फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष इसकी कहानी है, जिसमें जरा भी ताजगी नहीं है। एकदम पुराने फॉर्मूले को कहानी में बुना गया है। स्क्रीनप्ले एंगेजिंग नहीं है। संवाद भी बेअसर हैं। चक रसेल का निर्देशन लचर है। फिल्म लडखड़़ाते हुए आगे बढ़ती है। फिल्म हाथियों के अवैध शिकार और उनके दांतों की तस्करी रोकने का मैसेज तो देती है, लेकिन एंटरटेनमेंट के मामले में चूक गई। मूवी हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और की तरह है। विद्युत का अभिनय साधारण है। केवल एक्शन दृश्यों में ही उनमें विद्युत महसूस हुई है। एक्शन सीक्वेंस शानदार तरीके से कोरियोग्राफ किए गए हैं। महावत की भूमिका में पूजा ध्यान खींचने में सफल रही हैं। बतौर जर्नलिस्ट हर चीज रिकॉर्ड करती नजर आई आशा की परफॉर्मेंस ठीक-ठाक है। छोटे से रोल में मकरंद देशपांडे जमे हैं। शिकारी का कैरेक्टर अतुल कुलकर्णी ने अच्छे से निभाया है। अक्षय ओबेरॉय ओके हैं। गीत-संगीत कुछ खास नहीं है। थाईलैंड के जंगल की लोकेशंस खूबसूरत हैं। सिनेमैटोग्राफी ठीक है, लेकिन संपादन थोड़ा ढीला है।
‘जंगली’ में हाथी और इंसान की दोस्ती दिखाई गई है। साथ ही यह मैसेज भी दिया है कि अपने फायदे के लिए जानवरों शिकार करना ठीक नहीं है। सोच-समझ कर यह फिल्म देखने जाएं, क्योंकि ‘जंगली’ शायद ही आपका साथी बन पाए।
रेटिंग : 2 स्टार