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राजस्थान के इस मंदिर में मां का होता था इंसानी रक्त से तिलक, दी जाती थी नरबलि!

locationजयपुरPublished: Jul 12, 2018 06:12:19 pm

Submitted by:

dinesh

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Navratri
जयपुर। जयपुर में Amer किले के भव्य मंदिर में विराजमान महिषासुरमर्दिनी अष्ठभुजी माता Shila Devi ढूढाड़ राजवंश व प्रजा की अधिष्ठात्री देवी मां है। अकबर के सेना नायक व आमेर नरेश मानसिंह प्रथम शिलादेवी को बंगाल में जसोर के महाराजा प्रतापादित्य केदारराय से सौलहवीं सदी में आमेर लाए। बरसों पहले नवरात्रों में सप्तमी और अष्ठमी की मध्य रात्रि में निशा पूजन के बाद बकरों और भैंसों का महाराजा व सामंत बलिदान देते थे। आमेर नरेश मानसिंह के बारे में किवदंती है कि उन्होंने नरबलि भी दी थी। इतिहासकार डॉ राघवेन्द्र सिंह मनोहर ने राजस्थान के प्रमुख शक्तिपीठ में लिखा कि एक चारण ने दिल को झकझोर देने वाला दोहा सुनाया तब मानसिंह ने आमेर में नरबलि बंद की।
Gupt navratri 2018

Shila Mata
 

दो लाइनों में था यह दोहा
बकर कसाई बीवड़ा, कलम कसाई केक
मिनख मार रच्छा चहै, मान कसाई हेक

इसका मतलब यह है कि बकरों को मारने वाले और कलम से बुरा करने वाले कई कसाई हैं। हे राजा मानसिंह आप अपना ऐश्वर्य बढ़ाने के लिए इंसान को मार अपना भला करना क्यू चाहते हैं।
मंदिर में भैंसों और बकरों की बलि
सवाई प्रताप सिंह आठ दिन तक आमेर मंदिर में भैंसों और बकरों का बलिदान देते। प्रताप प्रकाश ग्रंथ में लिखा है कि… सवाई प्रताप सिंह ने नवरात्रा में आमेर के देवीजी मंदिर में आठ दिन तक भैंसों व बकरों की बलि चढ़ाई।
Shila Mata Temple
 

नाहरगढ़ से माता को तोपों की सलामी
आमेर पुलिस के थानेदार सैयद जहीरुद्दीन हुसैन जहीर देहलवी ने लिखा कि सवाई रामसिंह द्वितीय अपने चेले किशन लाल के साथ बलिदान करने आमेर आए। चार घड़ी बाद पसीने से भीगे सवाई रामसिंह मंदिर की सीढिय़ों पर बैठ गए। बलिदान होता तब नाहरगढ़ से माता को तोपों की सलामी दी जाती। जयपुर बसाने में व्यवधान होने पर सवाई जयसिंह ने विद्वानों की सलाह पर शिलामाता की प्रतिमा का मुख पूर्व से उत्तर में करवाया। मीणा शासकों के समय की अष्ठधातु में बनी हिंगलाज माता की दुर्लभ प्रतिमा मंदिर में विराजमान है। स्फटिक का शिवलिंग, चांदी का नगाड़ा भी रखा है।
महारानी ने बनावाया चांदी का दरवाजा
मानसिंह द्वितीय की महारानी किशोर कंवर ने पति के स्वस्थ रहने की कामना से मंदिर में चांदी का दरवाजा बनवाया। राजगुरु विद्यानाथ ओझा की अध्यक्षता में विद्वानों की कमेटी पूजा पद्धति पर निगाह रखती थी। पं.गिरधर शर्मा चतुर्वेदी, गंगाधर द्विवेदी आदि विद्वान नवरात्र पर मंदिर के बाहर कवि सम्मेलन करते। लाल पाषाण में बने श्रीगणेशजी के अलावा चित्रकार धीरेन्द्र घोष के बनाए महालक्ष्मी, महाकाली सहित मां दुर्गा के नौ स्वरूप और दस विद्याओं के चित्र अति मनोरम है। एक खिडक़ी में जीवण सिंह बंजारा भोमियाजी विराजे हैं। शिला माता की मूर्ति को बंगाल के पाल शासकों ने आठवीं सदी में बनवाया था।
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