याचिका पर कोर्ट ने मुख्य सचिव, सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव व कार्मिक सचिव से जवाब मांगा था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता को तलब किया। महाधिवक्ता से मौखिक रुप से कहा कि सुप्रीम कोर्ट में विशेष पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर लम्बित मामले के विपरीत कोई आदेश जारी नहीं किया जाए, यदि उसके विपरीत कोई आदेश जारी किया तो वह सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना होगा।
READ: राजस्थान में गुर्जरों का आरक्षण फिर खतरे में, जानें इस बार क्या फंस रहा बड़ा पेंच? आपको बता दें इस मामले को लेकर गंगासहाय शर्मा की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। अधिवक्ता जी पी कौशिक ने कोर्ट को बताया कि 2008 में विशेष पिछड़ा वर्ग को पांच प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, उसे रद्द कर दिया गया। उसके बाद 2015 में आरक्षण दिया, आरक्षण 54 प्रतिशत होने पर एसबीसी आरक्षण फिर रद्द कर दिया।
READ: OBC कोटा में आरक्षण मिलने के बाद भी नाराज़ हैं कर्नल बैंसला, जानें अब फिर क्यों दे डाली सरकार को चेतावनी कोर्ट में सुनवाई के दौरान आया कि ओबीसी की जाति विशेष को 21 प्रतिशत के बजाय 30 प्रतिशत नियुक्तियां मिल चुकी हैं। इसके बावजूद उस जाति को पिछड़ा वर्ग से बाहर नहीं किया गया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और इसी बीच राज्य सरकार पिछड़ा वर्ग आरक्षण 21 से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने के लिए कानून ला रही है। यह कानून लागू होने पर आरक्षण 54 प्रतिशत हो जाएगा, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 व 16 के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन्दिरा साहनी व एम नागराज के मामले में दिए आदेश के भी यह विपरीत है।