टोंक पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का निर्वाचन क्षेत्र है, यहां का प्रभार चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के लिए कोई चुनौती से कम नहीं है। रघु शर्मा और सचिन पायलट के बीच अदावत जग जाहिर है, हाल ही में अजमेर में अजमेर संभाग के फीडबैक कार्यक्रम के दौरान रघु शर्मा को पायलट कैंप के समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा था। ऐसे में टोंक जिले में शर्मा को पायलट कैंप के नेताओं से सहयोग मिल पाने की संभावना कम ही नजर आती है।
दौसा-करौली जिलों को पायलट कैंप का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। दोनों ही जिले मीणा-गुर्जर बाहुल्य हैं। रमेश मीणा, पीआर मीणा, जीआर खटाणा जैसे पायलट कैंप के मजबूत विधायक इन्हीं जिलों से आते हैं।
अजमेर जिला में भी पायलट कैंप का खासा असर है, पायलट स्वयं अजमेर से सांसद रहते केंद्र में मंत्री रह चुके हैं, संगठन में भी यहां पायलट कैंप का ही बोलबाला है। पायलट के विश्वस्त राकेश पारीक अजमेर के मसूदा से विधायक हैं। शहर और देहात के पूर्व अध्यक्ष भी पायलट के करीबी हैं, ऐसे में लालचंद कटारिया को भी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
नागौर-
नागौर जिले को भी पायलट कैंप के गढ़ के रूप में माना जाता है। राजस्व मंत्री हरीश चौधरी के मारवाड़ अंचल से आने के बावजूद उन्हें यहां पायलट कैंप के साथ-साथ नागौर से रालोपा सांसद हनुमान बेनीवाल से भी चुनौती मिलती रहेगी।
भरतपुर जिले को पायलट कैंप के गढ़ के रूप में देखा जाता है, पायलट कैंप के सबसे कद्दावर नेताओं में शामिल विश्ववेंद्र सिंह का भरतपुर में खासा प्रभाव है। मुख्यमंत्री के करीबी और विधानसभा में मुख्य सचेतक महेश जोशी को भरतपुर जिले का प्रभार दिया गया है। हालांकि भरतपुर महेश जोशी का ससुराल भी है। बावजूद इसके यहां मैनजमेंट के साथ सबको साथ लेकर चलना जोशी के लिए भी आसान काम नहीं होगा।