पीजी में प्रवेश के लिए परीक्षा कराने के लिए हड़ताल करवाना पड़ा मंहगा गुरदीप सिंह ने पत्रिका को बताया कि 1989 में बीकानेर के एसएन मेडिकल कॉलेज में छात्रसंघ महासचिव रहते उन्होंने मेडिकल पीजी में प्रवेश के लिए परीक्षा कराने के लिए हड़ताल कराई थी। उसकी नाराजगी 1991 में एमबीबीएस पूरी करने पर झेलनी पड़ी और अब जाकर एमबीबीएस पास की मार्कशीट मिल पाई है।
हुआ यों कि 26 अप्रेल 1991 को एमबीबीएस परिणाम आया और एक मई 1991 को एमबीबीएस पास की मार्कशीट भी मिल गई। 28 मई 1991 को राजस्थान विवि ने दो विषयों में जीरो अंक बता गांधीनगर थाने में फर्जकारी की एफआइआर दर्ज करा दी। हाईकोर्ट में 1991 में याचिका दायर की। उस समय वकील के रूप में आरएम लोढ़ा की सेवाएं लीं जो उन्हीं दिनों न्यायाधीश बन गए और बाद में सीजेआइ पद तक पहुंचे। हाईकोर्ट ने मामला सिंडीकेट को भेज दिया। सिंडीकेट ने 10 साल में कमेटी ही बनाई।
डॉ. गिरेन्द्र पाल की कमेटी ने परीक्षा के समय की उपस्थिति शीट मंगाई। मार्कशीट न मिलने पर 2006 में गुरदीप ने फिर हाईकोर्ट की शरण ली। कोर्ट के निर्देश पर पुनर्मूल्यांकन के लिए ट्रायल कोर्ट के कब्जे से कॉपियां मंगाई। नतीजा यह रहा कि 2007 में दोनों विषयों में अंक जीरो से बढ़कर 75 प्रतिशत अंक हो गए पर विवि ने प्रेक्टिकल अंक नहीं दिए। इस पर 2008 में फिर याचिका दायर की, जिस पर 16 फरवरी-17 को आदेश आया कि 7 दिन में एमबीबीएस पास की मार्कशीट दी जाए।
विवि ने हाईकोर्ट की खंडपीठ में अपील दायर की व उसे एकलपीठ के आदेश पर 2017 में ही स्थगन मिल गया। इस बीच 6 अगस्त 18 को गांधीनगर थाने में दर्ज आपराधिक मामले में जयपुर की ट्रायल कोर्ट ने गुरदीप को बरी कर दिया।
इस दौरान हाईकोर्ट की एकलपीठ में अवमानना याचिका लंबित रही। एक मार्च 2019 को हाईकोर्ट की खंडपीठ की सख्ती देखकर विवि ने अपील वापस ले ली। अवमानना याचिका पर फिर सुनवाई शुरू हो गई। पिछली सुनवाई पर हाईकोर्ट ने विवि से गुरदीप को मार्कशीट देने को कहा।
इस दौरान हाईकोर्ट की एकलपीठ में अवमानना याचिका लंबित रही। एक मार्च 2019 को हाईकोर्ट की खंडपीठ की सख्ती देखकर विवि ने अपील वापस ले ली। अवमानना याचिका पर फिर सुनवाई शुरू हो गई। पिछली सुनवाई पर हाईकोर्ट ने विवि से गुरदीप को मार्कशीट देने को कहा।
इसका नतीजा यह रहा कि न्यायाधीश एसपी शर्मा की बैंच में बुधवार को विवि ने याचिकाकर्ता गुरदीप को मार्कशीट सौंप दी। उल्लेखनीय है कि गुरदीप ने बीकानेर स्थित एसपी मेडीकल कॉलेज से वर्ष 1991 में एमबीबीएस किया था। उसी वर्ष एमबीबीएस के आखिरी साल में कॉलेज के प्राचार्य ने गुरदीप के खिलाफ राजस्थान विवि में शिकायत की कि उन्होंने कर्मचारियों के साथ मिल नंबरों में हेरा-फेरी करवाई है। मामले में विवि ने अपने 3 कार्मिकों व गुरदीप के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई। मामला कोर्ट में चला। उसके बाद वर्ष 2018 में जयपुर की अधीनस्थ कोर्ट ने गुरदीप को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
न्याय की जीत, अब नौकरी के लिए संघर्ष 28 साल के कानूनी संघर्ष के बाद एमबीबीएस पास की मार्कशीट पाकर गुरदीप सिंह खुशी से झूम उठे। वह 1991 में 22 साल के थे, अब 50 साल के हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि एमबीबीएस की डिग्री पूरी करने के लिए अब 2 माह की इन्टर्नशिप करनी पड़ेगी। इसके बाद सरकारी सेवा में आने के लिए कानूनी संघर्ष शुरू होगा, क्योंकि अब सरकारी सेवा के लिए आयुसीमा बाधा बनेगी।