निकाय चुनाव प्रमुखों के चुनाव प्रत्यक्ष करवाए जाएं या अप्रत्यक्ष, इसे लेकर सरकार पसोपेश में थी। सीएम गहलोत ने साफ़ किया था कि सभापति और महापौर के चुनाव अप्रत्यक्ष करवाए जाने को लेकर पार्टी मंच से वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं की मांग उठ रही थी। इसी को मद्देनज़र रखते हुए यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को प्रदेश भर के नेताओं से फीडबैक लेकर रिपोर्ट बनाने का ज़िम्मा सौंपा गया था। बताया गया था कि धारीवाल की रिपोर्ट के बाद ही सरकार महापौर और सभापतियों के चुनाव को लेकर कोई फैसला लेगी।
… तो इसलिए गहलोत सरकार बैकफुट पर! राज्य में कांग्रेस की सरकार बनते ही गहलोत सरकार ने विधानसभा में शैक्षणिक बाध्यता की शर्त हटाते हुए निगम महापौर और निकाय के सभापतियों के चुनाव सीधे करवाने का निर्णय कर दिया था। लेकिन लोकसभा चुनावों में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर प्रदेश में सभी 25 सीटों पर सूपड़ा होने और हाल ही में जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद राजनीतिक हालात बदल गए।
जानकार बताते हैं कि कांग्रेस नेताओं को डर सता रहा था कि राष्ट्रवाद और धारा 370 के मामले में लोकसभा की तरह महापौर और सभापतियों के चुनाव में कांग्रेस को नुकसान न उठाना पड़ जाए। इसे लेकर कांग्रेस नेताओं ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी महापौर और सभापतियों के चुनाव सीधे नहीं कराने का सुझाव दिया था।