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Fall Armyworm : खतरे में मक्का की फसल

locationजयपुरPublished: Jul 10, 2020 05:48:00 pm

Submitted by:

Rakhi Hajela

किसान नहीं चेते तो हो सकता है बड़ा नुकसानअसम और नागालैंड के बाद चित्तौड़ में कीडे़ का प्रवेश

Fall Armyworm : खतरे में मक्का की फसल

Fall Armyworm : खतरे में मक्का की फसल

असम और नागालैंड में तबाही मचाने के बाद अब फॉल आर्मीवर्म ने राजस्थान के किसानों के सामने संकट खड़ा कर दिया है। कीड़े का प्रवेश के राजस्थान के चित्तौड़ में हो चुका है और यहां किसानों मक्का की फसल पर इस कीड़े का प्रकोप हुआ है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान समय रहते नहीं चेते तो बड़ा नुकसान हो सकता है। आपको बता दें कि स्थानीय कृषि अधिकारियों की टीम ने हाल ही में जिले के रूपाखेड़ी ग्राम पंचायत के हापाखेड़ी गांव में कुछ खेतों में मक्का की फसल का निरीक्षण किया। तब पता चला कि फॉल आर्मीवर्म बड़ी तादाद में मक्का की फसल को नुकसान पहुंचा रहा है।
सहायक कृषि अधिकारी प्रशांत जाटोलिया ने बताया कि यह बहु फसल भक्षी कीट है, जो 80 से ज्यादा फसलों को नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की मादा मोथ मक्का के पौंधों की पत्तियों और तनों पर एक बार में 50 से 200 अंडे देती है। यह अण्डे तीन से चार दिन में फूट जाते हैं और १४ से २२ दिन तक लार्वा की अवस्था में रहते हैं। लार्वा के सिर पर उल्टे वाई आकार का सफेद निशान दिखाई देता है। लार्वा पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाता है, जिससे पत्तियों पर सफेद धारियां व गोल.गोल छिद्र नजर आते हैं। लार्वा बुवाई से लेकर पौधे की हार्वेस्टिंग अवस्था तक नुकसान पहुंचाता रहता है। मुख्य रूप से दोपहर यह कीट फसल को नुकसान पहुंचाता है। लार्वा अवस्था पूर्ण हो जाने के बाद प्यूपा अवस्था में बदलकर यह कीट भूरे से काले रंग का हो जाता है। यह अवस्था सात से चौदह दिन तक रहती है। इसके बाद यह पूर्णनर व मादा मोथ बनता है। यह कीट मक्का की फसल में तीन जीवन चक्र पूर्ण कर लेता है। इस कीट की मादा एक रात में 100 से 150 किलोमीटर दूरी तय करते हुए संक्रमण को दूर.दूर तक फैला सकती है।
पहले ही चेताया था पत्रिका टीवी ने

आपको बता दें कि पत्रिका टीवी ने इस कीट को लेकर पहले ही किसानों को चेताया था। २४ जून को अब अमेरिकन कीड़े मचा रहे तबाही खबर के जरिए किसानों को इस कीट को लेकर जानकारी दी थी और बताया था कि फॉल आर्मीवर्म अमेरिका के उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक कीट है। यह कीट एशियाई देशों में फसलों को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। अमेरिकी मूल का यह कीट दुनिया के अन्य हिस्सों में भी धीरे.धीरे फैलने लगा है। पहली बार 2016 की शुरुआत में मध्य और पश्चिमी अफ्रीका में पाया गया था और कुछ ही दिनों में लगभग पूरे उप.सहारा अफ्रीका में तेजी से फैल गया। दक्षिण अफ्रीका के बाद यह कीट भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्याँमार, थाईलैंड और चीन के यूनान क्षेत्र तक भी पहुंच चुका है।
किसानों को करने होंगे यह उपाय

सहायक निदेशक डॉक्टर जाट ने किसानों को सलाह दी है कि इस कीट पर प्रभावी नियंत्रण के लिए बारीक रेत या राख का मक्का के पौधेे पर भुरकाव करें। इसके अलावा ट्राईकोगामा ट्राईकोकॉड का उपयोग करने, प्रकाश पाश फेरोमोन ट्रेप्स का उपयोग करने, नीम कीटनाशक.अजारडेक्टिन 1500 पीपीएम का घोल 2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर छिड़काव करने की सलाह दी गई है। जैविक कीटनाशक के रूप में बीटी एक किलो प्रति हेक्टेयर अथवा बिवेरिया बेसियाना 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव सुबह अथवा शाम के समय करें। लगभग 5 प्रतिशत प्रकोप होने पर रासायनिक कीटनाशक के रूप में फ्लूबेन्डामाइट 20, डब्ल्यूडीजी 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर या स्पाइनोसेड 45 ईसी, 200 से 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर या इथीफेनप्रॉक्स 10 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर में कीट प्रकोप की स्थिति अनुसार 15से 20 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव बुवाई के बाद 15 दिन की अवधि में अवश्य करें। किसानों को सलाह दी गई है कि वे नियमित रूप से खेतों का भ्रमण कर कीटों की पहचना करें, ताकि समय रहते इन पर प्रभावी नियंत्रण कर आर्थिक नुकसानसे बचा जा सके।
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