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छुट्टी के दिन न हों बीमार… डिस्पेंसरी में नहीं मिलेगा इलाज

locationजयपुरPublished: Feb 04, 2019 10:12:03 am

Submitted by:

Mridula Sharma

लाइव रिपोर्ट: रविवार को सिर्फ दो घंटे खुलती हैं डिस्पेंसरी, मगर व्यवस्था खराब

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छुट्टी के दिन न हों बीमार… डिस्पेंसरी में नहीं मिलेगा इलाज

जया गुप्ता/विजय शर्मा/अविनाश बाकोलिया/हर्षित जैन
जयपुर. प्रदेश में स्वाइन फ्लू कहर बरपा रहा है। हर रोज मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, मगर राजधानी के छोटे अस्पताल और डिस्पेंसरियां तो खुद ही बीमार पड़ी है। न्याय मित्र ने एसएमएस अस्पताल के दौरा स्थिति चिंताजनक बताई थी, इसके बाद राजस्थान पत्रिका ने शहर की अलग-अलग डिस्पेंसरियों का हाल जाना तो चौंकाने वाली स्थिति सामने आई। रविवार को अवकाश के दिन सुबह 9 से 11 बजे तक डिस्पेंसरियां खुलती हैं, मगर इन 2 घंटे में भी हालात अच्छे नहीं मिले। कहीं डिस्पेंसरी के एकमात्र डॉक्टर के साप्ताहिक अवकाश पर होने के कारण खुली होने के बावजूद स्वास्थ्य केंद्र अघोषित रूप से बंद मिले, तो कहीं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही पर्ची काटते मिले। हालांकि एक डिस्पेंसरी में व्यवस्था सही मिली। शहर के विभिन्न इलाकों से डिस्पेंसरियों की रिपोर्ट –
आज डॉक्टर नहीं है, कल आना…
आमेर रोड, राजकीय चिकित्सालय: सुबह 8.58 का समय… एक महिला और एक पुरूष कर्मचारी ने आकर डिस्पेंसरी का दरवाजा खोला। अंदर बायोमेट्रिक मशीन लगी थी, फिर भी रजिस्टर में हाजिरी की। अंदर डॉक्टर नहीं था। अगले पांच मिनट के भीतर एक रिक्शाचालक मरीज आया, बोला-डॉक्टर को दिखाना है। पर्ची काट दो। कर्मचारियों ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, आज डॉक्टर छुट्टी पर हैं। कल आना। मरीज अपना सा मुंह लेकर लौट गया। एक के बाद एक आधे घंटे के भीतर ही 15 से अधिक मरीज डिस्पेंसरी पहुंचे ,लेकिन सभी को एक ही जवाब मिला। आज डॉक्टर का साप्ताहिक अवकाश है…. कल आना। मौजूदा स्टाफ ने मरीजों की परेशानी सुनने की जहमत भी नहीं उठाई। गंगापोल निवासी भगवानी देवी अपने पति व बेटे की मदद से डिस्पेंसरी पहुंची। वह ठीक प्रकार से चल भी नहीं पा रही थी। बड़ी मुश्किल से अंदर पहुंची। अंदर स्टाफ ने वही जवाब दिया। अपने चार साल के पोते कार्तिक को लेकर आई दादी विमला ने बताया कि कल देर रात कार्तिक गिर गया था। चोट लगी है। डॉक्टर को दिखाने आई थीं, मगर डॉक्टर नहीं है। अब किसी निजी क्लिनिक में दिखाऊंगी वहीं पांच साल के विशेष बच्चे को लेकर आई मां व बुआ ने बताया कि उसे कल रात से बुखार, खांसी है। डॉक्टर की आज छुट्टी है, अब कल आएंगे।
रोज 300-400 का ओपीडी एक डॉक्टर के भरोसे : कर्मचारियों ने बताया कि ओपीडी में रोज करीब 300 मरीज दिखाने आते हैं। सोमवार को तो आंकड़ा कई बार 400 तक पहुंच जाता है, लेकिन विभाग ने यहां एक ही डॉक्टर लगा रखा है। डिस्पेंसरी में चतुर्थ श्रेणी, स्वीपर समेत कुल 11 कर्मचारी हैं। इनमें से पांच का रविवार को अवकाश रहता है। बाकी कर्मचारी मरीजों की पीड़ा भी नहीं सुनते।
