जयपुर

मिट्टी की होने के बाद भी पानी में नहीं गलती मूर्ति

मिट्टी की होने के बाद भी पानी में नहीं गलती मूर्तितोप का असर भी उस पर बेअसरयुद्ध से पहले उसके आगे जीत की मांगी जाती थी दुआसीकर के फतेहपुरी गेट पर बिराजमान है यह मूर्तिआस्था और चमत्कारों से भरा है उसका अतीत

जयपुरSep 02, 2019 / 04:21 pm

Rakhi Hajela

मिट्टी की होने के बाद भी पानी में नहीं गलती मूर्ति

गणेश चतुर्थी पर आज हम आपको गणेश जी की उस प्रतिमा के दर्शन करवाते हैं, जो मिट्टी की होने पर भी पानी में नहीं गलती। और जिसके सामने युद्ध में तोप के गोले भी बेअसर साबित हो गए थे। पेश है सीकर से खास पेशकश –

सीकर शहर में फतेहपुरी गेट स्थित गणेशजी के मंदिर की महिमा जितनी अपरंपार है, आस्था और चमत्कारों से भरा उतना ही अनूठा इसका अतीत भी है। जो इस मूर्ति के दिलचस्प तरीके से दो रियासतों से होकर शहर में पहुंचने का गवाह है। जिसकी जड़ सीकर और कासली रियासत की दुश्मनी थी। इतिहासकार महावीर पुरोहित बताते हैं 1840 में जब सीकर में राव देवी सिंह का शासन था, उस समय कासली का शासक पूरणमल था। जो महाबली था। उसने मुल्तान के अजय पहलवान को हराकर बादशाह जहांगीर से कासली की जागीर तोहफे में ली थी। वह राव देवी सिंह के कई महारथियों को मौत के घाट उतार चुका था। ताकत के मद में चूर पूरणमल रोजाना नानी दरवाजे पर आकर भाला मारते हुए राव देवी सिंह को भी युद्ध की चुनौती देता था। इस पर राव देवी सिंह ने पहले तो पूरणमल के मौसेरे भाई अलवर नरेश प्रताप सिंह को मध्यस्थता के लिए कहा लेकिन बात नहीं बनने पर फौजी ताकत से कासली पर हमला बोल दिया। लेकिन, युद्ध में कासली पर दागे गए तोप के सारे गोले बेअसर साबित हुए। इसकी वजह पता करने पर कासली में विघ्न हरण गणेश जी की मूर्ति का होना सामने आया। जो कासली को हर हमले से बचा रही थी। इस पर पंडित.पुरोहितों के कहने पर देवी सिंह ने रणभूमि में ही घुटनों के बल बैठकर उन्हीं गणेश जी की स्तुति कर प्रार्थना शुरू कर दी। जिसमें उन्होंने साम्राज्य विस्तार की बजाय साधु.संतों को परेशान करने वाले अहंकारी पूरणसिंह को उसके पापों की सजा देने के लिए मजबूरन युद्ध किए जाने का जिक्र करते हुए युद्ध में जीत की मनौती मांगी। इसके बाद जब फिर आक्रमण किया तो राव देवी सिंह को युद्ध में जीत हासिल हुई। कासली को सीकर रियासत में शामिल करने के साथ ही विघ्न हरण गणेशजी की मूर्ति को सीकर में फतेहपुरी गेट के पास विजय गणेश के नाम से स्थापित किया गया।
मिट्टी की होने पर भी पानी में नहीं गलती
सीकर में स्थापित होने के बाद से यह मूर्ति हर साल बरसात में पूरी डूबती रही है। लेकिन, कभी भी यह मूर्ति गली नहीं। हालांकि अब मूर्ति को पानी से बचाए रखने का इंतजाम कर दिया गया है। विजय गणेशजी की मूर्ति कासली से भी पहले पाटोदा में थी। जो पाटकद्वव के नाम से जाना जाता था। यहां भी इस मूर्ति ने कई चमत्कार दिखाए। जिसके बाद इसेे कासली ले जाकर विघ्न हरण के रूप में स्थापित किया गया। वहां से यह सीकर पहुंची। पाटोदा में यह मूर्ति कब.कहां से आई या बनी इसका इतिहास उपलब्ध नहीं है। ऐसे में तीन रियासतों में पहुंची इस मूर्ति के 250 साल से भी ज्यादा पुरानी होने की बात कही जाती है।
 
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