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गुडिय़ा के बहाने बुजुर्गों को लौटा रहे मीठी यादों का खजाना

locationजयपुरPublished: Jul 13, 2019 07:53:57 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

गुडिय़ों से लौटा रहे मीठी यादों का खजाना
गुडिय़ा के बहाने बुजुर्गों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश कर रहां दंपती

गुडिय़ा के बहाने बुजुर्गों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश कर रहां दंपती

गुडिय़ा के बहाने बुजुर्गों को फिर से सक्रिय करने की कोशिश कर रहां दंपती

जयपुर। अमरीका के शेफड्र्सविले (केंटुकी) निवासी 67 वर्षीय सैंडी कैम्ब्रॉन को 15 साल पहले अपनी सास पर्ल वॉकर के अल्ज़ाइमर से पीडि़त होने का पता चला। घरवालों ने पर्ल को पुराने फैमिली एल्बम और जान-पहचान वाली जगहों से जुड़े किस्से सुनाए लेकिन उनकी याददाश्त में कुछ फर्क नहीं पड़ा। फिर एक दिन सैंडी को खिलौने की दुकान में गुडिय़ा देखकर खयाल आया कि क्यों न पर्ल को एक बेबी डॉल दी जाए ताकि उन्हें लगे कि वे किसी बच्चे की देखभाल कर रही हैं।
काम कर गया आइडिया

सैंडी का यह आइडिया काम कर गया। जैसे ही उन्होंने अपनी सास पर्ल की गोद में एक नर्म गुलाबी तौलिए में लिपटी हुई गुडिय़ा को रखा उनके चेहरे का तनाव हल्का हो गया। पर्ल ने फिर से बात करना शुरू कर दिया। उन्हें काफी बातें याद भी आ गईं। अब वे उस गुडिय़ा को हमेशा अपने पास रखती और उसके बिना कहीं नहीं जाती थीं। खाने की टेबल से लेकर वे हर रात उसे अपनी बाहों में लेकर सोती थीं।
अल्ज़ाइमर पीडि़तों को देते गुडिय़ा
सास के गुजरने के बाद सैंडी और उनके पति 70 वर्षीय वेन कैम्ब्रोन ने पर्ल की याद में गैऱ लाभकारी संस्था पर्ल मेमोरी बेबीज की स्थापना की। वे अब तक केंटुकी और दक्षिणी इंडियाना के नर्सिंग होम में अल्जाइमर के 300 से अधिक रोगियों को गुडिय़ा दे चुके हैं।
गुडियों का होता हैं गहरा असर
सैंडी बताती हैं कि गुडिय़ा के कारण बुजुर्गों को अपने बच्चों से जुड़ी तमाम बातें याद करने में मदद मिली। हालांकि डिमेंशिया यादों को मिटा देता है लेकिन यह पीडि़त से प्यार करने की क्षमता को नहीं छीन पाता। इसी मातृत्व और जिम्मेदारी के अहसास को जगाकर हम इन बुजुर्गों को इनके अंतिम सालों में सक्रिय रहने में मदद कर रहे हैं। बच्चों की परवरिश एक महत्त्वपूर्ण काम है और डिमेंशिया पीडि़त व्यक्ति को एक वास्तविक उद्देश्य महसूस होता है। गुडिय़ा इसी सहज भावना को वापस ले आती हैं।
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