उन्होंने पुस्तक विमोचन के लिए आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में यह संबोधन दिया। उन्होंने शरीर, मन व बुद्धि को प्रकृति का रूप बताते हुए कहा कि ये आत्मा के रूप नहीं हैं और मन नहीं है तो मानव नहीं हो सकता। कोठारी ने ब्रह्माण्ड और शरीर की तुलना करते हुए कहा कि हम ब्रह्माण्ड को जान जाएंगे तो शरीर को भी जान जाएंगे और शब्द जान जाएंगे तो ब्रह्माण्ड को जान जाएंगे। एक भाग बाहरी है, जिसे शरीर, मन, बुद्धि कह रहे हैं वह शरीर की कृति है।
कृति सम के साथ जुडती है तो उसे हम संस्कृति कहते हैं। कार्यक्रम का शुभारम्भ जयपुर के जवाहर सर्किल स्थित पत्रिका गेट से लिटरेचर फेस्टिवल के प्रोड्यूसर संजॉय के रॉय ने किया, जिसमें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक डॉ. गुलाब कोठारी के साहित्यिक कार्य और उनकी पुस्तक के बारे में जानकारी दी गई। पत्रिका समूह के उपाध्यक्ष डॉ अरविन्द कालिया ने बताया कि पुस्तक बुद्धि के स्वरूप पर आधारित है।
मूल रूप से यह पुस्तक हिंदी में है और प्रख्यात शिक्षाविद् व राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के पूर्व निदेशक प्रो. वेदप्रकाश ने पुस्तक को अंग्रेजी में अनुवादित किया है। प्रो. वेदप्रकाश ने बताया कि यह पुस्तक मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी है। पुस्तक में मन से जुड़़ पहलुओं का जवाब दिया है। राजस्थान पत्रिका के वैदिक शोध संस्थान से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार वर्मा ने कहा कि इसमें रखा गया पक्ष आंखें और जीवन के नए अध्याय खोलने वाला है।