इनका कहना है: डिस्पेंसरी का ओपीडी काफी ज्यादा है। 300-400 मरीज रोज आते हैं। विभाग को कई बार एक और डॉक्टर नियुक्त करने के लिए पत्र भेज दिया, लेकिन डॉक्टर नहीं लगाय जा रहा है। – डॉ. वर्षा सक्सेना, एसएमओ इन्चार्ज, गंगापोल राजकीय चिकित्सालय
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स्टाफ छुट्टी पर है… टीके तो कल ही लग पाएंगे
वैशालीनगर, राजकीय चिकित्सालय: सुबह 9 बजे थे, मगर अस्पताल का गेट बंद था। डिस्पेंसरी में मरीजों का आना शुरू हो गया। करीब आधा दर्जन मरीज गेट के बाहर तक आ खड़े हुए। पांच मिनट बाद अंदर से आवाज आनी लगी और गेट खुल गए। मरीज अंदर आ गए, लेकिन अभी तक स्टाफ का आना जारी था। स्टाफ ने बायोमेट्रिक हाजिरी दी और सीट पर बैठ गए। तीन डॉक्टर भी आ गए। धीरे-धीरे मरीजों की कतार लगने लगी। मरीजों की भीड़ बढऩे के साथ अव्यवस्थाएं सामने आने लगी। रविवार को चार डॉक्टर डï्यूटी पर रहते हैं, लेकिन एक नहीं था। तीन डॉक्टर ही मरीजों को देख रहे थे। चित्रकूट निवासी शकुंतला बेटे के टीका लगाने के लिए डिस्पेंसरी पहुंची। काउंटर पर उन्होंने टीकाकरण के बारे में पूछा, तभी स्टाफ ने उनसे मना करते हुए कहा आज स्टाफ कम हैं, सोमवार को आना।
सिर्फ अव्यवस्थाएं: वैशाली नगर में दूर-दूर तक सरकारी चिकित्सालय नहीं है। आस-पास की आबादी के लिए एकमात्र सरकारी डिस्पेंसरी ही विकल्प है। ऐसे में वैशाली की डिस्पेंसरी में अमूमन 800 से 1000 तक रोज ओपीडी रहती है। मौसमी बीमारियों में यह संख्या 1500 तक पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति में डिस्पेंसरी में 2 नर्सिंग और एक एएनएम ही काम कर रही है। टीकाकरण के लिए एक ही नर्सिंग स्टाफ काम करता है। ऐसे में अन्य काम प्रभावित हो जाते हैं। आलम यह है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी काउंटर पर बैठकर पर्चियां काटता है। नि:शुल्क दवा योजना का काउंटर के हाल भी बेहाल
है।
इनका कहना है
डिस्पेंसरी में एक नर्सिंग स्टाफ का प्रमोशन होने के कारण पद खाली चल रहा है। ओपीडी ज्यादा रहने के कारण दिक्कत तो रहती है, इसके लिए आगे सूचना भेज रखी है। – डॉ. महेश असवाल, इंचार्ज, वैशाली डिस्पेंसरी
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यहां अच्छे मिले हालात, नहीं करना पड़ा इंतजार
दुर्गापुरा, राजकीय चिकित्सालय: दो कमरे और एक हॉल में किराए के मकान में चल रहा चिकित्सालय। सुबह 8.50 पर जब चिकित्सालय पहुंचे तो वहां नर्सिंग स्टाफ विमला चौधरी और वॉर्ड बॉय मानप्रकाश पहले से ही मौजूद थे। ठीक 9.03 मिनट पर चिकित्सा अधिकारी प्रभारी डॉ. वर्षा जैन ने वहां लगे बायोमेट्रिक उपकरण पर उपस्थिति दर्ज कराई। कुछ ही देर में एक-दो मरीज आए और रजिस्ट्रेशन काउंटर से पर्ची कटवाकर डॉक्टर को दिखाने चले गए। 9.05 मिनट पर डेंटिस्ट डॉ. ज्योति यादव और फार्मासिस्ट राखी टांक भी आ गई। धीरे-धीरे मरीज भी आने लगे। अधिकतर बुखार-खांसी के मरीज आए। चिकित्सालय में लाउड स्पीकर के माध्यम से स्वाइन फ्लू की बीमारी के बारे में लोगों को जानकारी दी जा रही थी। मरीजों ने बताया कि हमेशा चिकित्सालय समय पर खुलता है। यहां के स्टाफ का व्यवहार भी बहुत अच्छा है।
