आर्यन शर्मा/जयपुर. रजनीकांत और अक्षय कुमार स्टारर ‘2.0’ दर्शकों के लिए अकल्पनीय विजुअल ट्रीट है। शंकर निर्देशित ‘एंथिरन (रोबोट)’ (2010) के इस सीक्वल की खासियत हैरान करने वाले वीएफएक्स हैं। इसमें हाई टेक्नोलॉजी के ग्राफिक्स इस्तेमाल किए हैं। इस साइंस फिक्शन फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स 3डी में रोमांच को दुगुना कर देते हैं। तकनीकी रूप से मूवी काफी स्ट्रॉन्ग है। ऐसा लगता है मानो पर्दे पर कोई हॉलीवुड फिल्म चल रही हो। 500 करोड़ से अधिक के बजट की इस फिल्म की कहानी में साइंटिस्ट डॉ. वसीगरण (रजनीकांत) ने चिट्टी के बाद एक और ह्यूमनॉयड रोबोट नीला (एमी जैक्सन) बनाया है, जो उनकी असिस्टेंट है। अचानक कोई अदृश्य शक्ति लोगों के हाथ से सेलफोन खींचने लगती है। देखते ही देखते पूरे शहर के सारे मोबाइल फोन इस तरह गायब हो जाते हैं। प्रशासन व मंत्री इसका पता लगाने के लिए वसीगरण की मदद लेते हैं। इसी बीच मोबाइल फोनों से बनी विशालकाय बर्ड लोगों पर हमला कर देती है और उन्हें मारने लगती है। ऐसे में वसीगरण को अपने सुपरपावर ह्यूमनॉयड रोबोट को वापस लाने की अनुमति लेनी पड़ती है। इसके बाद कहानी कई ट्विस्ट्स और टर्न्स के साथ जबरदस्त क्लाइमैक्स पर पहुंचती है।
चिट्टी के सामने पक्षी राजन की जबरदस्त चुनौती
फिल्म का प्लॉट प्रीडिक्टेबल है लेकिन स्क्रीनप्ले क्रिस्प नहीं है। हालांकि टेक्नोलॉजी के संयोजन से एंगेजिंग बनाने की कोशिश की है। निर्देशक शंकर ने भारी-भरकम बजट की इस फिल्म को भव्य अंदाज में बनाया है। विजुअल इफेक्ट्स का भरपूर इस्तेमाल किया है। उनका डायरेक्शन प्रभावी है और उन्होंने अपनी मेहनत से एक बार फिर साबित कर दिया है कि टेक्नोलॉजी के यूज में उन्हें महारत हासिल है। अब्बास टायरवाला के संवाद औसत हैं। ‘रोबोट’ में रजनीकांत के किरदार चिट्टी को काफी पसंद किया गया था। इस बार भी चिट्टी आकर्षण का केन्द्र है। चिट्टी के अलावा रजनीकांत ने वसीगरण का रोल भी बखूबी निभाया है। पक्षी राजन के रोल में अक्षय कुमार की परफॉर्मेंस और लुक वाकई कमाल का है। उनके मेकअप पर काफी मेहनत की गई है। रोबोट नीला की भूमिका में एमी जैक्सन बढिय़ा लगी हैं। सुधांशु पांडे व आदिल हुसैन की भूमिकाएं तबीयत से नहीं लिखी गई। साउंड डिजाइन और बैकग्राउंड स्कोर जबरदस्त है। हालांकि ए. आर. रहमान का म्यूजिक इम्प्रेस नहीं करता। नीरव शाह की सिनेमैटोग्राफी अट्रैक्टिव है। एंथनी एडिटिंग में और बेहतर कर सकते थे।
क्यों देखें : फिल्म में मोबाइल टावरों से निकलने वाले हानिकारक रेडिएशन के खतरों से आगाह किया गया है। बेमिसाल विजुअल इफेक्ट्स के साथ फिल्म के आखिरी 25-30 मिनट रोलर कोस्टर की जॉय राइड की तरह हैं। ऐसे में अगर आप साइ-फाइ फिल्मों के शौकीन हैं तो ‘2.0’ एक मजेदार आॅप्शन है।
रेटिंग : 3.5 स्टार