जयपुर

विशेषज्ञ ने कहा था-कैब में न लें धर्मों का नाम

नागरिकता संशोधित विधेयक में केवल ‘प्रताडि़त अल्पसंख्यकÓ ही कहना पर्याप्त होगा

जयपुरDec 29, 2019 / 01:16 am

Vijayendra

विशेषज्ञ ने कहा था-कैब में न लें धर्मों का नाम

नई दिल्ली
संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने नागरिकता संशोधित विधेयक (कैब) में धर्मों का जिक्रन करने के लिए कहा था। उन्होंने सरकार से कहा था कि वे सिर्फ ‘प्रताडि़त अल्पसंख्यकÓ शब्द का इस्तेमाल करें। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सामने 2016 में अपनी बात रखते हुए कश्यप ने कहा था कि प्रताडि़त अल्पसंख्यक शब्द में वह सभी लोग शामिल हो जाएंगे, जिन्हें सरकार शामिल करना चाहती है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कश्यप ने कहा-मेरा विचार यह था कि इस शब्द के इस्तेमाल का वही मतलब होगा, जो सरकार चाहती थी। मैंने संसद की स्थायी समिति से यह कहा भी था। यह जरूरी नहीं था कि वे हिंदू, सिख, ईसाई आदि लोगों को शामिल करें। बिना इनका नाम लिए भी सरकार का उद्देश्य पूरा हो सकता था। कश्यप सातवीं, आठवीं और नौवीं लोकसभा में महासचिव थे। कश्यप के मुताबिक कैब के दोनों सदनों से पास होने और राष्ट्रपति द्वारा इसे मंजूरी मिलने के बाद यह कानून बन गया है। अब केवल सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही इसे रोका जा सकता है। या फिर संसद दोबारा कानून में संशोधन कर इसे ‘सहीÓ करे। उल्लेखनीय है कि जेपीसी की यह रिपोर्ट जनवरी में संसद के सामने रखी गई थी। इस रिपोर्ट में सुभाष कश्यप के उठाए मुद्दे थे, लेकिन उसमें कश्यप का हवाला नहीं दिया गया था।

देश भर में हो रहा विरोध
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले 6 धर्मों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के प्रावधान सरल किए गए हैं। इस कानून के विरोधी इसे अंसवैधानिक बता रहे हैं। उनके मुताबिक यह संविधान में दिए गए समता के अधिकार का हनन करता है और कानून ‘संविधान के मूलभूत ढांचेÓ के खिलाफ है। सीएए के पास होने और एनआरसी की संभावनाओं पर भी बहुत लोग इसके खिलाफ हैं। असम मे हुई एनआरसी में लाखों मूल निवासियों द्वारा दस्तावेज पेश नहीं हो पाए। देशव्यापी एनआरसी में भी ऐसा ही अंदाजा लगाया जा रहा है।

कोर्ट में दी जा सकती है चुनौती
कश्यप ने कहा कि इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसे किसी भी लोकतांत्रित तरीके से चुनौती दी जा सकती है। वहीं जब कश्यप से पूछा गया कि जिन लोगों ने इस बिल का संसद में विरोध किया उनकी संख्या कम थी, इसपर उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने संसद में इस बिल का समर्थन किया वो अब इसका विरोध कर रहे हैं, ये लोग वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वह जनता के प्रतिनिधि नहीं हैं, जहां तक संविधान की बात है कि यह फैसला गलत है या सही लेकिन यह फैसला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों ने लिया है। कश्यप ने पूछा कि क्या यह ठीक है कि आर्थिक मंदी और दूसरी समस्याओं का सामना कर रहा देश शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल दें?
लोगों को इस बात का भय
बहुत लोगों का मानना है कि बड़ी संख्या में लोग दस्तावेज न उपलब्ध करवाने की स्थिति में गैर-नागरिक घोषित कर दिए जाएंगे। इस स्थिति में मुस्लिमों को छोड़कर बाकी 6 धर्मों के लोगों को नए नागरिकता संशोधन अधिनियम की आड़ मिल जाएगी, लेकिन मुस्लिम अपनी नागरिकता साबित करने में नाकामयाब रहेंगे।
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