विभाग ने इस संबंध में सभी शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए हैं। हर माह की एक तारीख को स्कूल और शिक्षण संस्थाओं से निर्धारित फॉर्मेट में 9 बिंदुओं में रिपोर्ट देनी होगी। जिस जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में होने वाली मासिक बैठक में रखा जाएगा। स्कूल के अंदर प्रमुख स्थानों पर साइन बोर्ड भी लगाया जाएगा जिस पर ध्रूमपान निषेध संबंधी संदेश लिखा जाएगा। इसके अलावा विद्यालय स्टाफ और बाहर से आने वाले लोगों पर भी धूम्रपान की पाबंदी होगी। जिससे स्कूल में पढऩे वाले विद्यार्थी पर इसका बुरा असर नहीं पड़े। कार्रवाही ईकी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। गौरतलब है कि फिलहाल कोविड के कारण बच्चे स्कूल नहीं आ रहे और स्कूल में उनकी क्लास भी नहीं चल रही लेकिन इसके बाद भी इसकी पालना सख्ती से की जाएगी। स्कूल के बाहर 200 मीटर की दूरी तक कोई भी तंबाकू उत्पाद नहीं बेचा जा सकेगा।
विभाग की ओर से जारी किए गए इन नियमों को लेकर आमजन और अभिभावकों का कहना है कि नियम के मुताबिक स्कूलों के 100 मीटर के दायरे तक न तो पान के टपरे होने चाहिए और न ही शराब की दुकानें लेकिन ऐसा होता नहीं है। सरकार कार्यवाही करती है फिर लेकिन कुछ समय बाद उस स्थान पर दुकानें जस की तस नजर आती हैं उन पर अतिक्रमण का भी कोई असर नहीं होता है।
जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार के निरोगी राजस्थान अभियान के तहत प्रदेश के सभी स्कूलों को केंद्र सरकार की ओर से जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक तंबाकू मुक्त स्कूल के रूप में विकसित किए जाने का लक्ष्य रखा गया है। इस संबंध में स्कूल और शिक्षण संस्थान को तंबाकू मुक्त विद्यालय किए जाने के लिए निर्धारित किए गए 9 इंडीकेटर्स को ध्यान में रखते हुए हर माह अधिकारियों को रिपोर्ट भेजनी होगी। तंबाकू मुक्त स्कूल के लिए स्कूल में तंबाकू नियंत्रण कमेटी का गठन करना होगा। परिसर को तंबाकू मुक्त रखा जाएगा जहां न तो बीड़ी सिगरेट के टुकड़े होंगे और ना ही गुटखा तंबाकू के पाउच थूक के धब्बे होंगे।
पोद्दार स्कूल के शिक्षक शशिभूषण शर्मा ने बताया कि बच्चों को नशे से दूर रखने के लिये कई प्रयास किए जाते हैं। स्कूली बच्चों की उम्र 18 वर्ष तक ही होती है। इतनी कम उम्र में बच्चे एक-दूसरे को देखकर तम्बाकू का सेवन करना शुरू कर देते हैं। इस उम्र में जब नशे की शुरुआत हो जाती है तो उसे छोडऩा और मुश्किल हो जाता है। अभी कोविड के कारण स्कूल बंद हैं, लेकिन जब स्कूल खुले होते हैं तो हम बच्चों को नशा न करने के लिए जागरुक करते हैं। उन्हें इससे होने वाले नुकसान की जानकारी दी जाती थी। उनके अभिभावकों को भी जागरुक करने का प्रयास किया जाता है। यदि सभी स्कूलों में बच्चों की रोज चैकिंग होने लगे तो बहुत हद तक बच्चों को नशे से दूर रखा जा सकता है।