ग्राउंड जीरो से जन-मन : शिप्रापथ मानसरोवर-कितनी पीड़ा सहते हैं मगर कोई नहीं आता, अब आ रहे हैं… क्योंकि चुनाव हैं। परेशानियां बताते हुए लोग बोले -यह कैसा विकास,छिन गई हमारी सुख-शांति, अब जाम-आम हो गया यहां
शिप्रापथ द्रव्यवती नदी प्रोजेक्ट स्थित एक्सपीरियंस सेंटर में चुनावी चर्चा के दौरान खुलकर बोले युवा।
महेश गुप्ता की रिपोर्ट जयपुर. कितनी पीड़ाएं सहते हैं मगर बुलाने पर भी कोई नहीं आता। न विधायक, न मंत्री। हां, अब आ रहे हैं क्योंकि चुनाव हैं। हमेशा ऐसा ही होता है। ये नेता लोग वोट मांगने आते हैं, फिर जीते या हारें पांचवें साल में ही दर्शन देते हैं।
यही सार रहा, जब मैंने मानसरोवर के शिप्रापथ इलाके में कई जगह लोगों से बात की। वही मानसरोवर, जिसका नाम जयपुर में ही नहीं बल्कि देश-दुनिया में बड़ी कॉलोनी के रूप में जाना जाता है। सरकार के सबसे अहम प्रोजेक्ट द्रव्यवती नदी सौन्दर्यन के तहत एक्सपीरियंस सेंटर और लैंडस्केप पार्क की शुरुआत के बाद यह शहर के लोगों के लिए नया हॉट स्पॉट बन गया है। शिप्रापथ के एंट्री पॉइंट बीटू बाइपास पर चाय की थड़ी पर रुका तो वहां पांच-छह युवा चाय की चुस्कियों के साथ बतिया रहे थे। मैंने चुनावी चर्चा छेड़ी तो किसी राजनीतिक दल का कार्यकर्ता समझ टालने लगे। फिर परिचय दिया तो स्थानीय निवासी विनोद जैन बोल पड़े, कैसा विकास? हमारी तो सुख-शांति छिन गई। करोड़ों रुपए खर्च कर आनन-फानन आधे-अधूरे प्रोजेक्ट का लोकार्पण कर दिया गया। मानसरोवर में एक ही पथ तो बचा था जिस पर जाम नहीं था, अब रोजाना सुबह-शाम यहां भारी जाम रहता है। छुट्टी के दिन तो यहां से कोई आसानी से निकलकर दिखाए! इतने में मुकेश सैन बोले, शहर में जीका-डेंगू लोगों को चपेट में ले रहा है और यहां गंदे पानी में मच्छर पनप रहे हैं। बीमारियां पैदा हो रही हैं। दावा किया जा रहा है कि एसटीपी से पानी साफ कर दूसरे कामों में लेंगे लेकिन अभी तो यहां पानी सड़ांध मार रहा है।
इस पर बात काटते हुए देवेंद्र पाल तेज स्वर में बोले, इस प्रोजेक्ट ने इलाके की सूरत बदली है। नाला अब नदी में बदला तो इलाके को नई पहचान भी मिली है। पहले किसी को घर बुलाने और पता बताने में भी शर्म आती थी। अब द्रव्यवती के पास घर बताते हुए अच्छा लगता है। चर्चा आगे बढ़ते देख आखिर कॉलेज छात्र आदित्य खंडलेवाल व यश शर्मा की पीड़ा जुबां पर आ गई। बोले, रोजगार के केवल वादे हुए, उन्हें पूरा नहीं किया गया। नियुक्तियों के लिए केवल वैकेंसी निकाली गई, भर्ती नहीं की गई। लाखों विद्यार्थी हर साल बेरोजगारी की कतार में शामिल हो रहे हैं। हम तो पहली बार वोट देंगे लेकिन नोटा को चुनेंगे।
इसके बाद मैंने रुख किया एक्सपीरियंस सेंटर और लैंड स्केप पार्क का। वहां एसी हॉल में मौजूद युवा वहां का प्राकृतिक दृश्य देखकर खुश नजर आ रहे थे। चुनावी मुददों पर सवाल किया तो एमबीबीएस कर रहे मोहित यादव बोले, नेता कैसे हैं, सब जानते हैं। अब जनता को झांसा देना इतना आसान नहीं है। श्यामसुंदर कादिया बोले, काम तो हुए मगर कई फैसले ऐसे लगते हैं जैसे दबाव में लिए गए हों। नेताओं को सोचना चाहिए, ऐसे फैसलों से जनता कितनी परेशान होती है। राजस्थान पत्रिका के चेंजमेकर अभियान का जिक्र करते हुए