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दर्शकों से बॉन्डिंग नहीं बना पाती ‘जंगली’

locationजयपुरPublished: Mar 29, 2019 07:48:03 pm

Submitted by:

Aryan Sharma

‘हाथी मेरे साथी’ फिल्म को आए भले ही करीब 48 साल हो गए हों, लेकिन आज भी जब यह टीवी पर दिखाई जाती है, तो देखे बिना रहा नहीं जाता। लेकिन विद्युत जामवाल की फिल्म ‘जंगली’ दर्शकों से वैसी बॉन्डिंग नहीं बना पाती।

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दर्शकों से बॉन्डिंग नहीं बना पाती ‘जंगली’

डायरेक्शन : चक रसेल
स्टोरी : रोहन सिप्पी, चारूदत्त आचार्य, उमेश पाडलकर, रितेश शाह
स्क्रीनप्ले : एडम प्रिंस, राघव डार
म्यूजिक : समीर उद्दीन
सिनेमैटोग्राफी : मार्क इरविन
एडिटिंग : जयेश शिखरखाने, वासुदेवन कोठानदाथ
रनिंग टाइम : 115 मिनट
स्टार कास्ट : विद्युत जामवाल, पूजा सावंत, आशा भट्ट, मकरंद देशपांडे, अतुल कुलकर्णी, अक्षय ओबेरॉय
आर्यन शर्मा/जयपुर. हिन्दी सिनेमा में हाथी का जिक्र आते ही जेहन में राजेश खन्ना की फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ (1971) का नाम आता है। इस फिल्म में इंसान और हाथी की इमोशनल बॉन्डिंग ऑडियंस के दिलों को छू गई थी। अब विद्युत जामवाल ने हाथी पर केंद्रित फिल्म ‘जंगली’ में लीड रोल प्ले किया है। अमरीकन डायरेक्टर चक रसेल निर्देशित इस फिल्म में हाथी हैं, एक्शन है, संदेश है, लेकिन कमी है तो स्ट्रॉन्ग बॉन्डिंग की। घिसी-पिटी कहानी सारा जायका बिगाड़ देती है। कहानी में राज (विद्युत) पशु चिकित्सक है, जो कि मुंबई में रहता है। जबकि उसके पिता दीपांकर चंद्रिका एलीफेंट सेंचुरी संभालते हैं। राज अपनी मां की दसवीं पुण्यतिथि पर चंद्रिका आता है। इधर, जर्नलिस्ट मीरा (आशा भट्ट) दीपांकर के इंटरव्यू के लिए वहां पहुंचती है। सेंचुरी में शंकरा (पूजा सावंत) महावत है और वह राज की बचपन की दोस्त भी है। सेंचुरी में हाथियों का शिकार बढ़ गया है। इस बीच एक रात भोला नाम के हाथी को शिकारी उसके दांतों के लिए मार देते हैं, साथ ही दीपांकर को भी। इसके बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं।
पुराने फॉर्मूले पर नीरस कहानी
फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष इसकी कहानी है, जिसमें जरा भी ताजगी नहीं है। एकदम पुराने फॉर्मूले को कहानी में बुना गया है। स्क्रीनप्ले एंगेजिंग नहीं है। संवाद भी बेअसर हैं। चक रसेल का निर्देशन लचर है। फिल्म लडखड़़ाते हुए आगे बढ़ती है। फिल्म हाथियों के अवैध शिकार और उनके दांतों की तस्करी रोकने का मैसेज तो देती है, लेकिन एंटरटेनमेंट के मामले में चूक गई। मूवी हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और की तरह है। विद्युत का अभिनय साधारण है। केवल एक्शन दृश्यों में ही उनमें विद्युत महसूस हुई है। एक्शन सीक्वेंस शानदार तरीके से कोरियोग्राफ किए गए हैं। महावत की भूमिका में पूजा ध्यान खींचने में सफल रही हैं। बतौर जर्नलिस्ट हर चीज रिकॉर्ड करती नजर आई आशा की परफॉर्मेंस ठीक-ठाक है। छोटे से रोल में मकरंद देशपांडे जमे हैं। शिकारी का कैरेक्टर अतुल कुलकर्णी ने अच्छे से निभाया है। अक्षय ओबेरॉय ओके हैं। गीत-संगीत कुछ खास नहीं है। थाईलैंड के जंगल की लोकेशंस खूबसूरत हैं। सिनेमैटोग्राफी ठीक है, लेकिन संपादन थोड़ा ढीला है।
‘जंगली’ में हाथी और इंसान की दोस्ती दिखाई गई है। साथ ही यह मैसेज भी दिया है कि अपने फायदे के लिए जानवरों शिकार करना ठीक नहीं है। सोच-समझ कर यह फिल्म देखने जाएं, क्योंकि ‘जंगली’ शायद ही आपका साथी बन पाए।
रेटिंग : 2 स्टार

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