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जयपुर में पेशावर से आकर बसे थे आतिशबाजी का कमाल दिखाने वाले शोरगर

locationजयपुरPublished: Oct 20, 2019 05:36:21 pm

Submitted by:

Rajkumar Sharma

दिवाली और शादी ब्याह सहित खास मौकों पर की जाने वाली आतिशबाजी जयपुर की पहचान है। हैरिटेज विन्डो कॉलम के तहत पेश है जितेंद्र सिंह शेखावत की रिपोर्ट-

जयपुर में पेशावर से आकर बसे थे आतिशबाजी का कमाल दिखाने वाले शोरगर

जयपुर में पेशावर से आकर बसे थे आतिशबाजी का कमाल दिखाने वाले शोरगर

जयपुर की आतिशबाजी को विश्व प्रसिद्ध बनाने वाले शोरगरों को अफगानिस्तान विजय करने वाले मानसिंह प्रथम पेशावर से आमेर लाए थे। जयपुर के शोरगरों ने बादशाह, राजाओंऔर अग्रेजों के दिल्ली दरबार में आतिशबाजी कर शोहरत पाई थी। तत्कालीन अंग्रेज सरकार के दिल्ली और कोलकात्ता में वर्ष १९०३, १९११ और १९३५ के दिल्ली दरबार के मौके पर अनूठी आतिशबाजी कर सारी दुनिया में तहलका मचा दियाा। इंग्लैण्ड में जार्ज पंचम के सिल्वर जुबली समारोह के दौरान शोरगरों ने उनके सम्मान में नाहरगढ़ पर भव्य आतिशबाजी कर जयपुर वासियों को इंग्लैण्ड के बंकिघम पैलेस, जार्ज पंचम और क्वीन मैरी का रंगीन चित्र आसमान में दिखा दिया था।
सवाई राम सिंह के समय शोरगर हिदायतुल्ला ने बारुदी अनार का तिलस्मी जादू दिया। वहीं, जयपुर की दिवाली देखने आए ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा जियाजीराव सिंधिया तथा बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह के सम्मान में शोरगरों ने आतिशबाजी का जादू बिखेरा था। बालानंदी पीठ से जुड़े देवेन्द्र भगत के मुताबिक रियासत की नृत्यांगना रुपमति अपनी आतिशी का जादू महाराजा की कई शाही महफिलों में दिखाकर पुरस्कार प्राप्त करती थी।
दिवाली की सकून भरी रात में चन्द्र महल और बाद में देर रात तक रामबाग में शोरगर अनूठी आतिशबाजी का फन बिखेर कर शहर को धमाकों व इंद्रधनुषी रगों से मंत्र मुग्ध कर देतेे थे। दिवाली की शाम को शोरगर आइटमों का पिटारा ऐन वक्त पर खोल वाह वाही लूटते और इनाम प्राप्त करते थे। वहीं, सवाई राम सिंह के जमाने में शोरगरों के एक दर्जन परिवार साल भर नए नए आइटमों की खोज करते तथा कला दिखाने के लिए महाराजा की साल गिरह और दिवाली की रात का इंतजार करते थे। चन्द्र महल की छत पर गोविंददेवजी की तरफ झांकते रंग महल की चांदनी में सजी शाही महफिल में महाराजा के साथ खास मेहमान, सामंत और जनाना सरदारों के साथ आतिश के सतरंगी नजारे को देखते थे। फिर जयपुर रियासत के अंतिम शासक सवाई मानसिंह के बाद उनके पुत्र ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने आतिशबाजी की परम्परा को बढ़ाया। आतिशबाजी से खुश हो सवाई मानसिंह ने एक शोरगर को इंग्लैण्ड में बनी साइकिल पुरस्कार में दी थी। आजादी के बाद राजस्थान पत्रिका के संस्थापक कर्पूरचन्द्र कुलिश ने जयपुर के शोरगरों की आतिशबाजी को विश्व में विख्यात करवाया। उन्होंने जयपुर के ढाई सौ वें स्थापना दिवस और बाद में सवाई मानसिंह स्टेडियम में आतिशबाजी करवाई जिसके लाखों लोग गवाह बने थे।
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