कभी उधारी ली तो कभी फसल बेची
गजानंद ने बताया कि मेरे परिवार की अच्छी स्थिति नहीं थी। शुरू से ही खेती पर गुजारा किया है। फसल बाजार में अच्छी बिक जाती तो साल अच्छी निकलती थी। नहीं तो फिर उधारी से घर-खर्च चलता था। इसी बीच बेटे को अफसर बनाने की जिम्मेदारी भी आ गई। कभी फसल बेची तो कभी कर्जा लिया। बेटे की पढ़ाई पूरी करा कर उसे जयपुर-दिल्ली जैसे अच्छे शहरों में तैयारी कराई।
गजानंद ने बताया कि मेरे परिवार की अच्छी स्थिति नहीं थी। शुरू से ही खेती पर गुजारा किया है। फसल बाजार में अच्छी बिक जाती तो साल अच्छी निकलती थी। नहीं तो फिर उधारी से घर-खर्च चलता था। इसी बीच बेटे को अफसर बनाने की जिम्मेदारी भी आ गई। कभी फसल बेची तो कभी कर्जा लिया। बेटे की पढ़ाई पूरी करा कर उसे जयपुर-दिल्ली जैसे अच्छे शहरों में तैयारी कराई।
गांव में रहना पसंद करता, युवाओं को प्रेरित करता गजानंद ने बताया कि बेटे के आरएएस बनने के बाद ऐसा नहीं कि गांव छोड़कर शहर आ गया। मुझे मेरा गांव ही पसंद है। कभी-कभी बेटे धारा की जिद पर उनके पास आता हूं। लेकिन मुझे मेरे गांव से ही प्यार है। खेती का काम अभी भी नहीं छोड़ा।
मैं आज जो कुछ भी हूं, पिता की बदौलत हूं। मुझे समाज और जनता की सेवा की सीख देते हुए अफसर बनाया। मुझे पिता का सपना पूरा करने का सौभाग्य मिला। यह मेरी सबसे बड़ी कामयाबी है।
धारा सिंह मीणा, आरएएस और एडीएम दक्षिण जयपुर