राज्य सरकार ने केन्द्र से अनुरोध किया है कि ग्वार गम के निर्यात में आ रही बाधाओं को दूर किया जाए। इतना ही नहीं ग्वार गम के अनुसंधान, जांच एवं प्रमाणीकरण के लिए राज्य में राष्ट्रीय स्तर की संस्था भी शुरू की जाए। दरअसल, राजस्थान ग्वार गम का प्रमुख उत्पादक राज्य है। वर्तमान में औद्योगिक क्षेत्र में ग्वार गम के नए विकल्पों के कारण इसकी अन्तरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतों में गिरावट दर्ज की है। इससे ग्वार उत्पादक किसानों की आमदनी घट रही है। इस फसल के प्रति कम हो रहे रूझान के चलते इस उपज के स्टॉक में भी कमी आई है।
सरकार ने जताई शोध की जरूरत
राज्य सरकार ने केन्द्र से मांग की है कि ग्वार उत्पादक किसानों की आय में बढ़ोतरी और ग्वार गम के अन्य उपयोगों के बारे में पर्याप्त शोध एवं अनुसंधान होना चाहिए। राज्य में ग्वार गम के अनुसंधान एवं विकास के लिए केन्द्र सरकार योजना बनाए। राज्य सरकार ने इस उद्देश्य से जोधपुर में भूमि भी आवंटित कर दी है। ग्वार गम की ट्रेडिंग एनसीडीईएक्स से लिंक होने के कारण इसके व्यापार में अनिश्चितता बनी रहती है। इस कारण ग्वार का उत्पादन करने वाले किसानों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पाता। ऎसे में ग्वार गम रिफाइंड स्पिलट को एनसीडीईएक्स से बाहर निकालना उचित होगा।
स्थानीय स्तर पर मिले सुविधा
फूड ग्रेड ग्वार के लिए सर्टिफिकेशन करवाने की प्रक्रिया लंबी होने के कारण इसमें काफी समय लगता है। ऎसे में, प्रसंस्करण इकाइयों के पास ही रीजनल लेबोरेट्रीज एवं सर्टिफिकेशन एजेंसीज की इकाइयां भी स्थापित कर दी जाएं। मुख्यमंत्री ने ग्वार गम स्पिलट तथा अनप्रोसेस्ड ग्वार गम कोरमा के निर्यात की बजाय ग्वार गम पाउडर तथा रोस्टेड कोरमा को प्रोत्साहित करने के लिए इन पर 5 प्रतिशत एमईआईएस स्कीम का लाभ दिए जाने का भी केन्द्रीय मंत्री से अनुरोध किया है।
सस्ते विकल्प से गिरे दाम
आपको बता दें कि विदेश में क्रुड ऑयल कुओं में ग्वार गम का उपयोग अधिक होता है। इस वजह से इसके भाव भी तेज हो गए थे। अब विदेश में गम का विकल्ल निकाल लिया गया है। इसके चलते इसकी मांग अब कमजोर पड़ गई है। इन कुओं के लिए अब विकल्प के तौर पर शील्क वाटर नामक उत्पाद का उपयोग किया जाने लगा है। जो ग्वार गम से सस्ता मिल जाता है।
निर्यात पर भी पड़ा असर
ग्वार के निर्यात पर भी असर पड़ा है। अधिकांश ग्वार गम का विदेशों में ही निर्यात ही किया जाता है। मांग कम होने से पिछले सालों के मुकाबले अब पचास प्रतिशत से भी कम निर्यात हो रहा है। पहले करीब साढ़े छह टन गम का निर्यात होता था। अब सालाना तीन लाख टन गम का निर्यात हो रहा है। इस समय गम के भाव भी 7500 से 7600 रुपए प्रति क्विंटल चल रहे हैं। जबकि पिछले सालों में इसके भाव एक लाख रुपए प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे।