इस कोष से प्रतिवर्ष करीब 220 करोड़ रुपए पशुपालकों को देने का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव अमल में लाया जाता है तो गौशालाओं के अनुदान में मुश्किल आना तय है। प्रदेश में गौसंवर्धन के लिए भाजपा सरकार ने गौपालन विभाग की स्थापना की थी।
इस विभाग में बजट उपलब्ध कराने के लिए रजिस्ट्री और शराब पर सरचार्ज लगाया गया। इससे मिलने वाले बजट को अभी तक प्रदेश की पंजीकृत गौशालाओं को अनुदान देने के लिए खर्च किया जा रहा है।
200 से अधिक गौवंश होने पर मिलता है अनुदान गोपालन विभाग पंजीकृत गौशालाओं को अनुदान देता है, जहां दो सौ से अधिक गोवंश हैं। छोटे पशु के लिए 16 रुपए व बड़े के लिए 32 रुपए का प्रावधान था। इसे 2018 में ही बढ़ा कर 20 व 40 रुपए किया गया। 2017 में सरकार ने तीन माह का अनुदान दिया था, उसे वर्ष 2018 में बढ़ा कर छह माह कर दिया। सरकार के प्रस्ताव पर गोपालन विभाग ने स्पष्ट किया कि वर्ष 2018 में सरचार्ज के रूप में 535 करोड़ रुपए मिले। वर्ष 2019 में सरचार्ज के रूप में 540 करोड़ रुपए कोष में आने का अनुमान है। अनुदान राशि और अनुदान का समय बढ़ाने से इस वर्ष अनुदान के रूप में 560 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
8 लाख किसानों से किया था वादा वर्तमान सरकार ने पहले बजट सत्र में ही सहकारी दुग्ध उत्पादन समिति में दूध बेचने वाले पशुपालकों को प्रति लीटर दो रुपए का बोनस देने की घोषणा की। घोषणा के अनुरूप सरकार ने लोकसभा चुनाव को देखते हुए मार्च तक का बजट तो राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (आरसीडीएफ) को उपलब्ध करा दिया। इसके बाद बजट का स्थाई हल खोजने पर चर्चा शुरू हुई तो सबसे पहले गौसंवर्धन कोष पर नजर गई। सरचार्ज से इस कोष में वर्ष 2018 में ही करीब साढ़े पांच सौ करोड़ रुपए जमा हुए हैं। आरसीडीएफ ने प्रस्ताव में बताया कि करीब आठ लाख पशुपालकों को बोनस देने में करीब 220 करोड़ रुपए की आवश्यकता है। प्रतिमाह करीब 9 करोड़ लीटर दूध संकलन केन्द्रों तक पहुंचता है। इस पर प्रति लीटर दो रुपए का बोनस देना का प्रावधान है। आरसीडीएफ के प्रस्ताव पर सरकार ने गोपालन विभाग से तथ्यात्मक स्थिति जानी।