, अब परिंदा भी पर नहीं मार सकता

locationजयपुरPublished: Feb 20, 2020 05:20:38 pm

Submitted by:

jagdish paraliya

70 साल में सूरत बदल गई राजस्थान से सटी भारत-पाक सीमा की

 Earlier processions used to come, now even Parinda cannot kill

Surat changed the Indo-Pak border with Rajasthan in 70 years

तस्करों के लिए भी ओपन बॉर्डर वरदान था
जोधपुर. आजादी के ठीक पहले अस्तित्व में आई भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पिछले ७० सालों में पूरी तरह बदल गई है। पहले जहां सीमावर्ती गांवों से बारातें तक आसानी से आ-जा सकती थी, वहीं अब सीमा की चौकसी इतनी चाकचौबंद है कि परिंदा तक पर नहीं मार सकता। ऐसे में घुसपैठ और तस्करी जैसे सीमा अपराध भी या तो सीमित हो गए हैं या तस्करी का तरीका भी बदल गया है। राजस्थान से १०७० किलोमीटर लम्बी अन्तरराष्ट्रीय सीमा सटी है। सीमा के दोनों ओर बसे गांवों के लोगों की आज भी आपस में रिश्तेदारियां हैं। ऐसे में ८०-९० के दशक तो सीमा खुली ही थी। सीमा चौकियां भी काफी दूर थी। वांछित संख्या में निगरानी टावर तक नहीं थे। ऐसे में बारातें तक आ जाती थी। तस्करों के लिए भी ओपन बॉर्डर वरदान था। रेत के धोरों को चीरकर कभी मोटर साइकिलों तो कभी ऊंटों पर सोने-चांदी की तस्करी हो जाती थी। आज भी कई तस्करों के नाम बीएसएफ और सीमा के थानों में कुख्यात के रूप में दर्ज हैं।
पाक में चोर-डकैत थे इसलिए लगाई पुलिस
बंटवारे के बाद सीमा रेखा तो खिंच गई, लेकिन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे। मवेशी भी चरते-चरते सीमा पार कर जाते और चरवाहे हांककर वापस ले जाते। पाकिस्तान में चोर-डकैत अधिक थे इसलिए बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर में लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस और आरएसी लगाई गई। वर्ष १९६५ में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का गठन हुआ। शुरुआत में बीएसएफ का प्रमुख कार्य भी स्थानीय लोगों की जान-माल की हिफाजत करना था। यही कारण है कि बीएसएफ की अधिकांश सीमा चौकियां बीच गांवों में मसलन तनोट, किशनगढ़, घोटारू, लोंगेवाला में है, जहां से बॉर्डर काफी दूर पड़ता था।
पाकिस्तान से तस्करी के जरिए आता था सोना
राजस्थान से सटी सीमा पर पहले सोने की तस्करी बहुतायत में होती थी। यह सोना खाड़ी से पाकिस्तान के रास्ते यहां पहुंचता था। अफीम, हेरोईन और ऐसेटिक एनहाईड्रेड जैसे मादक पदार्थों की तस्करी भी शुरू हो गई। बाड़बंदी और फ्लड लाइट्स लगने के बाद इस पर लगभग अंकुश लग चुका है। हाल ही बॉर्डर पर इन्फ्रारेड डिवाइस और ३६० डिग्री कोण के विशेष सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। ऊंटों के अलावा जिप्सी, बोलेरो, सेंड स्कूटर से भी गश्त होती है। एेसे में पहले जहां एक महीने में दो तीन तस्कर पकड़े जाते थे वहीं अब साल में भी बमुश्किल से दो तीन मामले बनते हैं।
अब तो ड्रोन का आना भी संभव नहीं
बॉर्डर पर तीन-चार महीने पहले ही एंटी ड्रोन टेक्नोलॉजी लगाई गई है जो ड्रोन की फ्रीक्वेंसी को पकड़कर उसे जाम करके नीचे गिरा देती है। धीरे-धीरे पूरा बॉर्डर पर सुरक्षा की अभेद्य दीवार में बदलता जा रहा है।
१९७१ की लड़ाई के बाद बदले हालात
सीमा के हालात खासतौर पर १९७१ के भारत-पाक युद्ध के बाद बदलने शुरू हुए। ओपन बॉर्डर की वजह से ही पाकिस्तान ने इस लड़ाई में लोंगोवाला के रास्ते घुसपैठ कर रामगढ़ में नाश्ता, जोधपुर में लंच और दिल्ली में डिनर का दुस्साहसी सपना संजोया था। बाद में इसी कहानी पर बॉर्डर फिल्म भी बनी। पाक को करारी हार मिली और लोंगोवाला में उसके टैंकों का कब्रिस्तान बन गया। इसके बाद सीमा पर न सिर्फ बीएसएफ की नफरी बढ़ी, बल्कि सीमा चौकियों की संख्या और दायरा बढ़ाया गया। फिर सीमा अपराध भी पकड़ में आने लगे। पंजाब में आतंकवाद के दौर में राजस्थान से सटी सीमा से भी घुसपैठ और हथियार तस्करी की कोशिशें पकड़ी गई। इस दौरान केंद्र सरकार ने पंजाब से सटी सीमा पर बाड़बंदी शुरू करवाई और आज राजस्थान समेत समूचे भारत-पाक बॉर्डर पर तारबंदी के चलते परिंदा भी पर नहीं मार सकता।
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