डीसीपी (पश्चिम) प्रीति चंद्रा ने बताया कि भदोही में संत रविदास नगर के सारीपुर निवासी महेंद्र पांडे का 12 वर्षीय पुत्र मोहन पांडे 10 जुलाई, 2009 को सब्जी लेने गया था। रास्ते में एक अज्ञात शख्स उसे उठाकर बेंगलुरु ले गया। वहां उसे बंद कमरे रख मजदूरी करवाते थे। करीब चार माह मौका मिलने पर मोहन वहां से फरार होकर ट्रेन से सूरत आ गया। कैटरिंग के काम को लेकर वह जोधपुर भी आने लगा। यहां एक सहकर्मी से उसने अपने परिजन को फोन करवाया। पिता को फोन पर बेटे से मिलने की खबर पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने जोधपुर आकर चौपासनी हाउसिंग बोर्ड पुलिस में संपंर्क किया। पुलिस ने युवक के सहकर्मी से टेक्सी चालक बनकर बात की और युवक के मिलने की खबर पुख्ता होने पर पिता-पुत्र को मिलवाया।
आंखों पर पट्टी बांध कराते थे मजदूरी
मोहन ने बताया कि बेंगलुरु में उसे तीन-चार बच्चों के साथ बंद कमरे में रखा जाता था। हर समय अंधेरे के कारण दिन-रात का पता नहीं लगता था। उनकी आंखों पर पट्टी बांध कर बारी-बारी से मजदूरी के लिए ले जाया जाता था। उनसे बॉक्स की डिलीवरी देने का काम कराया जाता था। चार-पांच माह तक बंधक रहने के बाद एक शख्स ने राय दी कि वह मौका देखकर वहां से भाग जाए नहीं तो उसके साथ ओर बुरा होगा। बेंगलुरु से भागने के बाद चार दिन तक भूखा-प्यासा रहा और ट्रेन से सूरत पहुंचा। जहां उसने एक टेक्सटाइल फैक्ट्री में मजदूरी करने लगा।
जिले का नाम बदलने से नहीं मिला घर सूरत में काम करते समय मोहन परिजन से मिलने बनारस गया था। जहां से उसने कुछ लोगों से भदोही में स्थित अपने गांव के बारे में पूछताछ की। लेकिन इस दौरान भदोही जिले का नामकरण संत रविदास नगर कर दिया गया था। इससे वह अपने गांव का पता नहीं लगा पाया। इसके बाद वह अपने पिता के मुम्बई के वर्ली पार्ले क्षेत्र में स्थित बंद पड़े घर गया। जहां उसे परिजन के फोन नम्बर मिले। उसने अपने दोस्त को नम्बर देकर पिता से सम्पर्क करने के लिए कहा।