scriptलचर राइटिंग-डायरेक्शन कर देते हैं ‘हेलिकॉप्टर ईला’ की सुखद उड़ान का मजा किरकिरा | Film Review Helicopter Eela | Patrika News
जयपुर

लचर राइटिंग-डायरेक्शन कर देते हैं ‘हेलिकॉप्टर ईला’ की सुखद उड़ान का मजा किरकिरा

दर्शकों की उम्मीद पर खरे नहीं उतरे फिल्म निर्देशक प्रदीप सरकार

जयपुरOct 12, 2018 / 03:11 pm

Aryan Sharma

Jaipur

लचर राइटिंग और डायरेक्शन कर देते हैं ‘हेलिकॉप्टर ईला’ की सुखद उड़ान का मजा किरकिरा

डायरेक्शन : प्रदीप सरकार
राइटिंग : मितेश शाह, आनंद गांधी
म्यूजिक : अमित त्रिवेदी, राघव सच्चर, डेनियल बी. जॉर्ज
बैकग्राउंड स्कोर : डेनियल बी. जॉर्ज
सिनेमैटोग्राफी : सिर्शा रे
एडिटिंग : धर्मेन्द्र शर्मा
रनिंग टाइम : 128.49 मिनट
स्टार कास्ट : काजोल, रिद्धि सेन, तोता रॉय चौधरी, नेहा धूपिया, जाकिर हुसैन, राशि मल, चिराग मल्होत्रा, कामिनी खन्ना
आर्यन शर्मा/जयपुर. ‘परिणीता’, ‘मर्दानी’ सरीखी उम्दा फिल्मों के निर्देशक प्रदीप सरकार की नई पेशकश है ‘हेलिकॉप्टर ईला’। यह फिल्म आनंद गांधी लिखित गुजराती नाटक ‘बेटा कागडो’ पर आधारित है, जिसमें एक ऐसी मां की कहानी को दिखाया गया है, जो अपने बेटे को लेकर ओवर प्रोटेक्टिव है। लेकिन कमजोर लिखावट और धीमी रफ्तार के कारण यह ‘हेलिकॉप्टर…’ उड़ान भरने से पहले ही क्रैश हो जाता है। यानी फिल्म एंटरटेनमेंट की वह डोज नहीं दे पाती, जिसकी उम्मीद की जा रही थी। कहानी सिंगल मदर ईला (काजोल) व उसके बेटे विवान (रिद्धि सेन) के इर्द-गिर्द घूमती है। ईला चाहती है कि विवान हर समय उसकी नजरों के सामने रहे, इसलिए वह हमेशा उसके पीछे-पीछे घूमती रहती है। जबकि विवान को लगता है कि मां उसकी प्राइवेसी में दखल दे रही है। यों तो ईला एक अच्छी सिंगर बनना चाहती थी, लेकिन उसका एक फ्लैशबैक भी है, जिसका असर उसकी वर्तमान जिंदगी पर पड़ा है। इस वजह से वह अपने सपने को भूल जाती है। यहां तक कि विवान के साथ ज्यादा समय गुजारने के लिए वह उसके कॉलेज में दाखिला ले लेती है। उसके बाद विवान व ईला की खट्टी-मीठी नोक-झोंक बढ़ जाती है।
एंटरटेनिंग एलीमेंट हैं कम
फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष राइटिंग है। आनंद गांधी ने मितेश शाह के साथ मिलकर स्क्रीनप्ले लिखा है, जो कतई एंगेजिंग नहीं है। ऐसा लगता है कि फिल्म रेंग-रेंग कर आगे बढ़ रही है। इसे क्रिस्प किया जा सकता था और इसमें कुछ एंटरटेनिंग एलीमेंट डाले जा सकते थे। प्रदीप सरकार भी निर्देशन में खरे नहीं उतरे, जिस कसावट के साथ उन्होंने फिल्म ‘मर्दानी’ का डायरेक्शन किया था, वैसा यहां कुछ भी नजर नहीं आता। संवाद ठीक-ठाक हैं। हालांकि फिल्म तकरीबन दो घंटे की है। इसके बावजूद इसकी स्पीड स्लो बीच-बीच में इरिटेट करती है, जिससे बोरियत महसूस होने लगती है। काजोल ने मां के रोल में अच्छी परफॉर्मेंस दी है, वहीं बेटे के किरदार में रिद्धि सेन का अभिनय बढिय़ा है। काजोल के पति की भूमिका में तोता रॉय चौधरी ओके हैं, वहीं सपोर्टिंग रोल में नेहा धूपिया ठीक-ठाक हैं। जाकिर हुसैन के पास करने को कुछ खास नहीं है। अमिताभ बच्चन समेत अन्य स्टार्स को कैमियो में देखना सुखद है। गीत-संगीत ओके है। 1-2 गाने अच्छे बन पड़े हैं। कैमरा वर्क अट्रैक्टिव है, लेकिन एडिटिंग कमजोर है।
क्यों देखें : फिल्म मां-बेटे के रिश्ते को एक अलग ढंग से दिखाती है। इसमें दिखाया है कि बच्चे स्पेस चाहते हैं, पर कुछ पैरेंट्स इतने ओवर पजेसिव हो जाते हैं कि एक पल के लिए भी बच्चे को आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहते। फिल्म की लिखावट और निर्देशन की खामियां ‘हेलिकॉप्टर…’ की सुखद उड़ान का मजा किरकिरा कर देती हैं।
रेटिंग : 2 स्टार

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो