एशियाई खेलों में अलगोजा बजा सबको किया था मोहित
मंत्रमुग्ध हो राजीव गांधी ने किया था अपनी शादी में शरीक
राजस्थान के इस शख्स ने अलगोजे की ऐसी तान छेड़ी कि राजीव गांधी ने बना लिया था अपना बाराती
जयपुर/ बाड़मेर। दुनिया ने जिसकी धुन को सुना, लेकिन जब आंधी में उनके झोंपड़े की छत उड़ी तो अब उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। संबंधित अधिकारी अपने कर्तव्य से भाग रहे है। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों, खासतौर से आदिवासी क्षेत्रों में बजाया जाने वाला वाद्य यन्त्र अलगोज़ा इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है। कभी ये यन्त्र दुनिया भर में राजस्थान की अलग ही पहचान कराता था। वहीं अलगोज़ा को बजाने वाले वादक भी अब इस कला को बचाने की गुहार सरकार से कर रहे हैं।
अलगोजे की ऐसी तान छेड़ी कि राजीव गांधी ने बना लिया था अपना बाराती बाड़मेर जिले के मांगता गांव निवासी धोधे खां की पहचान काफी पुरानी और कामयाबी की सूची बेहद लम्बी है। इन्होंने वर्ष 1982 में हुए एशियाई खेलों में लोक वाद्ययंत्र अलगोजा बजाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था। अलगोजे की धुन सुनकर राजीव गांधी ने इन्हें अपना बाराती बनाया था। आकाशवाणी पर गूंजने वाली अलगोजे की धुन भी इन्हीं की देन है।
लेकिन आज धोधे खां गरीबी और परेशानी में जी रहे हैं। पिछले दिनों आया तूफान इनके झोपड़े की छत को उड़ा ले गया। मदद नहीं मिलने से हताश धोधे खां कहते हैं, तूफान आया था छत ले गया…अब बारिश आ गई तो दीवारें भी ले जाएगी।
अपनी पीड़ा बयान करते हुए 87 वर्षीय खां कहते हैं कि राज्य में अलगोजा वादन को प्रोत्साहन नहीं मिलने से अलगोजा वादन की छाप कमजोर पड़ती जा रही हैं और इसमें शामिल लोग रोजीरोटी के संकट के चलते इससे दूर होते जा रहे हैं।
धोधे खां ने कहा कि उन्होंने अलगोजा से नाम तो खूब कमाया लेकिन आज इस कला को बचाने वाला कोई नहीं हैं और न ही इसके लिए सरकार या अन्य किसी द्वारा कोई सहायता एवं प्रयास किया जा रहा हैं। उन्होंने मांग की कि उनकी अलगोजा परम्परा को जीवित रखने के लिए योजना के तहत प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
मैं भी सोचता हूं अल्लाह देगा, बंदों से क्या मांगना? धोधेखां कहते हैं कि एक माह पहले छत के मुआवजे के लिए प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। बार-बार कहना-मांगना अच्छी बात नहीं। हालात सबको पता हैं। कभी कहते हैं पटवारी आएगा- कभी बोलते हैं ग्रामसेवक आएगा? वे अभी अपनी पेंशन पर निर्भर हैं। उनका कहना है कि अब मैं भी सोचता हूं अल्लाह देगा, बंदों से क्या मांगना? उनके पास एक अलगोजा है जो पाकिस्तान से 70 साल पहले लाया था।
आज दो वक्त की राटी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो रहा है अलगोजा मुंह में सांस फुलाकर इतनी मेहनत से बजाया जाता है कि फेफड़ों की जान निकल जाती है। उम्र के इस पड़ाव पर भी धोधे यह कमाल आसानी से कर लेते हैं। 70 साल से अलगोजे की साधना करने वाले इस कलाकार को आज दो वक्त की राटी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो रहा है। ऐसे में वे मकान ठीक कराए या अपना पेट भरें। ये उनके लिए परेशानी का सबब बन गया है।