लोकसभा चुनावों में महिलाओं की उम्मीदवारी पर गौर करें तो वर्ष 1951-52 में 43 महिलाएं चुनाव लड़ीं, जिनमें से 22 जीतने में कामयाब रहीं। महिलाओं का जीत प्रतिशत 51.16 रहा। इसके बाद दूसरे से पांचवें लोकसभा चुनावों तक महिलाओं का जीत प्रतिशत 43 से 49 के बीच रहा। वर्ष 1977 के चुनाव में यह गिरकर करीब 27 प्रतिशत पर आ गया।
साल 1991 के लोकसभा चुनावों में 330 महिलाएं चुनाव लड़ीं, जिनमें से 39 जीतने में कामयाब रहीं। 1996 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं की उम्मीदवारी बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई, लेकिन जीत प्रतिशत 6.68 पर आ गिरा। इस चुनाव में 599 महिला प्रत्याशियों में से 40 ही सांसद बन पाई। यह लोकसभा चुनाव के इतिहास में महिला उम्मीदवारों की जीत का सबसे कम प्रतिशत रहा।
जब महिला प्रधानमंत्री, तब भी स्थिति नहीं थी अच्छी
चौंकाने वाली बात यह है कि जब देश की प्रधानमंत्री खुद महिला रही, तब भी लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या अच्छी नहीं थी। वर्ष 1967 में महिला सांसद 5.58 प्रतिशत ही थीं, वहीं 1971 में महज 5.41 फीसदी ही थी। 1980 में भी आंकड़ा 5.29 प्रतिशत पर अटक गया। इन तीनों ही चुनावों के बाद इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी थीं।
लोकसभा चुनावों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहने की एक वजह यह भी है कि देश के प्रमुख राजनीतिक दल भी महिला उम्मीदवारों को कम ही टिकट देते हैं। पिछले तीन लोकसभा चुनावों के आंकड़े देखें तो कांग्रेस ने जहां 2004 में 45 से लेकर 2014 में 57 महिला उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा, वहीं भाजपा ने 2004 में 30, 2009 में 44 और 2014 में 37 महिलाओं को टिकट दिए। वर्ष 2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की 37 में से 28 महिला उम्मीदवार जीतने में सफल रहीं।