वीआइपी की जी-हुजूरी में निकलता है दिन
पड़ताल में सामने आया कि अभयारण्य से जुड़े तमाम अधिकारियों व कर्मचारियों की सुबह की शुरुआत वहां आने वाले अधिकारियों, उनके रिश्तेदारों, प्रशासन के आला अधिकारी, राजनेताओं व अन्य खास मेहमानों की आवभगत से शुरू होती है, जो देर रात उनकी जी-हूजूरी में पूरी हो जाती है। ऐसे में किसी को भी वन्य जीवों की निगरानी का समय नहीं मिलता है। जिससे उनको टाइगर की मूवमेंट के बारे में पता ही नहीं रहता।
पड़ताल में सामने आया कि अभयारण्य से जुड़े तमाम अधिकारियों व कर्मचारियों की सुबह की शुरुआत वहां आने वाले अधिकारियों, उनके रिश्तेदारों, प्रशासन के आला अधिकारी, राजनेताओं व अन्य खास मेहमानों की आवभगत से शुरू होती है, जो देर रात उनकी जी-हूजूरी में पूरी हो जाती है। ऐसे में किसी को भी वन्य जीवों की निगरानी का समय नहीं मिलता है। जिससे उनको टाइगर की मूवमेंट के बारे में पता ही नहीं रहता।
पेट्रोलिंग वाहनों की यह है जिम्मेदारी
वन विभाग के रेकार्ड के अनुसार अभयारण्य के लिए सीएफओ से लेकर एसीएफ को 8 गाडिय़ां आवंटित हैं। जिन पर उद्यान के सभी वन्य जीवों की नियमित देखभाल की जिम्मेदारी है। अधिकारी दिन-रात अभयारण्य में गश्त कर हर हलचल पर निगरानी रख सकें। लेकिन रोजाना यहां वीवीआइपी की इतनी आवाजाही होती है कि ये वाहन उनको सफारी कराने में लगा दिए जाते हैं।
वन विभाग के रेकार्ड के अनुसार अभयारण्य के लिए सीएफओ से लेकर एसीएफ को 8 गाडिय़ां आवंटित हैं। जिन पर उद्यान के सभी वन्य जीवों की नियमित देखभाल की जिम्मेदारी है। अधिकारी दिन-रात अभयारण्य में गश्त कर हर हलचल पर निगरानी रख सकें। लेकिन रोजाना यहां वीवीआइपी की इतनी आवाजाही होती है कि ये वाहन उनको सफारी कराने में लगा दिए जाते हैं।
पेट्रोलिंग पर सवाल
बाघ का वन क्षेत्र से आबादी क्षेत्र में आना, अभयारण्य क्षेत्र में मर जाना और उसका दो से तीन तक पता नहीं चलना। बाघ के दो शावकों को जहर दिए जाने समेत तमाम ऐसे कई सवाल हैं जो वन विभाग के अधिकारियों की गश्त पर सवाल खड़ेे करते हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जब वन विभाग के पेट्रोलिंग वाहन ही मेहमानों की ड्यूटी बजा रहे हैं तो अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा किस तरह से गश्त की जाती है।
बाघ का वन क्षेत्र से आबादी क्षेत्र में आना, अभयारण्य क्षेत्र में मर जाना और उसका दो से तीन तक पता नहीं चलना। बाघ के दो शावकों को जहर दिए जाने समेत तमाम ऐसे कई सवाल हैं जो वन विभाग के अधिकारियों की गश्त पर सवाल खड़ेे करते हैं। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जब वन विभाग के पेट्रोलिंग वाहन ही मेहमानों की ड्यूटी बजा रहे हैं तो अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा किस तरह से गश्त की जाती है।
पेट्रोलिंग गाड़ी भी लगती है सफारी वाहन की तरह
पेट्रोलिंग वाहनों की बनावट तय मापदंड के हिसाब से नहीं है। इसमें केवल नंबर सरकारी हैं, बाकी सब निजी सफारी वाहन की तरह है। विशेषज्ञों की मानें तो पेट्रोलिंग वाहन और सफारी वाहन में अंतर होता है। विभाग की पेट्रोलिंग जिप्सी या जीप पर्दे से पैक होनी चाहिए। गाड़ी के पिछले हिस्से में इतनी जगह हो कि गश्त के दौरान घायल या बीमार मिले वन्य जीव को प्राथमिक उपचार के लिए लाया जा सके। निजी सफारी वाहन आमतौर पर हुड व पर्दे खुले रखते हैं और पर्यटकों की सुविधा के हिसाब से तैयार किया जाता है।
पेट्रोलिंग वाहनों की बनावट तय मापदंड के हिसाब से नहीं है। इसमें केवल नंबर सरकारी हैं, बाकी सब निजी सफारी वाहन की तरह है। विशेषज्ञों की मानें तो पेट्रोलिंग वाहन और सफारी वाहन में अंतर होता है। विभाग की पेट्रोलिंग जिप्सी या जीप पर्दे से पैक होनी चाहिए। गाड़ी के पिछले हिस्से में इतनी जगह हो कि गश्त के दौरान घायल या बीमार मिले वन्य जीव को प्राथमिक उपचार के लिए लाया जा सके। निजी सफारी वाहन आमतौर पर हुड व पर्दे खुले रखते हैं और पर्यटकों की सुविधा के हिसाब से तैयार किया जाता है।
वीआइपी के लिए अलग हैं गाडिय़ां
वीआइपी के लिए पांच गाडिय़ां अलग से तय कर रखी हैं। जिनको वरीयता के हिसाब से उपयोग में लिया जाता है। इसके अलावा स्टेट गेस्ट के लिए विभागीय गाड़ी का इंतजाम किया जाता है।
मुकेश सैनी, उप वन सरंक्षक, रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान
वीआइपी के लिए पांच गाडिय़ां अलग से तय कर रखी हैं। जिनको वरीयता के हिसाब से उपयोग में लिया जाता है। इसके अलावा स्टेट गेस्ट के लिए विभागीय गाड़ी का इंतजाम किया जाता है।
मुकेश सैनी, उप वन सरंक्षक, रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान
अंकुश लगना चाहिए
रणथम्भौर उद्यान में बाघों की निगरानी के लिए लगी सरकारी पेट्रोलिंग वाहनों का उपयोग वीआइपी और अधिकारियों की सफारी और मेहमान नवाजी में हो रहा है। वाहनों के दुरुपयोग से बाघों की निगरानी प्रभावित हो रही है। विभाग को बाघ की लोकेशन और मूवमेंट के बारे में कुछ पता नहीं चल पाता। जिससे बाघ कई बार जंगल से बाहर निकलकर ग्रामीणों को अपना शिकार बना लेते हैं। इस पर अंकुश लगना चाहिए।
सूरज सोनी, कॉर्डिनेटर, पीपुल्स फॉर एनीमल्स
रणथम्भौर उद्यान में बाघों की निगरानी के लिए लगी सरकारी पेट्रोलिंग वाहनों का उपयोग वीआइपी और अधिकारियों की सफारी और मेहमान नवाजी में हो रहा है। वाहनों के दुरुपयोग से बाघों की निगरानी प्रभावित हो रही है। विभाग को बाघ की लोकेशन और मूवमेंट के बारे में कुछ पता नहीं चल पाता। जिससे बाघ कई बार जंगल से बाहर निकलकर ग्रामीणों को अपना शिकार बना लेते हैं। इस पर अंकुश लगना चाहिए।
सूरज सोनी, कॉर्डिनेटर, पीपुल्स फॉर एनीमल्स