1. मेष— ॐ ह्रीं उमा देव्यै नम:। अथवा ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:। 2. वृष— ॐ क्रां क्रीं क्रूं कालिका देव्यै नम:। 3. मिथुन— ॐ दुं दुर्गायै नम:। 4. कर्क— ॐ ललिता देव्यै नम:।
5. सिंह— ॐ ऐं महासरस्वती देव्यै नम:। 6. कन्या— ॐ शूल धारिणी देव्यै नम:। 7. तुला— ॐ ह्रीं उमा महालक्ष्म्यै नम:। 8. वृश्चिक— ॐ शक्तिरुपायै नम:। या ॐ ह्रीं उमा काम्नख्यै नम:।
9. धनु— ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। 10. मकर— ॐ पां पार्वती देव्यै नम:। 11. कुंभ— ॐ पां पार्वती देव्यै नम:।
12. मीन— ॐ श्रीं हीं श्रीं दुर्गा देव्यै नम:। आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। दोनों ही नवरात्रियां साधना के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है। दोनों नवरात्रियां युक्त संगत होती हैं, क्योंकि ये दोनों नवरात्रि अयन के पूर्व संख्या संक्रांति के हैं। यही नवरात्रि अपने आगामी नवरात्रि की संक्रांति के साथ-साथ मित्रता वाले भी हैं, जैसे आषाढ़ संक्रांति मिथुन व आश्विन की कन्या संक्रांति का स्वामी बुध हुआ और पौष संक्रांति धनु और चैत्र संक्रांति मीन का स्वामी गुरु है।
12. मीन— ॐ श्रीं हीं श्रीं दुर्गा देव्यै नम:। आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। दोनों ही नवरात्रियां साधना के लिए महत्वपूर्ण मानी गई है। दोनों नवरात्रियां युक्त संगत होती हैं, क्योंकि ये दोनों नवरात्रि अयन के पूर्व संख्या संक्रांति के हैं। यही नवरात्रि अपने आगामी नवरात्रि की संक्रांति के साथ-साथ मित्रता वाले भी हैं, जैसे आषाढ़ संक्रांति मिथुन व आश्विन की कन्या संक्रांति का स्वामी बुध हुआ और पौष संक्रांति धनु और चैत्र संक्रांति मीन का स्वामी गुरु है।
यही वजह है कि चारों नवरात्रि वर्ष में 3-3 माह बाद पड़ती हैं। कुछ लोग मानते हैं कि पौष माह अशुद्ध माह नहीं हैं और माघ में नवरात्रि आती है। लेकिन चैत्र की तरह ही पौष का महीना भी निषेध वाला होता है। इसलिए प्रत्यक्ष चैत्र, गुप्त आषाढ़, प्रत्यक्ष अश्विन और गुप्त पौष दुर्गा माता की सेवा, अर्चना और उपासना करने वाले हर व्यक्ति को इच्छित फल प्राप्त होते हैं।