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सपनों के भरोसे किसान…चाहिए स्थायी समाधान

locationजयपुरPublished: Jul 14, 2019 08:31:33 pm

Submitted by:

rajendra sharma

किसानों को रिझाने का प्रयास हर पार्टी की सरकार ( Farmers ) करती है, चाहे वह केंद्र की हो या किसी राज्य की। फिर भी, किसानों ( Farmers ) के हालात में कोई खास बदलाव नहीं हुआ। गत 5-6 वर्षों में गिरती कृषि विकास दर भी इस बात की तस्दीक करती है कि इस वर्ग को सब्जबाग तो खूब दिखाए गए, लेकिन थाली खाली ही रही।

Farmer

सपनों के भरोसे किसान…चाहिए स्थायी समाधान

किसानों को खुशहाल बनाने का दावा तो विभिन्न सरकारें करती रही हैं, लेकिन उनकी समस्याओं का कोई स्थायी समाधान ढूंढ़ने की बजाय उन्हें सिर्फ सपने दिखाए गए। हाल ही में केंद्र की मोदी सरकार ( Centeral government ) और राजस्थान गहलोत सरकार ( gehlot government ) ने बजट 2019—20 पेश किया। उसमें फिर इस वर्ग के लिए घोषणाएं तो बहुत लुभावनी हुई, लेकिन ये कितनी अमलीजामा पहन पाती हैं, यह मार्च 2020 में सामने आएगा।
देखा जाए तो देश की करीब 60 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर कृषि पर ही निर्भर है। तो, देश के करीब 53 फीसदी किसानों पर कर्ज का बोझ है, क्योंकि करीब 70 प्रतिशत किसानों की आय उनके आवश्यक खर्च से कम है। ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार ( Centeral Government ) का 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने का राग अलापना महज थोथी बात ही लगती है।
कैसे होगी दुगनी आय ( Double Income )
आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2013 में 1121 धान का भाव मंडी में 4800 रुपए प्रति क्विंटल था, जो 2017 में लुढ़क कर 2200 रुपए हो गया। वर्ष 2018 में बढ़ा, लेकिन 2700-2800 रुपए प्रति क्विंटल ही हुआ। वर्ष 2019 में यह धान 3200- 3300 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से बिका। जाहिर है, अभी तो भाव 2013 यानी 6 साल पहले के स्तर पर भी नहीं ले जा सके, तो 2022 तक के लिए क्या उम्मीद की जा सकती है। किसान की आय 2022 तक दुगनी करने के लिए आज से 2022 तक इसका भाव 9600 होना चाहिए था। तो, कृषि विकास दर भी गिर रही है। वर्ष 2014 में 4.2 प्रतिशत थी, जो 2018 में 2.5 प्रतिशत तक गिर गई। कमोबेश, 2019 में भी कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है, यही कोई 3 फीसदी के आसपास है। ऐसे में किसानों की आय कैसे दुगनी होगी, क्योंकि इसके लिए कृषि विकास दर वर्ष 2022 तक 15 प्रतिशत चाहिए। जो वर्तमान हालात में असंभव लगता है। वह भी ऐसे में जब सरकार के पास इसके लिए कोई सोलिड रोड मैप यानी प्लानिंग आज भी नहीं है।
राजस्थान के बजट में किसान
राजस्थान सरकार ने बजट ( rajasthan budget ) में किसानों के लिए कई महती घोषणाएं की हैं। मसलन, एक हजार करोड़ के कृषक कल्याण कोष के गठन करने, दो करोड़ रुपए खर्च कर किसान के लिए ज्ञानधारा कार्यक्रम शुरू करने, किसानों को 16 हजार करोड़ के अल्प कालीन ऋण देने, 700 से ज्यादा जीएसएस में गोदाम बनाने, किसानों की एक लाख 10 बीघा जमीन रहन मुक्त करने, वन टाइम सैटलमेंट के जरिए ऋण माफी का केंद्र से आग्रह करने, कुसुम योजना के तहत सोलर पंप सेट प्रदान करने, कृषि कनेक्शन के लिए अलग से फीडर बनाने की 5200 करोड़ की योजना का भी एलान किया गया है।
केंद्रीय बजट में किसान
केंद्र सरकार ने किसान को अन्नदाता नाम देते हुए उसको ऊर्जा दाता बनाने के लिए कई कार्यक्रम चलाने, को-ऑपरेेेेटिव के जरिए डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने, जीरो बजट खेती पर जोर देने, किसानों की आय दोगुनी करने, पीएम मत्स्य संपदा योजना बनाने, सहकारिता के जरिए दूध और दूध उत्पादों के कारोबार को प्रोत्साहन देने, 10 हजार नए किसान उत्पादक संगठन बनाने, गांवों को बाजार से जोड़ने वाली सड़कों को अपग्रेड करने, वर्ष 2019-20 के दौरान 100 नए बांस, शहद, खादी कलस्टर की स्थापना करने के एलान किए हैं।
समर्थन मूल्य गारंटी कानून
केंद्र सरकार के बजट में फिर से किसानों की फसल खरीद गारंटी कानून बनाने की बात तक नहीं की गई। इधर किसानों का कहना है कि उनकी फसल के लिए लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य पर खरीद गारंटी कानून बना दे, तो हमें न कर्जमाफी चाहिए और न ही सरकार की ओर से कोई खैरात।
कहां से आएगा पानी
बहरहाल, इन दोनों बजट पर गौर करें तो इनमें सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता और उसकी बढ़ोतरी के लिए कोई ठोस योजना का एलान नहीं है। दरअसल, दुनिया का 4 फीसदी पानी भारत के हिस्से में आता है, जबकि आबादी 18 प्रतिशत है। जाहिर है,पानी के स्रोत बढ़ाने जरूरी हैं, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता। और तो और, इसमें से भी 68 प्रतिशत पानी सिंचाई के लिए उपयोग में आता है, यह भी जरूरत से बहुत कम है। यानी न तो पीने के पानी के संसाधन ही पर्याप्त हैं और न ही सिंचाई के स्रोत। इतना ही नहीं, भूमिगत जल का दोहन भी इतना बेतरतीब हुआ कि हजारों जोन डार्क घोषित करने पड़े। न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने इस विकट समस्या के समाधान की बात की। ऐसे में किसान की आय, फसल और उपज का समर्थन मूल्य की बात करना भी बेमानी सा लगता है।
चौंकाने वाले हैं आत्महत्या के आंकड़े
दिनोदिन गांव-किसानी के हालात बिगड़ने के कारण किसानों का पलायन बढ़ रहा है। साल-दर-साल आत्महत्या ( Farmer’s suicide ) के आंकड़े बढ़ रहे हैं। देश में पिछले 20 सालों में तकरीबन तीन लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली है। साफ है, सरकारें किसानों की समस्याओं के स्थायी समाधान ढूंढ़ने में विफल रही हैं।
बहरहाल,विशेषज्ञों के मुताबिक इसका स्थायी इलाज करने के लिए अर्थव्यवस्था को बदलने की दरकार है। देश में जो सिंचाई ( irrigation ) की व्यवस्था है, उसे बदलने की आवश्यकता है, साथ ही खेती के तरीकों के बदलने की ज़रूरत है।
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