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राजस्थान के इस मंदिर में मां को लगता था इंसान का भोग, तोपो से दी जाती थी सलामी!

locationजयपुरPublished: Sep 25, 2017 06:08:26 pm

Submitted by:

dinesh

सवाई प्रताप सिंह आठ दिन तक आमेर मंदिर में भैंसों और बकरों का बलिदान देते…

Shila Mata
जयपुर। आमेर किले के भव्य मंदिर में विराजमान महिषासुरमर्दिनी अष्ठभुजी माता शिलादेवी ढूढाड़ राजवंश व प्रजा की अधिष्ठात्री देवी मां है। अकबर के सेना नायक व आमेर नरेश मानसिंह प्रथम शिलादेवी को बंगाल में जसोर के महाराजा प्रतापादित्य केदारराय से सौलहवीं सदी में आमेर लाए। बरसों पहले नवरात्रों में सप्तमी और अष्ठमी की मध्य रात्रि में निशा पूजन के बाद बकरों और भैंसों का महाराजा व सामंत बलिदान देते थे। आमेर नरेश मानसिंह के बारे में किवदंती है कि उन्होंने नरबलि भी दी थी। इतिहासकार डॉ राघवेन्द्र सिंह मनोहर ने राजस्थान के प्रमुख शक्तिपीठ में लिखा कि एक चारण ने दिल को झकझोर देने वाला दोहा सुनाया तब मानसिंह ने आमेर में नरबलि बंद की।
Shila Mata
दो लाइनों में यह दोहा कहा था
बकर कसाई बीवड़ा, कलम कसाई केक मिनख मार रच्छा चहै, मान कसाई हेक

इसका मतलब यह है कि बकरों को मारने वाले और कलम से बुरा करने वाले कई कसाई हैं। हे राजा मानसिंह आप अपना एेश्वर्य बढ़ाने के लिए इंसान को मार अपना भला करना क्यू चाहते हैं।
सवाई प्रताप सिंह आठ दिन तक आमेर मंदिर में भैंसों और बकरों का बलिदान देते। प्रताप प्रकाश ग्रंथ में लिखा है कि… सवाई प्रताप सिंह ने नवरात्रा में आमेर के देवीजी मंदिर में आठ दिन तक भैंसों व बकरों की बलि चढ़ाई।
आमेर पुलिस के थानेदार सैयद जहीरुद्दीन हुसैन जहीर देहलवी ने लिखा कि सवाई रामसिंह द्वितीय अपने चेले किशन लाल के साथ बलिदान करने आमेर आए। चार घड़ी बाद पसीने से भीगे सवाई रामसिंह मंदिर की सीढिय़ों पर बैठ गए। बलिदान होता तब नाहरगढ़ से माता को तोपों की सलामी दी जाती। जयपुर बसाने में व्यवधान होने पर सवाई जयसिंह ने विद्वानों की सलाह पर शिलामाता की प्रतिमा का मुख पूर्व से उत्तर में करवाया। मीणा शासकों के समय की अष्ठधातु में बनी हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है। स्फटिक का शिवलिंग, चांदी का नगाड़ा भी रखा है।
Shila Mata
मानसिंह द्वितीय की महारानी किशोर कंवर ने पति के स्वस्थ रहने की कामना से मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाया। राजगुरु विद्यानाथ ओझा की अध्यक्षता में विद्वानों की कमेटी पूजा पद्धति पर निगाह रखती थी। पं.गिरधर शर्मा चतुर्वेदी, गंगाधर द्विवेदी आदि विद्वान नवरात्र पर मंदिर के बाहर कवि सम्मेलन करते। लाल पाषाण में बने श्रीगणेशजी के अलावा चित्रकार धीरेन्द्र घोष के बनाए महालक्ष्मी, महाकाली सहित मां दुर्गा के नौ स्वरूप और दस विद्याओं के चित्र अति मनोरम है। एक खिडक़ी में जीवण सिंह बंजारा भोमियाजी विराजे हैं। शिला माता की मूर्ति को बंगाल के पाल शासकों ने आठवीं सदी में बनवाया था।

-सांगानेर को सांगो बाबो, जैपर को हनुमान , आमेर की शिला देवी ल्यायो राजा मान।

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