उसने कुछ समय पहले विनोद से मुलाकात की और बताया कि उसे डिपार्टमेंट में कार लगानी है और वह बैंक से खुद की आईडी से लोन नहीं ले सकता। उसने खुद को इन्कम टैक्स में अफसर बताया और अपनी आईडी भी दिखाईं। विश्राम मीणा ने विनोद से सौ रुपए के स्टांप पर साइन कर पौने सात लाख रुपए ले लिए। इनको ब्याज समेत लौटाने की कहकर तय तारीख का चैक भी दे दिया।
लेकिन तारीख गुजरने के बाद भी न तो पैसा ही मिला और न ही विश्राम ने फोन उठाया। आखिर विनोद पुलिस के पास पहुंचा और केस दर्ज कराया। एक बार तो पुलिस भी फर्जी इनकम टैक्स अफसर के नाम से दंग रह गई। बाद में पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरु कर दी है। पीडित ने पुलिस को बताया कि उसे नहीं पता था कि उसका दूर का रिश्तेदार फर्जी है। वह इनकम टैक्स अफसर नहीं है। वह इनकम टैक्स अफसर नहीं है।
फर्जी होने के बाद भी उसका इतना रौब था कि हर कोई उसे अफसर ही समझता था। उसके पास जो कार्ड मिला उसे सब असली ही मानते थे।