दरअसल सड़क, नाली, सीवर सहित सभी तरह के विकास कार्यों के लिए निगम ग्रेटर ने कई वार्डों में टेंडर जारी किए थे। इसी बीच आयुक्त ने अगस्त के पहले सप्ताह में आदेश निकाला कि जिस टेंडर में बेसिक शेड्यूल रेट (बीएसआर) से कम दर आती है तो ठेकेदार से टेंडर दर और बीएसआर दर के बीच की अंतर राशि ले ली जाए। ताकि काम में गड़बड़ी होने पर इस राशि से काम पूरा करवाया जाए। आयुक्त ने आदेश की तारीख और उसके बाद होने वाले टेंडर के लिए इस आदेश को प्रभावी किया था। आदेश उन टेंडर पर भी लागू था, जो फाइनल नहीं हुए थे। मगर आदेश के 15 दिन पहले तक के जिन टेंडर की फाइनेंशियल बिड खुल चुकी थी, उन टेंडरों को भी आयुक्त ने इस आदेश के दायरे में लाने के निर्देश दिए।
टेंडर शर्तों में नहीं था प्रावधान जिन टेंडर पर आयुक्त ने यह प्रावधान लागू करने के आदेश दिए हैं, वो प्रावधान उन टेंडर शर्तों पर लागू ही नहीं था। इस संबंध में अधिशासी अभियंताओं ने भी आयुक्त को जानकारी दी है। मगर अभी तक कोई निर्णय नहीं होने के कारण विकास कार्य अटका पड़ा है। उधर ठेकेदारों ने भी यह राशि जमा कराने के इनकार कर दिया है, जिसकी वजह से वर्कआॅर्डर अटक गए हैं।
करीब 25 करोड़ रुपए के टेंडर अटके आयुक्त के इस आदेश की वजह से नगर निगम में विकास कार्यों के करीब 25 करोड़ रुपए के टेंडर का वर्कआॅर्डर जारी नहीं हो सकता है। धाभाई की घोषणा के अनुसार करीब 75 करोड़ रुपए के विकास के काम वार्डों में कराए जाने हैं। मगर टेंडर अटकने की वजह से पार्षद भी नाराज हैं। भाजपा पार्षदों ने सोमवार को ही विकास कार्य नहीं होने से नाराज होकर ग्रेटर निगम मुख्यालय पर धरना दिया था।
जेडीए ने दोबारा लागू किया है प्रावधान जेडीए ने भी कुछ वर्ष पहले बेसिक शेड्यूल रेट (बीएसआर) से कम दर आने पर ठेकेदार से टेंडर दर और बीएसआर दर के बीच की अंतर राशि लेने का प्रावधान लागू किया था। बाद में ठेकेदारों के विरोध की वजह से यह आदेश वापस ले लिया गया था। लेकिन दो महीने पहले ही इस प्रावधान को वापस लागू किया गया है।