राज्य में कृषि उपभोक्ता 13 लाख, बीपीएल श्रेणी के 16 लाख और छोटे घरेलू कनेक्शनधारी (पचास यूनिट से कम खपत वाले उपभोक्ता) 41 लाख हैं। इन उपभोक्ताओं के फ्यूल सरचार्ज की राशि सरकार वहन करेगी, क्योंकि सब्सिडी का भार भी सरकार ही उठा रही है। हालांकि, अप्रत्यक्ष रूप से इसका भार भी आमजन पर पड़ता रहा है।
राजस्थान विद्युत नियामक आयोग (आरईआरसी) फिक्स दर के साथ वेरिएबल दर के हिसाब से टैरिफ निर्धारित करता है। वेरिएबल दर का निर्धारण कोयला, डीजल व परिवहन खर्च से किया जाता है। यह खर्च बिजली खरीद के दौरान जो दरें आती है, उस आधार पर बनती है। इसकी वसूली बिजली के बिलों में उपभोक्ताओं से वसूल की जाती है।
अप्रेल से जून, 2019— 55 पैसे जुलाई से सितम्बर, 2019— 27 पैसे
अक्टूबर से दिसम्बर, 2019— 39 पैसे जनवरी से मार्च, 2020— 30 पैसे
अप्रेल से जून, 2020— 28 पैसे
(औसत 30.85 पैसे प्रति यूनिट है) अडानी के 2700 करोड़ रुपए का भार पहले से बिल में
अडानी पॉवर को कोयला भुगतान मामले में फिलहाल 2700 करोड़ रुपए दिए गए। डिस्कॉम्स इसका भार 1.20 करोड़ उपभोक्ताओं पर डाल चुका है। जयपुर, अजमेर व जोधपुर तीनों डिस्कॉम्स के उपभोक्ताओं से 36 माह तक 5 पैसे प्रति यूनिट गणना के आधार पर वसूली की जा रही है। यह सितम्बर 2019 से शुरू हुआ जो अगस्त 2022 तक चलेगा।
बिजली कंपनियों ने विद्युत उत्पादन कर रही कंपनियों से महंगी दरों पर बिजली खरीद की, जिसके चलते करोड़ों रुपए का अतिरिक्त भार कंपनियों पर पड़ा है। वहीं अब घाटे और वित्तीय भार की भरपाई कंपनियां प्रदेश के बिजली उपभोक्ताओं से कर रही हैं। प्रदेश में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा दरों पर हो रही बिजली खरीद बिजली कंपनियों के संचित घाटे को बढ़ा रही है। वहीं, छीजत और चोरी रोकने में नाकाम रही बिजली कंपनियों ने घाटे की भरपाई बिजली उपभोक्ताओं पर डालने की कार्यशैली अपना ली है। प्रदेश की बिजली वितरण निगमों में अब भी बिजली छीजत का ग्राफ 20 से 22 फीसदी तक बना हुआ है।