देश भर में हो रहा विरोध
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले 6 धर्मों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के प्रावधान सरल किए गए हैं। इस कानून के विरोधी इसे अंसवैधानिक बता रहे हैं। उनके मुताबिक यह संविधान में दिए गए समता के अधिकार का हनन करता है और कानून ‘संविधान के मूलभूत ढांचेÓ के खिलाफ है। सीएए के पास होने और एनआरसी की संभावनाओं पर भी बहुत लोग इसके खिलाफ हैं। असम मे हुई एनआरसी में लाखों मूल निवासियों द्वारा दस्तावेज पेश नहीं हो पाए। देशव्यापी एनआरसी में भी ऐसा ही अंदाजा लगाया जा रहा है।
कोर्ट में दी जा सकती है चुनौती
कश्यप ने कहा कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसे किसी भी लोकतांत्रित तरीके से चुनौती दी जा सकती है। वहीं जब कश्यप से पूछा गया कि जिन लोगों ने इस बिल का संसद में विरोध किया उनकी संख्या कम थी, इसपर उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने संसद में इस बिल का समर्थन किया वो अब इसका विरोध कर रहे हैं, ये लोग वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वह जनता के प्रतिनिधि नहीं हैं, जहां तक संविधान की बात है कि यह फैसला गलत है या सही लेकिन यह फैसला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने लिया है। कश्यप ने पूछा कि क्या यह ठीक है कि आर्थिक मंदी और दूसरी समस्याओं का सामना कर रहा देश शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल दें?
बहुत लोगों का मानना है कि बड़ी संख्या में लोग दस्तावेज न उपलब्ध करवाने की स्थिति में गैर-नागरिक घोषित कर दिए जाएंगे। इस स्थिति में मुस्लिमों को छोड़कर बाकी 6 धर्मों के लोगों को नए नागरिकता संशोधन अधिनियम की आड़ मिल जाएगी, लेकिन मुस्लिम अपनी नागरिकता साबित करने में नाकामयाब रहेंगे।