अस्पताल में ही मिल जाती है दवा: दुर्गापुरा से आए किरण ने बताया कि चिकित्सालय में पहले भी आ चुका हंू। डॉक्टर बाहर की कोई भी दवाइयां नहीं लिखती हैं। सब यहीं से मिल जाती है। राखी ने बताया कि दवाइयों का स्टॉक पूरा है। आर्यन शर्मा ने बताया कि हमें अच्छे से देखा जा रहा है। किसी भी मरीज को लाइन में इंतजार नहीं करना पड़ रहा है। चिकित्सालय में दो एएनएम और दो लैब टेक्निशियन का रविवार को अवकाश होने की वजह से नहीं आए।
इनका कहना है
चिकित्सालय में पर्याप्त स्टाफ है। समय पर सभी स्टाफ उपस्थित रहता है। दवाइयां भी बाहर की नहीं लिखी जाती। बायोमेट्रिक मशीन से उपस्थिति दर्ज होती है। 15 तरह की जांचें यहां पर की जाती है। – डॉ. वर्षा जैन,चिकित्सा अधिकारी
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कम्पाउण्डर ही होते हैं एक दिन के डॉक्टर
इंदिरा गांधी नगर सेक्टर-4, शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र: हजारों की आबादी वाली इंदिरा गांधी नगर सेक्टर-4 स्थित डिस्पेंसरी में सुबह 8.45 बजे तेज ठंड में एक महिला कर्मचारी डिस्पेंसरी पहुंची। ताला खोल कुर्सी, रजिस्टर सहित अन्य सामानों को सही किया। फिर बायोमेट्रिक मशीन में हाजिरी लगाई। 15 मिनट बाद दो कर्मचारी डिस्पेंसरी पहुंचे। इससे पहले दो मरीज वहां आ चुके थे। एक ने पर्ची काटने के लिए कहा तो कर्मचारी बोला-आज डॉक्टर मैडम नहीं आएंगी, क्योंकि आज उनका साप्ताहिक अवकाश है। इतने में दो मरीज तो वापस चल गए। जबकि कुछ मरीज वहीं रुके रहे। डॉक्टर के अवकाश पर होने के कारण कम्पाउंडर ही मरीजों का चेकअप कर दवा लिख रहे थे।
एक के भरोसे पूरी व्यवस्था
अन्य दिनों में यदि डिस्पेंसरी प्रभारी छुट्टी पर रहता है तो पार्टटाइम वाले डॉक्टर अलग-अलग दिन ड्यूटी पर होते हैं। पड़ताल में पता चला कि पार्टटाइमर डॉक्टर भी कई बार आते हैं, कई बार नहीं आते। परंतु रविवार के दिन प्रभारी ने किसी अन्य चिकित्सक की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं कर रखी। कम्पाउंडर यदि पर्ची काटने के बाद मरीज को देखेगा तो इससे समय भी थोड़ा ज्यादा लग रहा है। दवा की दुकान में ज्यादातर दवाइयां नहीं थी। यहां डिस्पेंसरी में रोजाना 150 के आसपास मरीज आते हैं। सात डिस्पेंसरी स्टाफ समेत पांच एनएचयूएम कर्मचारी लगे हैं। परंतु रविवार को सिर्फ दो कर्मचारियों के जिम्मे पूरी डिस्पेंसरी खुली थी। इसके अलावा पीने का पानी, बैठने, शौचालय और जांचों की भी सुविधा डिस्पेंसरी में है।
लिखते रहे दवा
सेक्टर 12 से अस्पताल पहुंची भंवरी देवी ने बताया कि मेरा जी घबरा रहा था तो यहां डॉक्टर को दिखाने आई थी। उनसे यहां मौजूद स्टाफ बोला-डॉक्टर तो छुट्टी पर आप कल आना। भंवरी देवी बताया कि अब मजबूरन निजी अस्पताल में ही दिखाना पड़ेगा। मरीजों को देखने के साथ स्टाफ ये अश्वासन देकर भेज रहा था कि आज तो दवा दी है वो ले लेना और ज्यादा दिक्कत हो तो कल आ जाना। कल डॉक्टर आ जाएंगी।
इनका कहना है
डिस्पेंसरी में एक ही डॉक्टर है, इसलिए रविवार को साप्ताहिक अवकाश मान्य होता है। अन्य दिनों में अवकाश नहीं ले सकते, यह पहले से निर्धारित है। यहां एक और चिकित्सक की आवश्यकता है। – डॉ. ज्योति शर्मा, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी
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