सास के गुजरने के बाद सैंडी और उनके पति 70 वर्षीय वेन कैम्ब्रोन ने पर्ल की याद में गैऱ लाभकारी संस्था पर्ल मेमोरी बेबीज की स्थापना की। वे अब तक केंटुकी और दक्षिणी इंडियाना के नर्सिंग होम में अल्जाइमर के 300 से अधिक रोगियों को गुडिय़ा दे चुके हैं।
सैंडी बताती हैं कि गुडिय़ा के कारण बुजुर्गों को अपने बच्चों से जुड़ी तमाम बातें याद करने में मदद मिली। हालांकि डिमेंशिया यादों को मिटा देता है लेकिन यह पीडि़त से प्यार करने की क्षमता को नहीं छीन पाता। इसी मातृत्व और जिम्मेदारी के अहसास को जगाकर हम इन बुजुर्गों को इनके अंतिम सालों में सक्रिय रहने में मदद कर रहे हैं। बच्चों की परवरिश एक महत्त्वपूर्ण काम है और डिमेंशिया पीडि़त व्यक्ति को एक वास्तविक उद्देश्य महसूस होता है। गुडिय़ा इसी सहज भावना को वापस ले आती हैं।