प्रीति ने बताया कि होली से ही गणगौर उत्सव शुरू हो गया है। होलिका दहन की राख में गोबर मिलाकर गौरा ‘पूजा का प्रतीक ‘पिंडिया बनाकर उसकी पूजा हो रही है। गणगौर के दिन घेवर, मीठे गुणे और सोलह शृंगार की सामग्री से मां पार्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा में पूरे परिवार की महिलाएं एक साथ शामिल होती हैं। मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं अच्छे वर और विवाहित महिलाएं सुहाग की रक्षा के लिए पूजा करती हैं।
मानसरोवर निवासी मंजू गोस्वामी ने बताया कि उनके घर में इस बार गणगौर का उल्लास और अधिक बढ़ गया है। इस साल बेटे व बेटी की शादी होने से दोनों नवविवाहित बहू और बेटी दोनों घर पर ही 16 दिन की गणगौर पूज रही हैं। 16 दिनों तक घर में मांगलिक माहौल हैं।
पंडित पुलकित शास्त्री ने बताया कि गणगौर पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, इसे गौरी तृतीया भी कहते हैं। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो कुमारी और विवाहित महिलाएं, नवविवाहिताएं प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं। वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती है। यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए ब हुत महत्वपूर्ण माना गया है, इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है।