जयपुर

गुप्त नवरात्र 2018: देवियों की नहीं इन दस महाविद्याओं की उपासना से मां होती है प्रसन्न, ये है पूजन विधि

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जयपुरJul 13, 2018 / 03:39 pm

Nidhi Mishra

Navratri 2018

जयपुर। लगभग सभी भारतीय जानते हैं कि चैत्र और शारदीय नवरात्र में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। लेकिन कम ही लोग हैं, जो ये जानते हैं कि एक साल में चार नवरात्रा आते हैं। उन दो नवरात्रों को गुप्त नवरात्रा कहा जाता है। इस साल आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि 13 जुलाई से शुरू हुई है और 21 जुलाई को इसका समापन होगा।
 


साधकों को रखना होता है शुद्धता और नियम का खास ख्याल
गुप्त नवरात्रि में पूजन करने को काफी ज्यादा कठिन माना गया है। क्योंकि कहा जाता है कि इस दौरान देवी अपने पूर्ण स्वरूप में होती है। इस कारण साधक को शुद्धता और नियम का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। गुप्त नवरात्रि में देवी दुर्गा की आराधना के साथ ही तंत्र, मंत्र, यंत्र और सिद्धि की साधना को खासा अहम माना गया है।
 


गुप्त स्थान पर होती है साधना
ऐसी मान्यता है कि तंत्र-मंत्र पर सिद्धियां पाने वाले साधक इस दौरान गुप्त स्थान पर रहते हैं। गुप्त स्थान पर रह कर वे देवी के स्वरूपों के साथ दस महाविद्याओं की साधना करते हैं।
 


ये है पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के हिसाब से एक बार ऋषि श्रंगी के पास एक औरत आई। औरत ने ऋषि से कहा कि महाराज, मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हुए हैं, इसलिए मैं कोई व्रत और उपवास नहीं कर पाती हूं। साथ ही कोई धार्मिक अनुष्ठान भी नहीं कर पाती हूं। महिला ने ऋषि से प्रार्थना की कि वो मां दुर्गा की शरण में जाना चाहती है, लेकिन समस्या ये है कि उसके पति के पापों के कारण उस पर मां की कृपादृष्टि नहीं बन पा रही।
 

 

इस पर ऋषि ने महिला से कहा कि साल में दो बार गुप्त नवरात्र आया करते हैं। इनमें 9 देवियों की बजाय दस महाविद्याओं की उपासना की जाती है। यदि तुम विधिवत ऐसा कर पाओगी तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से भर जाएगा। ऋषि के बताए हुए नियम के अनुसार महिला ने मां दुर्गा की कठोर साधना की। महिला की असीम भक्ति और श्रद्धा मां प्रसन्न हो गईं और उसके सारे कष्ट दूर हो गए।
 


ये हैं दस महाविद्या
इन दस महाविद्याओं में मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।

 

 

ये है पूजन विधि
गुप्त नवरात्र के दौरान भी पूजा प्रत्यक्ष नवरात्रों की तरह ही की जाती है। नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेकर प्रतिपदा को घटस्थापना की जाती है। फिर प्रतिदिन सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा होती है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं का पूजन किया जाता है। फिर व्रत का उद्यापन किया जाता है। इस बारे में हालांकि किसी के साथ चर्चा नहीं की जानी चाहिए।
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