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‘फॉरेंसिक’ की मर्डर मिस्ट्री से ज्यादा उम्मीद मत रखना

locationजयपुरPublished: Jun 25, 2022 02:32:12 am

Submitted by:

Aryan Sharma

फिल्म समीक्षा: फॉरेंसिकडायरेक्शन: विशाल फुरियास्टोरी: मानसी बागलास्क्रीनप्ले: विशाल कपूर, अजीत शशिकांत जगतापस्टार कास्ट: विक्रांत मैसी, राधिका आप्टे, प्राची देसाई, रोहित रॉय, विंदू दारा सिंह, अनंत महादेवन, सुब्रत दत्ता, नरेंद्र गुप्तारनिंग टाइम: 129 मिनट

'फॉरेंसिक' की मर्डर मिस्ट्री से ज्यादा उम्मीद मत रखना

‘फॉरेंसिक’ की मर्डर मिस्ट्री से ज्यादा उम्मीद मत रखना

आर्यन शर्मा @ जयपुर. साइकोलॉजिकल थ्रिलर ‘फॉरेंसिक’ इसी टाइटल की 2020 की मलयालम फिल्म का हिन्दी रूपांतरण है। उस फिल्म को अखिल पॉल व अनस खान ने लिखा था और निर्देशित किया था। हिन्दी में बनी ‘फॉरेंसिक’ को निर्देशक विशाल फुरिया ने अपने नजरिये से नए ट्विस्ट और टर्न के साथ पेश किया है। फिल्म की कहानी मसूरी में हो रहे बच्चों के मर्डर की मिस्ट्री दिखाती है। जेनी नाम की बच्ची अपने जन्मदिन पर गायब हो जाती है। बाद में उसकी लाश मिलती है। केस को सुलझाने की जिम्मेदारी सब-इंस्‍पेक्‍टर मेघा शर्मा (राधिका आप्टे) को मिलती है। उसकी मदद के लिए देहरादून से फॉरेंसिक एक्सपर्ट जॉनी खन्ना (विक्रांत मैसी) को बुलाया जाता है। इन दोनों का एक पास्ट भी है। यानी दोनों की पर्सनल लाइफ में भी काफी दिक्कतें हैं। मर्डर मिस्ट्री सुलझाने में जुटे मेघा और जॉनी के सामने नए-नए चैलेंज आते हैं। इस बच्ची की मौत की गुत्थी सुलझती नहीं, उससे पहले एक और बच्ची का इसी पैटर्न से कत्ल हो जाता है। बर्थडे किलर के कारण इलाके में दहशत व्याप्त हो जाती है। इसके बाद कहानी में कई ट्विस्ट और टर्न आते रहते हैं।
‘फॉरेंसिक’ का प्लॉट मलयालम फिल्म से ही है। मलयालम फिल्‍म में टोविनो थॉमस और ममता मोहनदास लीड रोल में थे। यह मूल संस्करण का दृश्य-दर-दृश्य रीमेक नहीं है। फिल्म के कई सारे एलिमेंट हिन्दी फिल्म में हैं, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है तो इसमें कई नए इनपुट और ट्विस्ट जोड़े गए हैं। फिल्‍म एक सीरियल किलर की मन:स्थिति, उसके दिमाग के फितूर पर भी बात करती है। विशाल कपूर और अजीत जगताप की पटकथा दिलचस्प है। कैरेक्टर्स पेचीदा हैं। हालांकि, कुछ घटनाक्रम मूर्खतापूर्ण हैं, इन्हें बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था। अगर आपने मलयालम फिल्‍म देखी है, तो उतना मजा नहीं आएगा। फिर भी ‘फॉरेंसिक’ में आने वाले कुछ दिलचस्प मोड़ कौतुहल जगाए रखते हैं। फिल्म की अच्छी बात यह है कि यहां कोई सुपर कॉप अकेले दम पर केस नहीं सुलझा रहा है बल्कि फॉरेंसिक एक्सपर्ट की नजर से भी केस की बारीकियां देखी जा रही हैं। विशाल फुरिया का निर्देशन ठीक है, मगर थ्रिलर के लिहाज से निर्देशन में ‘एक्स-फैक्टर’ मिसिंग है। सिनेमैटोग्राफी उपयुक्त है। गीत-संगीत थ्रिलर की पेस में व्यवधान की तरह है। गानों को जबरदस्ती डाला गया है। फिल्म में और भी कई खामियां हैं। विक्रांत मैसी की परफॉर्मेंस आत्मविश्वास से भरी है। हालांकि, कुछ जगहों पर वह बहुत मज़ेदार होने की कोशिश करते हैं, जिससे खेल थोड़ा बिगड़ जाता है। राधिका आप्टे ने संजीदगी से कॉप की भूमिका अदा की है। प्राची देसाई साइकेट्रिस्ट डॉ. रंजना के किरदार में हैं, वह हैरान करती हैं। रोहित रॉय और विंदू दारा सिंह ने अपने किरदार से न्याय किया है। बहरहाल, फॉरेंसिक दमदार थ्रिलर तो नहीं है, पर टाइमपास के लिहाज देखी जा सकती है। हालांकि थोड़ा बोर भी करती है।
रेटिंग: ★★½

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