ख़त्म हुआ अल्टीमेटम, गर्माया मामला दरअसल, गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने बीते 12 सितम्बर को अपने जन्मदिवस के मौके पर एक सभा में आन्दोलन पर उतरने की चेतावनी दी थी। उन्होंने गुर्जरों की लंबित मांगें पूरी किये जाने को लेकर राज्य सरकार को 15 दिन और केंद्र सरकार को 30 दिन का अल्टीमेटम दिया था। राज्य सरकार को दिया गया अल्टीमेटम रविवार को ख़त्म हो गया जबकि अभी तक सरकार के स्तर पर कोई समाधान नहीं निकला।
आन्दोलन पर आमादा गुर्जर समाज नाराज़ गुर्जरों की अगुवाई इस बार गुर्जर नेता कर्नल बैंसला और उनके पुत्र विजय बैंसला कर रहे हैं। गुर्जर नेता विजय बैंसला ने रविवार को एक सभा में राज्य सरकार को दिए अल्टीमेटम ख़त्म होने पर कहा कि इस बार के आन्दोलन का पैमाना और बड़ा रहने वाला है। बैंसला ने सरकार को खुली चुनौती देते हुए कहा है कि अब सरकार को जो करना है वो कर ले, आन्दोलन करके मांगे मनवाकर रहेंगे।
सोशल मीडिया पर चल रहे कैम्पेन सरकार के खिलाफ सडकों पर उतरकर आन्दोलन करने की दिशा में गुर्जर समाज अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी मुखर है। आन्दोलन के सिलसिले में कई कैम्पेन्स चलाये जा रहे हैं। #कर्नल_साहब_आदेश_दो, #गुर्जर_एकता_जिंदाबाद, #गुर्जर_आन्दोलन_की_आहट जैसे कई कैम्पेन्स बड़े स्तर पर चल रहे हैं।
सरकार का ढुलमुल रवैय्या गुर्जर नेताओं के अल्टीमेटम के बावजूद सरकार की ओर से कोई प्रयास धरातल पर नज़र नहीं आये हैं। गुर्जरों की मांगों पर विचार करने या कोई समाधान निकालकर नाराज़ नेताओं-समाज को आश्वस्त करने के लिए कोई कदम नहीं बढाया गया है। ऐसे में एक बार फिर से पहले हुए सरकार का ढुलमुल रवैया गुर्जर आन्दोलन के लिए ज़िम्मेदार ना बन जाए इसका खतरा बना हुआ है।
ये हैं लंबित मांगें गुर्जर समाज के नेताओं के अनुसार राज्य सरकार से समझौते के अनुसार नौकरियों में बैकलॉग भरने, गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान मरने वालों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने, आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमों के जल्द निस्तारण सहित अन्य मांगों पूरी करने की मांगें हैं।
…इसलिए बना हुआ है गतिरोध सूत्रों के अनुसार गतिरोध की वजह सरकार की दलील है। सरकार का मानना है कि जिन गुर्जरों को वर्ष 2007 में गोली लगी थी वे ठीक हो गए थे, अब उनकी मृत्यु स्वाभाविक मौत है। ऐसे में उन्हें 2007 के दौरान गुर्जर आंदोलन के मृतकों के समान आश्रितों को नौकरी देने की मांग वाजिब नहीं है।
जानकारी के अनुसार गृह विभाग ने ये कहते हुए इस मांग पर असहमति जताई है कि हाल ही में मृत हुए गुर्जरों का मेडिकल बोर्ड से भी पोस्टमार्टम करवाया गया था जिसमें गोली लगने से उनकी मृत्यु नहीं होना सामने आया था।
इसके अलावा आन्दोलन के दौरान दर्ज हुए मामले गृह विभाग में जबकि भर्तियों में आरक्षण मामला कार्मिक विभाग में लंबित चल रहा है। ख़ास बात ये भी है कि गृह विभाग और कार्मिक विभाग दोनों के मुखिया ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। ऐसे में इन मामलों में अंतिम निर्णय अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्तर पर ही होना है।
गुर्जर नेताओं की प्रतिक्रियाओं में ‘उबाल’ ”केन्द्र सरकार ने न तो एमबीसी के पांच प्रतिशत आरक्षण को नवीं अनुसूची में डाला है और न ही राजस्थान सरकार ने आरक्षण आंदोलन के मृतकों के परिजनों को नौकरी दी। इससे गुर्जर समाज में रोष व्याप्त है।” – कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला, गुर्जर नेता
”राज्य सरकार चाहती है कि मजबूर होकर गुर्जर समाज फिर से आंदोलन करे। इस बार भी पन्द्रह दिन का समय दिया गया था, लेकिन सरकार मांगे मानने को तैयार नहीं है। मजबूरी में विवश होकर कोरोना काल में ऐसा कदम उठाना पड़ेगा जो प्रदेश के लिए हानिकारक होगा। इस बार दिल्ली कूच करने की भी तैयारी है।” – विजय बैंसला, गुर्जर नेता
”गुर्जर समाज आंदोलन के लिए तैयार रहे। 24 घंटे पहले होगी स्थान की घोषणा।” – भूराभगत, उपाध्यक्ष, गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति
”युवाओं में अधिक जोश है। आरक्षण की युवाओं को अधिक जरूरत है। सरकारों ने मांगे नहीं मानी तो हमने जो पहले किया इस बार भी करेंगे। इस बार पीछे नहीं हटेंगे।” – जगदीश गुर्जर, सदस्य, गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति