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एफएसएल रिपोर्ट ही समय पर नहीं मिलती, कैसे होगा इंसाफ

locationजयपुरPublished: Dec 09, 2019 06:03:16 pm

Submitted by:

Abrar Ahmad

प्रदेश में डीएनए व एफएसएल जांच की स्थिति कमजोर, न्यायालय के आदेश के बाद भी गंभीर नहीं हुई सरकार, सीकर में चार साल की बच्ची के मामले में बिना डीएनए जांच न्यायाधीश ने दिया था फैसला

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जयपुर. सीकर. बलात्कार के मामलों में न्याय में देरी में अदालत की लम्बी कार्रवाई के साथ अन्य संस्थाएं भी जिम्मेदार हैं। सामान्य मामलों की तरह गम्भीर मामलों में भी एफएसएल की रिपोर्ट समय पर नहीं मिल रही है। जल्द जांच के लिए जांच अधिकारी को एफएसएल के बार-बार चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। सीकर के एक मामले में तो एसपी के डीओ लेटर के बाद भी एफएसएल जांच रिपोर्ट नहीं भेजी गई। ऐसे में न्यायाधीश को बिना एफएसएल और डीएनए जांच ही फैसला सुनाना पड़ा। न्यायाधीश ने नाराजगी व्यक्त करते हुए विधि विज्ञान प्रयोशाला के अधिकारियों को निर्देशित करने के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखा, जिसका फैसले में भी उल्लेख किया गया।
जयपुर के रामनिवास बाग में एक बालिका से बलात्कार के इस मामले में अदालत ने आरोपी को अन्तिम सांस तक जेल की सजा सुनाई है। मामले में एफएसएल रिपोर्ट नकारात्मक आई थी। रिपोर्ट के इस परिणाम से अधिकारी सकते में हैं। एफएसएल के निदेशक डॉ. हेमंत प्रियदर्शी ने 2017 के इस मामले में लालकोठी थाने के तत्कालीन थानाधिकारी की भूमिका जांचने के लिए पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखा है।
संभाग स्तर पर खोली जानी थी एफएसएल
सरकार ने प्रदेश के जोधपुर, बीकानेर, कोटा व भरतपुर में विधि विज्ञान प्रयोशाला खोलने की योजना जनवरी में बनाई गई थी। मार्च में बजट आने के बाद जांच के लिए मशीनें भी खरीद ली, लेकिन इन मशीनों को जयपुर की प्रयोगशाला में ही लगाकर काम बढ़ा दिया। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में डीएनए जांच की व्यवस्था करीब आठ वर्ष पहले शुरू की गई थी। इसके बाद कई वैज्ञानिकों को इसके लिए प्रशिक्षण भी दिलवाया गया, लेकिन एक ही जगह जांच की व्यवस्था होने से उनका भी उपयोग नहीं हो पा रहा है।
जांच और न्यायिक प्रक्रिया होती है प्रभावित
पोक्सो कानून में गंभीर मामलों में मृत्युदंड की सजा का प्रावधान शामिल होने के बाद ऐसे गंभीर मामलों में पुलिस की जांच और न्यायालय में ट्रायल के लिए समय सीमा तय की गई थी। ऐसे में मामलों में पुलिस के जांच अधिकारी को एक माह में जांच पूरी कर चालान पेश करना तय है। वहीं न्यायालय में तीन माह में ट्रायल पूरी करनी होती है। लेकिन एफएसएल और डीएनए जांच समय पर नहीं मिलने के कारण दोनों ही प्रक्रियाओं में विलंब हो रहा है।
सीकर में न्यायालय ने उठाया था सवाल

खाटूश्यामजी में चार वर्षीय बच्ची से बलात्कार के मामले में न्यायालय ने एफएसएल की जांच व्यवस्था पर सवाल उठाए थे। पोक्सो कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश अनिल कौशिक ने इस मामले में आरोपी को आजीवन करावास की सजा सुनाते हुए फैसले में कहा था कि पुलिस अधीक्षक और विशिष्ट लोक अभियोजक की ओर से बार-बार निवेदन करने के बाद भी पंाच कार्य दिवस में डीएनए की रिपोर्ट न्यायालय में पेश नहीं की गई। न्यायालय के निर्देशों को भी गंभीरता से नहीं लिया गया। कल्याणकारी राज्य होने के नाते सरकार का यह कर्तव्य है कि वह अपने संबंधित विभाग के अधिकारियों को निर्देशित करे कि निरीह मासूम अबोध बालक व बालिकाओं के साथ घटित इस तरह के घृणित अपराधों में विधि विज्ञान प्रयोगशाला के संबंधित अधिकारी अधिक गंभीरता दिखाएं एवं अविलंब एफएसएल एवं डीएनए रिपोर्ट न्यायालय में पेश किया जाना सुनिश्चित करें।
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