गोटीपुआ प्रशिक्षक बसंत कुमार प्रधान ने बताया कि गोटी का मतलब होता है एक तथा पुआ का अर्थ है लड़का, यानी गोटीपुआ का मतलब हुआ एक लड़का। इस डांस को करने वाले हर नर्तक को ’गोटीपुआ’ कहा जाता है। इसी कारण से इस लोक नृत्य का नाम गोटीपुआ पड़ा। प्रधान बताते हैं कि दरअसल, गोटीपुआ भगवान जगन्नाथ, शिव सहित सभी भगवान की सेवा कर सकते हैं। इनके लिए किसी भी मंदिर में प्रवेश निषिद्ध नहीं होता, इसलिए ये जगन्नाथ भगवान की सेवा में लगाए जाते हैं।
नर्तक की वेशभूषा-
गोटीपुआ के लोक नर्तक साड़ी, ब्लाउज, उत्तरी (कंधे से कमर तक का बेल्ट), पंची (कमर पट्टा), कमर के नीचे कूचो और उसके नीचे धोती जैसा पायजामा पहनते हैं। इनके वस्त्र दुल्हन के वेश की तरह चमचमाते हैं। साथ ही, गहनों में ये अपनी बाहों में बाहुटी, कलाई में बाजू ( विशेष तरह का कंगन), गले में माली (नाभि तक लंबा हार) और पैरों में घूंघरू पहनते हैं। इनके पैर के पंजों में आलता लगा होता है। यानी पूर्ण स्त्री रूप।
गोटीपुआ के लोक नर्तक साड़ी, ब्लाउज, उत्तरी (कंधे से कमर तक का बेल्ट), पंची (कमर पट्टा), कमर के नीचे कूचो और उसके नीचे धोती जैसा पायजामा पहनते हैं। इनके वस्त्र दुल्हन के वेश की तरह चमचमाते हैं। साथ ही, गहनों में ये अपनी बाहों में बाहुटी, कलाई में बाजू ( विशेष तरह का कंगन), गले में माली (नाभि तक लंबा हार) और पैरों में घूंघरू पहनते हैं। इनके पैर के पंजों में आलता लगा होता है। यानी पूर्ण स्त्री रूप।
प्रधान के मुताबिक इस विधा के विकास के लिए पुरी में दशभुजा गोटीपुआ ओड़िशी नृत्य परिषद् काम कर रही है। इसमें फिलहाल 27 गोटीपुआ प्रशिक्षण ले रहे हैं। ये लड़के अपने प्रशिक्षण का खर्चा विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शित अपने डांस से होने वाली आय से वहन करते हैं।