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जयपुर: परकोटे में अलग ही होती है गणगौर उत्सव की धूम

locationजयपुरPublished: Mar 30, 2017 05:33:00 pm

Submitted by:

dinesh

गणगौर पूजन में कन्याएं और महिलाएं अपने लिए अखंड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं…

Gangaur

Gangaur

गणगौर एक त्योहार है जो चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो नवविवाहिताएँ प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं।
 यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न कराने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है।

गणगौर पूजन में कन्याएं और महिलाएं अपने लिए अखंड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से हर वर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं। होली के दूसरे दिन से ही गणगौर का त्योहार आरंभ हो जाता है जो पूरे सोलह दिन तक लगातार चलता रहता है। 
गणगौर के त्योहार को उमंग, उत्साह और जोश से मनाया जाता है। यह उत्सव मस्ती का पर्व है। इसमें कन्याएं और विवाहित स्त्रियां मिट्टी के ईसर और गौर बनाती है। और उनको सुन्दर पोशाक पहनाती है और उनका शृंगार करती हैं। 
स्त्रियां और कन्याएं इस दिन गहने और कपड़ों से सजी-धजी रहती हैं। गणगौर के दिन अविवाहित लड़कियां एक खेल भी खेलती है जिसमें एक लड़की दूल्हा और दूसरी दूल्हन बनती हैं। 

जिन्हें वे ईशर और गौर कहते हैं और उनके साथ सखियां गीत गाती हुई उन दोनों को लेकर अपने घर से निकलती है और सब मिलकर एक बगीचे पर जाती है। 
गणगौर के दिन महिलाएं पीपल के पेड़ के जो ईसर और गौर बने होते है वो दोनों फेरे लेते हैं। जब फेरे पूरे हो जाते है तब ये सब नाचती और गाती है। उसके बाद ये घर जाकर उनका पूजन करती हैं, और भोग लगाती हैं और शाम को उन्हें पानी पिलाती हैं। 
वसंत के आगमन की खुशी में जयपुर में देवी पार्वती को समर्पित गणगौर उत्सव की धूम व्याप्त है। जयपुर में गणगौर का त्योहार महिलाओं का उत्सव नाम से भी प्रसिद्ध है। अविवाहित लड़कियां मनपसंद वर की कामना करती हैं तो विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। 
गणगौर की पूजा में गाए जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के बाद अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रस्म के रूप में भी प्रचलित है।
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