जयपुर

सच क्या है… ‘द ताशकंद फाइल्स’

विवेक अग्निहोत्री ने कॅरियर के शुरुआती दौर में ‘चॉकलेट’, ‘दन दनादन गोल’, ‘हेट स्टोरी’, ‘जिद’ सरीखी फिल्में बनाई, लेकिन 2016 में सोशल-पॉलिटिकल ड्रामा ‘बुद्धा इन ट्रैफिक जाम’ निर्देशित की। अब वह एक बार फिर गंभीर मसले पर फिल्म लेकर आए हैं ‘द ताशकंद फाइल्स’, जो कि दर्शकों को एक बार सोच में जरूर डाल देती है।

जयपुरApr 12, 2019 / 05:46 pm

Aryan Sharma

सच क्या है… ‘द ताशकंद फाइल्स’

राइटिंग-डायरेक्शन : विवेक अग्निहोत्री
म्यूजिक : रोहित शर्मा
सिनेमैटोग्राफी : उदय सिंह मोहित
एडिटिंग : सत्यजीत गजमेर
रनिंग टाइम : 144 मिनट
स्टार कास्ट : मिथुन चक्रवर्ती, श्वेता बसु प्रसाद, नसीरुद्दीन शाह, पंकज त्रिपाठी, पल्लवी जोशी, मंदिरा बेदी, विनय पाठक, राजेश शर्मा, प्रकाश बेलवाडी, प्रशांत गुप्ता, अंचित कौर, विश्व मोहन बडोला, अंकुर राठी
आर्यन शर्मा/जयपुर. देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत नैचुरल थी या उन्हें जहर दिया गया था? इसी सवाल को उठाती है निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’। दरअसल शास्त्री की मौत 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटों बाद 11 जनवरी को हुई थी। उनकी मौत की पहेली इतिहास के विवादास्पद अध्यायों में शामिल है। शास्त्री की मौत के पीछे सच को जानने की कहानी है ‘द ताशकंद फाइल्स’। कहानी में रागिनी फुले (श्वेता बसु) पॉलिटिकल जर्नलिस्ट है। उसके बॉस ने अल्टीमेटम दिया है कि जल्द से जल्द वह कोई सनसनीखेज खबर लेकर आए, नहीं तो उसको आर्ट एंड कल्चर बीट में शिफ्ट कर दिया जाएगा। इसी बीच अपने जन्मदिन पर रागिनी के पास अनजान व्यक्ति का फोन आता है, जो उसे बर्थडे गिफ्ट के तौर पर एक लिफाफा भेजता है, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री की मौत से जुड़े कुछ दस्तावेज होते हैं। इस लीड के बाद वह शास्त्री की रहस्यमय मौत पर सवाल करती खबर प्रकाशित करती है, जिससे सियासी माहौल गर्मा जाता है। विपक्ष के नेता श्याम सुंदर त्रिपाठी (मिथुन चक्रवर्ती) सरकार को आड़े हाथों लेना शुरू कर देते हैं। ऐसे में इस मामले पर गृहमंत्री नटराजन (नसीरुद्दीन शाह) एक कमेटी गठित करते हैं। इसके बाद कहानी में कई मोड़ आने लगते हैं।
स्क्रीनप्ले होता चुस्त, तो बेहतर होती फिल्म
राइटर-डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने सिनेमैटिक लिबर्टी ली है। मगर स्क्रीनप्ले लचर है, जिससे पहला हाफ खिंचा हुआ लगता है। कहानी में न्यूज स्टोरी, ऐतिहासिक पुस्तकों, दस्तावेजों आदि को सनसनीखेज तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की है, जो रोमांच बढ़ाते हैं। जर्नलिस्ट की भूमिका में श्वेता ने अच्छा काम किया है, पर कहीं-कहीं ओवरएक्टिंग भी की है। पॉलिटिशियन व कमेटी अध्यक्ष श्याम सुंदर त्रिपाठी के रोल में मिथुन चक्रवर्ती की परफॉर्मेंस अच्छी है। नसीरुद्दीन शाह के लिए फिल्म में करने को कुछ खास नहीं है। पंकज त्रिपाठी बॉलीवुड के वो अभिनेता हैं, जो छोटे से कैरेक्टर में भी अपनी छाप छोड़ जाते हैं। मंदिरा बेदी की एक्टिंग ठीक है, वहीं पल्लवी जोशी को एक अंतराल के बाद पर्दे पर देखकर अच्छा लगता है। विनय पाठक, राजेश शर्मा, प्रकाश बेलवाडी समेत अन्य सपोर्टिंग कास्ट का काम ठीक है। गीत-संगीत कमजोर है। बैकग्राउंड म्यूजिक लाउड है। ‘सब चलता है’ गाना यहां नहीं चलता है। सिनेमैटोग्राफी लाजवाब है। कमजोर लिखावट की तरह संपादन भी ढीला है
क्यों देखें : ‘द ताशकंद फाइल्स’ की कहानी में शास्त्री की रहस्यमय मौत के संबंध में अलग-अलग आस्पेक्ट्स सामने रखे हैं। ऐसे में अगर आप सच्ची घटना से प्रेरित फिल्में देखने के शौकीन हैं तो इसे देखिए, लेकिन तथ्य कितने सही और कितने गलत हैं, इसका खुद पता करें।
रेटिंग : 2 स्टार

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