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मांसाहार छोड़ें तो खाद्य पदार्थों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन होगा 60% तक कम

locationजयपुरPublished: Jan 13, 2020 01:00:38 am

Submitted by:

Vijayendra

ऑक्सफोर्ड और मिनेसोटा विवि का अध्ययन : रेड मीट पर्यावरण के लिए 35 गुना घातक

मांसाहार छोड़ें तो खाद्य पदार्थों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन होगा 60% तक कम

मांसाहार छोड़ें तो खाद्य पदार्थों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन होगा 60% तक कम

लंदन.
बेशक स्टेक और चॉप स्वादिष्ट होते हैं, लेकिन धरती और हमें दोनों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। एक अध्ययन में सामने आया है कि सामान्य भोजन के मुकाबले रेड मीट पर्यावरण के लिए 35 गुना अधिक घातक होता है। यदि सभी लोग मांसाहार छोड़ दें तो खाद्य पदार्थों के कारण होने वाला कार्बन उत्सर्जन 60 प्रतिशत तक कम हो जाएगा।
ऑक्सफोर्ड और मिनेसोटा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार के भोजन के कारण पडऩे वाले पर्यावरणीय बोझ और चिकित्सा खर्च का अनुमान लगाया है। इसमें सामने है कि जो व्यक्ति रोजाना 50 ग्राम प्रसंस्कृत रेड मीट खाता है, सामान्य व्यक्ति की तुलना में उसकी मौत की 41 प्रतिशत अधिक आशंका रहती है। पर्यावरण पर भी मांसाहार के घातक परिणाम होते हैं। 100 ग्राम सब्जी के मुकाबले 50 ग्राम लाल मांस उत्पादित करने में 20 गुना ज्यादा ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन होता है। पूरी प्रक्रिया की तुलना करें तो इसमें 100 गुना ज्यादा भूमि का उपयोग भी होता है।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 70% तक कम
अध्ययन के मुताबिक यदि एक अमरीकी 2300 कैलोरी का मांसाहार लेता है और वह शाकाहारी बन जाता है तो इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सालाना 70 प्रतिशत तक कमी होगी। चूंकि जानवर मीथेन उत्सर्जक होते हैं, इसलिए यदि वह व्यक्ति डेयरी उत्पाद (पनीर, दूध आदि) खाना बंद करे तो इससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में और कमी हो सकती है। क्योंकि जानवरों की जरूरत कम हो जाएगी।

शाकाहार बनाम मांसाहार

विशेषज्ञ कहते हैं कि दुनिया में 14 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए मवेशी जिमेदार हैं। यह उनकी जुगाली, मल और उन्हें खाने के लिए दी जाने वाली चीजों के उत्पादन से होता है।
-पोषण के लिहाज से देखें तो जानवरों से मिलने वाले मांस, अंडा और दूध जैसे खाद्य उत्पाद वैश्विक प्रोटीन की आपूर्ति में सिर्फ 37 प्रतिशत का योगदान देते हैं।
-यदि मवेशियों का एक देश बना दिया जाए तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वे चीन और अमरीका के बाद तीसरे स्थान पर होंगे।
-मवेशियों से जुड़ा उद्योग सबसे बड़ी तेल कंपनियों से भी ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहा है। 20 बड़ी मीट और डेयरी कंपनियों का उत्सर्जन जर्मनी या ब्रिटेन जैसे देशों भी ज्यादा है।
-मवेशी मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डायऑक्साइड छोड़ते हैं। कार्बन डाय ऑक्साइड से कहीं ज्यादा गर्म मानी जाने वाली मीथेन आम तौर पर डकार के जरिए छोड़ी जाती है।
सभी मांस छोड़ दें तो…
अगर दुनिया में सबसे ज्यादा मीट खाने वाले दो अरब लोग शाकाहार खाने की तरफ रुख कर लें तो इससे भारत से दोगुने आकार वाले इलाके को बचाया जा सकता है।
-बीन्स के मुकाबले मांस से एक ग्राम प्रोटीन हासिल करने के लिए 20 गुना ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है। इसमें ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी 20 गुना ज्यादा है।
-बीन्स के मुकाबले चिकन से एक ग्राम प्रोटीन हासिल करने के लिए तीन गुना ज्यादा जमीन के साथ साथ तीन गुना ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।
-अमरीकी लोग हर साल 10 अरब बर्गर खाते हैं। अगर उनके बर्गर में मांस की जगह मशरूम डाल दिया जाए तो इससे वैसा ही असर होगा जैसे 23 करोड़ कारें सडक़ों से हटा दी जाएं।
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