अभी कृषि और bpl उपभोक्ताओं को बिल में सालाना 11500 करोड़ रुपए से ज्यादा सब्सिडी दी जा रही है। सरकार ने सब्सिडी तो दे दी, लेकिन अब तक करीब 11 हजार करोड़ रुपए डिस्कॉम्स को दिए ही नहीं।
इनमें बॉन्ड राशि भी शामिल है। नतीजा, डिस्कॉम्स ने भी इस बकाया राशि को घाटा मानते हुए टैरिफ बढ़ाने की पीटिशन में शामिल करने की तैयारी कर ली है। यानि, ऐसा हुआ तो बिजली दर में बढ़ोतरी का भार लोगों पर ज्यादा पड़ेगा।
ऊर्जा विभाग इसमें मध्यस्थता कर रहा है लेकिन अब तक मसला सुलझा नहीं सका है। नतीजा, अब यह मामला राज्य विद्युत विनियामक आयोग के पास पहुंचेगा। हालांकि, फैसला कुछ भी हो, लेकिन बिजली दर बढऩे में इस बकाया राशि को शामिल करना तय है। इससे आम लोगों की परेशानी बढ़ेगी।
इस तरह बांट रहे रेवड़ियां
विनियामक आयोग ने कृषि कनेक्शन की विद्युत दर 4.75 रुपए प्रति यूनिट ( Electricity Bill Unit Price ) तय कर रखी है। इसमें से 3.85 रुपए सब्सिडी है। कृषि उपभोक्ता से 90 पैसे प्रति यूनिट ले रहे हैं। इससे सालाना 10850 करोड़ रुपए का भार पड़ रहा है।
बीपीएल सब्सिडी
करीब 25 लाख उपभोक्ता शामिल हैं और 50 यूनिट प्रति माह तक बिजली उपभोग करने वालों को 1.90 रुपए प्रति यूनिट की सब्सिडी दी जा रही है। इन्हें केवल 1.60 रुपए प्रति यूनिट ही विद्युत उपभोग चुकाना पड़ रहा है।
डीबीटी में
सीधे बिल में सब्सिडी में करीब 13.50 लाख उपभोक्ता शामिल हैं। इन्हें प्रतिमाह 833 रुपए अधिकतम सब्सिडी दी जा रही है, जो सालाना अधिकतम 10 हजार रुपए है। इससे सालाना 1 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का भार पडऩे का आकलन किया गया है। अभी तक पिछले वर्ष नवम्बर से मार्च तक 260 करोड़ रुपए दिए जा चुके है। इनमें भी अभी केवल 5.50 लाख उपभोक्ता शामिल है। बाकी 8 लाख उपभोक्ता को निर्धारित प्रक्रिया पूरी करने के बाद जारी की जाएगी।
1800 करोड़ यूनिट बिजली छीजत
डिस्कॉम जितनी बिजली खरीद रहा है, उसका 25 प्रतिशत से ज्यादा छीजत-चोरी में जा रहा है। जनवरी से मार्च तक डिस्कॉम ने 831.55 करोड़ यूनिट बिजली खरीदी, लेकिन बिलिंग केवल 574.60 करोड़ यूनिट की ही हुई। 257 करोड़ यूनिट बिजली की छीजत-चोरी हो गई। यह भी टैरिफ बढ़ोतरी पीटिशन का हिस्सा होगा। अफसरों का तर्क है कि 25 प्रतिशत में से 6.4 प्रतिशत तो ट्रांसमिशन लॉस है। बाकी 18.6 प्रतिशत बिजली में डिस्ट्रीब्यूशन लॉस व चोरी दोनों शामिल है।
लुभावना प्रयास और जमीनी हकीकत
कांग्रेस सरकार (1998-2003)
बिजली दर ज्यादा होने को लेकर किसानों ने आंदोलन किया। इस दौरान करीब 32 करोड़ रुपए के बिजली के बिल जमा नहीं कराए। किसानों ने तीन दिन तक आंदोलन किया, जिसके बाद सरकार से समझौता हुआ। मीटर से ही कनेक्शन लेने की बाध्यता को विकल्प के रूप में रखा गया और बिजली बिल शुल्क में सब्सिडी दी गई।
भाजपा सरकार (2003-2008)
किसानों पर पूरा फोकस किया गया। यहां तक सीएमओ में मॉनिटरिंग सेल बना। विद्युत कनेक्शन नीति, 2004 बनी, जो 18 सितम्बर को लागू की गई। इस दौरान किसानों को 3.50 प्रति यूनिट की जगह 90 पैसे प्रति यूनिट में बिजली दर से बिजली देना तय हुआ। बाकी विद्युत राशि का भार सरकार ने उठाया।
कांग्रेस सरकार (2008-2013)
विद्युत विनियामक आयोग ने कृषि कनेक्शन की विद्युत दर में बढ़ोतरी की जरूरत मानी, लेकिन सरकार ने किसी तरह का रिस्क नहीं लिया। पूरे कार्यकाल में विद्युत दर में बढ़ोतरी नहीं की गई, सब्सिडी दी जाती रही। सरकार ने भी किसानों को नाराज करने का कोई कदम नहीं उठाया। आम लोगों पर भार बढ़ा।
भाजपा सरकार (2013-2018)
दो बार बिजली शुल्क बढ़ाने का आदेश जारी किया। पहले 2015 और फिर 2017 में 10 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी के आदेश हुए, लेकिन किसानों के संभावित विरोध को देखते हुए आदेश वापस लेने पड़े। राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग ने दर बढ़ोत्तरी की आवश्यकता मानी थी।