कादिया बोले, ऐसे अभियान की जरूरत थी। अच्छे और पढ़े लिखे लोग आएंगे तो राजनीति में स्वच्छता आएगी। राजनीति स्वच्छ होगी तो भ्रष्टाचार कम होगा और विकास ज्यादा होगा। इस अभियान का चुनाव में असर जरूर दिखेगा। स्वच्छता की बात चली तो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहीं राधा चौधरी व ज्योति शर्मा बोलीं, हम बेरोजगार कहां जाएं? भर्ती परीक्षाएं ले ली जाती हैं, महीनों तक परिणाम नहीं आते। आ भी जाएं तो ऐसी खामियां छोड़ दी जाती हैं कि कोई न कोई कोर्ट चला जाए। आखिर भर्ती पेंडिंग रह जाती है और हम जैसे युवाओं के सपने अधूरे रह जाते हैं।
सपरिवार लैंड स्केप पार्क आए पृथ्वीराजनगर निवासी योगेशकुमार बोले, नियमन के नाम पर हमसे 1000 करोड़ रुपए ले लिए गए मगर मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। हमारी राशि को द्रव्यवती नदी के सौंदर्यकरण में बहा दिया। मगर यहां भी आचार संहिता लगने से कुछ दिन पहले हड़बड़ी में फीता काट दिया गया। टीना यादव ने ताजा मुद्दा उठाया। बोलीं, शिप्रापथ के पास धरने-प्रदर्शन के लिए जगह आंवटित हुई तब से नई परेशानी खड़ी हो गई है। रैली-प्रदर्शन के दौरान लोग महिलाओं से बदतमीजी करते हैं। आना-जाना दुश्वार हो जाता है।
पार्क के सामने थड़ी पर चाय पी रहे गौरव भाटिया से बात हुई तो बोले, कई जगह अच्छा काम हुआ मगर कई योजनाओं में सिर्फ पैसों की बर्बादी की गई है। बीआरटीएस, रिंग रोड आदि योजनाओं पर खर्च हुई राशि व्यर्थ ही चली गई है। बीआरटीएस बसों के लिए बनाया गया लेकिन इसमें बसों के अलावा हर वाहन चलता है। ऐसे में यात्रियों को गंतव्य तक जल्दी पहुंचाने के लिए बनाया गया बीआरटीएस उलटे हादसों का कारण बन रहा है। पुष्पेंद्र स्वामी का कहना था, न्यू सांगानेर रोड पर भारी वाहनों के आवागमन की अनुमति के बाद आए-दिन एक्सीडेंट हो रहे हैं। हादसों के डर से लोग इस रोड से आने-जाने से भी कतराते हैं। यहां रेडलाइट पर यातायात पुलिसकर्मी नहीं रहते। जहां रहते हैं, वहां चाय पीते या सुस्ताते नजर आते हैं। रात को भारी वाहनों से वसूली के लिए जरूर सक्रिय दिखते हैं।
भरत यादव बोले, चुनाव के समय नेता वोट मांगने तो आ जाते हैं, फिर पांच साल बाद ही दर्शन देते हैं। शिप्रापथ पर तीन बार पेयजल लाइन टूटी, सड़क जलमग्न हो गई, लोगों का वहां रहना मुश्किल हो गया लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने सुध नहीं ली। सड़कों पर गहरे गढ्डे हो रहे हैं मगर उन पर पैबंद लगाकर खानापूर्ति कर दी गई है। आगे वीटी रोड पर बस स्टॉप पर खड़े कॉलेज छात्र अनिल अग्रवाल का कहना था, मानसरोवर को शहर का एज्यूकेशन हब कहा जाता है, निजी स्कूल-कॉलेज खूब हैं मगर सरकारी कॉलेज एक भी नहीं है। बड़े सरकारी अस्पताल के लिए भी नेताओं ने कई बार सपने दिखाए मगर अब तक अस्पताल नहीं मिला।
अंत में शिप्रापथ के अंतिम छोर पर पहुंचा, जहां पेट्रोल पंप के सामने बस के इंतजार में खड़े विवेक शर्मा बोले, मानसरोवर इतना बड़ा इलाका है मगर परिवहन के साधन बहुत कम हैं। बसों के लिए कई बार लंबा इंतजार करना पड़ता है। मेट्रो चलने से उम्मीद बंधी थी मगर वह भी सिर्फ चांदपोल तक ही जाती है। इसका रूट और बढ़ाया जाना चाहिए ताकि लोगों को सुविधा मिले।