आमलकी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना के साथ ही आंवले की भी पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि पूरे विधि-विधान के साथ आमलकी एकादशी का व्रत रखनेवाले को भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी के दिन से ही अधिकांश वैष्णव तीर्थ स्थानों पर 6 दिनी होली उत्सव की शुरुआत हो जाती है।
आमलकी का अर्थ होता है आंवला। इस व्रत में आंवला पूजन का बहुत महत्व बताया गया है। इस दिन आंवला की पूजा कर परिक्रमा की जाती है. कहते हैं कि इसी दिन लक्ष्मीजी के आंसू से आंवले के पेड़ की उत्पत्ति हुई थी। मान्यता है कि आंवले के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। आंवले के ऊपरी भाग में ब्रह्माजी, मध्य में शिव और जड़ में भगवान विष्णु निवास करते हैं।
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर आंवले के पेड़ की पूजा करने, इसका सेवन करने, दान देने और इसके पौधे रोपने का विधान है। इससे अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु ने ही आंवले को आदि वृक्ष के रूप में प्रतिस्थापित किया था। पद्म पुराण में कहा गया है कि आमलकी एकादशी के दिन आंवला और विष्णुजी की पूजा करने से मोक्ष प्राप्त होता है।