scriptकनक वृंदावन में ढाई साल रहे थे जयपुर के ईष्टदेव भगवान राधा गोविंददेवजी | Govind Dev Ji Temple, kanak vrindavan jaipur | Patrika News

कनक वृंदावन में ढाई साल रहे थे जयपुर के ईष्टदेव भगवान राधा गोविंददेवजी

locationजयपुरPublished: Mar 12, 2019 08:29:20 am

Submitted by:

santosh

जयपुर के ईष्टदेव भगवान राधा गोविंददेवजी सिटी पैलेस स्थित सूरजमहल में आने से पहले ढाई साल तक जलमहल के पास कनक वृंदावन में रहे थे।

jaipur news

जयपुर गोविंददेवजी मंदिर में ठाकुर जी के बांधी राखी

जितेन्द्र सिंह शेखावत
जयपुर के ईष्टदेव भगवान राधा गोविंददेवजी सिटी पैलेस स्थित सूरजमहल में आने से पहले ढाई साल तक जलमहल के पास कनक वृंदावन में रहे थे। रमणीक झील और हरी भरी पहाडिय़ों की वादियों से जुड़े कनक वृंदावन को आमेर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने नया रूप दिया था। बाद में आमेर नरेश राम सिंह प्रथम, बिशन सिंह और सवाई जयसिंह ने गोविंददेवजी के इस स्थान को दूसरा वृंदावन बनाने की कल्पना को साकार किया।
आमेर घाटी में कृष्ण के अति प्रिय कदम्ब के वृक्षों की ब्रज तक श्रृंखला होने के अलावा सोने की आभा जैसे पलाश के पीले फूलों से गोविंददेव मंदिर व उद्यान का नामकरण कनक वृंदावन किया गया। कनक वृंदावन से आमेर व जोरावरसिंह दरवाजे तक बद्रीनाथ जी की डूंगरी, काला हनुमानजी, विष्णु स्वरूप विरद भगवान की डूंगरी, मंशा माता, राधा माधव,नटवरजी, निम्बार्कियों के परशुराम द्वारा में बलराम मंदिरों और राधा बाग का क्षेत्र उस समय सघन हरियाली से आच्छादित था।
अश्वमेघ जैसे महायज्ञ भी इस क्षेत्र में करवाए। वर्ष 1590 में आमेर नरेश मानसिंह प्रथम ने वृंदावन में गोविंददेवजी का मंदिर बनवाया था। औरंगजेब ने मंदिरों को तोडऩा शुरू किया तब वर्ष 1669 में आमेर के साहू विमलदास ने गोविंददेवजी को वृंदावन से सुरक्षित लाने के काम को अंजाम दिया। वर्ष 1700 में भगवान भरतपुर के पास गोबिंदगढ़ आए और 1707 में जमवारामगढ़ के पास खवारानी जी पहुंचे। इसके बाद वर्ष 1713 तक सांगानेर के पास गोविंदपुरा में रहे। जयपुर की नींव लगने के पहले सवाई जयसिंह कनक वृंदावन से अपने बनाए सूरजमहल में लाए। सनातन व रूप गोस्वामी गोविंददेवजी को आमेर रियासत में लाए थे।
जयपुर की गोविंददेवजी की मूर्ति को श्रीकृष्ण के प्रपोत्र बृजनाभ ने मथुरा किले में रखे काले पत्थर से बनवाया था। ब्रजनाभ ने अपनी दादी से कृष्ण के स्वरूप के बारे में सुनकर उनके बताए अनुसार गोविंददेवजी की मूर्ति का निर्माण करवाया। कनक वृंदावन के जिस मंदिर में राधा गोविंददेवजी को विराजमान किया गया, उसके पानी में डूब जाने पर बड़ा मंदिर बनवाया गया। गोविंददेवजी और ठकुराइन राधा रानी की सेवा के लिए दो सखियों की मूर्तियां विराजमान की गईं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो