जयपुर

चाइनीज माल की तरह ‘जबरिया जोड़ी’ की भी गारंटी नहीं

प्रशांत सिंह निर्देशित फिल्म ‘जबरिया जोड़ी’ का कॉन्सेप्ट तारीफ का हकदार है लेकिन फिल्म नहीं। दरअसल, कहानी का विषय अच्छा होने के बावजूद फिल्म ट्रीटमेंट इसका जायका बिगाड़ देता है।

जयपुरAug 09, 2019 / 02:10 pm

Aryan Sharma

चाइनीज माल की तरह ‘जबरिया जोड़ी’ की भी गारंटी नहीं

आर्यन शर्मा/जयपुर. फिल्म ‘हंसी तो फंसी’ (2014) के पांच साल बाद सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणीति चोपड़ा की जोड़ी ‘जबरिया जोड़ी’ में साथ आई है। बिहार में प्रचलित पकड़वा विवाह यानी जबरन शादी के मुद्दे पर आधारित इस फिल्म की कहानी बिखरी हुई है। फिल्म का ट्रीटमेंट जिस तरह का है, ऐसा लगता है कि कॉन्सेप्ट के साथ जबरदस्ती हो गई। यह फिल्म चाइनीज माल की तरह है यानी इसमें मनोरंजन की गारंटी नहीं है। कहानी में दबंग हुकुम देव सिंह (जावेद जाफरी) जबरिया शादी करवाता है। इस काम में उसका बेटा अभय सिंह (सिद्धार्थ) भी शामिल है। हुकुम सिंह इसे समाज सेवा और पुण्य का काम कहता है। जिस लड़की के पैरेंट्स दहेज में मोटी रकम देने में असमर्थ हैं, उसके लिए वे दूल्हे का किडनैप करते हैं और गन पॉइंट पर उसकी शादी कराते हैं। ऐसी ही एक जबरन शादी में अभय, बबली यादव (परिणीति) से मिलता है, जो कि बचपन में उसकी स्वीटहार्ट हुआ करती थी, पर परिस्थितियों ने उन्हें अलग कर दिया था। बबली और अभय साथ में वक्त बिताने लगते हैं। इधर, बबली के पिता दुनियालाल (संजय मिश्रा) बेटी की शादी को लेकर परेशान है। उसकी हैसियत ज्यादा दहेज देने की नहीं है। ऐसे में वह बबली की शादी एक डॉक्टर से कराने के लिए हुकुम सिंह को 20 लाख रुपए बयाना देते हैं। बस, यहीं से कहानी की डगर पथरीली हो जाती है।
इंटरेस्टिंग कॉन्सेप्ट का बना दिया पुलिंदा
कॉन्सेप्ट इंटरेस्टिंग है लेकिन स्क्रिप्ट में काफी लूपहोल्स हैं। स्क्रीनप्ले में कसावट नहीं है। पहले हाफ में अच्छे कॉमिक सीन हैं, जो इसे मजेदार बनाते हैं, पर दूसरे हाफ में कहानी एकदम से पटरी से उतर जाती है और हिचकोले खाने लगती है। साथ ही स्लो भी है। क्लाइमैक्स तक आते-आते यह ऐसी बेस्वाद खिचड़ी बन जाती है, जिसे पचाना तो दूर खाना भी मुश्किल है। वहीं इसका मैसेज भी उभर कर नहीं आ पाता। प्रशांत सिंह का निर्देशन फिल्म में एंटरटेनमेंट का तड़का लगाने में विफल रहा। वनलाइनर्स और डायलॉग्स कमाल के हैं। म्यूजिक डिपार्टमेंट कमजोर है। एक भी गीत असरदार नहीं है। सिद्धार्थ और परिणीति ने खुद को बिहारी रंग में ढालने की काफी कोशिश की, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो पाए। दोनों की कैमिस्ट्री में स्पार्क मिसिंग है। परिणीति की परफॉर्मेंस पर डिजाइनर आउटफिट्स व मेकअप हावी है। अपनी इमेज के इतर किरदार में जावेद जाफरी का काम अच्छा है। संजय मिश्रा की स्क्रीन प्रजेंस फेस पर स्माइल ला देती है। नीरज सूद के साथ उनके कई अच्छे दृश्य हैं। अपारशक्ति खुराना और चंदन रॉय सान्याल का काम ठीक है। शीबा चड्ढा, शरद कपूर और अन्य सह कलाकारों की परफॉर्मेंस सराहनीय है। सिनेमैटोग्राफी मोहक है। टाइट एडिटिंग की कमी खलती है। फिल्म की लंबाई अखरती है।
क्यों देखें: जबरिया शादी के कॉन्सेप्ट को दमदार स्क्रिप्ट के साथ कॉमेडी का तड़का लगाते हुए प्रजेंट किया जाता तो यह असरदार व मजेदार फिल्म हो सकती थी। बहरहाल, अगर आप सिद्धार्थ और परिणीति के प्रशंसक हैं तो ही ‘जबरिया जोड़ी’ देखने की गुस्ताखी करें, वर्ना आप खुद को सिनेमाहॉल में जबरिया बैठा हुआ पाएंगे।
रेटिंग: 2 स्टार

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